
राहुल गांधी की न्याय यात्रा को शुरू हुए 3 दिन पूरे हो चुके हैं आज चौथा दिन है. भारत जोड़ो न्याय यात्रा को राम मंदिर उद्घाटन समारोह की चर्चा को कम करने के लिए एक काट के रूप में शायद शुरू करने की योजना थी. दरअसल इंडिया गठबंधन की दिल्ली बैठक में लालू यादव सहित कुछ नेताओं ने राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के राजनीतिकरण पर चिंता व्यक्त की थी. बीजेपी राम मंदिर के उद्घाटन का लाभ न उठा सके इसलिए समारोह के समानांतर यात्रा का प्लान तैयार किया गया. शायद यही कारण था कि आनन फानन में 14 जनवरी से राहुल गांधी की यात्रा शुरू की गई थी. दरअसल 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाली प्राण प्रतिष्ठा के लिए 14 जनवरी से ही कार्यक्रम शुरू हो रहे थे.इंडिया गठबंधन की ये सोच थी कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा कुछ ऐसा बज क्रिएट करेगी कि राम मंदिर को लेकर होने वाली चर्चा को कम किया जा सकेगा. आइये देखते हैं कि इन 4 दिनों में राहुल गांधी अपने उद्देश्य में कितना सफल रहे हैं. और आने वाले दिनों में उन्हें कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
भारत जोड़ो यात्रा जैसी शुरुआत नहीं मिली न्याय यात्रा को
मणिपुर से शुरू हुई यात्रा में ऐसा समझा जा रहा था कि हिंसा से पीड़ित जनता का उन्हें जबरदस्त समर्थन मिलेगा. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. भीड़ जुटी पर वो भीड़ वैसी ही थी जैसे किसी हेलिकॉप्टर को देखने के लिए पब्लिक जुट जाती है. पूर्वोत्तर का चुनाव ही पार्टी ने इसलिए किया था कि वहां से यात्रा के लिए उत्साहित समर्थकों का हुजूम देखने को मिलेगा. सोशल मीडिया और मेन स्ट्रीम मीडिया में भी दक्षिण भारत से शुरू हुई भारत जोड़ो यात्रा वाला उत्साह नहीं दिखा. सोशल मीडिया एक्स पर पिछली बार लगातार राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा किसी न किसी कारण ट्रेंड करता रहता था. इस बार बिल्कुल भी अभी ऐसा नहीं हो सका है. कांग्रेस के कई दर्जन बड़े नेताओं को चार्टर्ड प्लेन से मणिपुर पहुंचाया गया पर पिछली यात्रा के दौरान जिस तरह राहुल गांधी के साथ भूपेश बघेल और अशोक गहलोत आदि दिख रहे थे उस तरह का नजारा इस बार नहीं है. राहुल गांधी के साथ सिर्फ योगेंद्र यादव ही नजर आ रहे हैं.
संभव है कि इस बार अधिकतर यात्रा बस से होने के चलते भारत जोड़ो यात्रा जैसा माहौल नहीं पैदा हो रहा है. कुछ राजनीतिक विश्वेषकों कहना है कि पैदल यात्रा ज्यादा प्रभावी होता है.राहुल जनता के बीच बात करते, मिलते जुलते, सभी इंटरेक्टिव होते थे. पब्लिक के मन मस्तिष्क पर भी पैदल यात्रा चलने का प्रभाव होता था. कांग्रेस नेताओं ने इसे मणिपुर जैसे राज्य से न्याय यात्रा को शुरू किया था. क्योंकि उन्हें लगता था कि पूर्वोत्तर में कम से कम उत्तर भारत जैसा मंदिर उद्घाटन का क्रेज तो नहीं होगा. इसके बावजूद पूर्वोत्तर में अपेक्षित समर्थन नहीं मिल सका है.
इंडिया गइंठबंधन के झटसे से कमजोर हुई न्याय यात्रा
भारत जोड़ो यात्रा के एक दिन पहले ही हुई इंडिया गठबंधन की वर्चुअल मीटिंग से जिस तरह बड़ी पार्टियों के बड़े नेता नदारद रहे उससे तो यही लगा कि इंडिया ब्लॉक के नेताओं को राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में कोई रुचि नहीं है. हालांकि ये मीटिंग भारत जोड़ो न्याय के संबंध में नहीं थी. पर अगर इस यात्रा को इंडिया ब्लॉक के नेताओं का समर्थन मिलता तो बात कुछ और होती. मीटिंग से ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे और अखिलेश यादव आदि ने दूरी बना ली.केवल दस दलों के नेताओं ने ही इस मीटिंग में शिरकत किया.
इस बीच नीतीश कुमार ने इंडिया ब्लॉक का संयोजक बनने से इनकार कर दिया. मतलब साफ है कि इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. अगले 5 दिनों में राहुल की यात्रा पश्चिम बंगाल में प्रवेश करने वाली है. पश्चिम बंगाल की सीएम और टीएमसी की प्रमुख ममता बनर्जी ने स्पष्ट कर दिया है कि बिनी सीट शेयरिंग मुद्दे के सुलझे बिना वो न्याय यात्रा में शामिल नहीं होंगी.जाहिर है कि अगले 5 दिनों के अंदर इतना कठिन मुद्दा सुलझने वाला नहीं लगता है. वो भी ऐसे समय जब ममता बनर्जी खुद इंडिया गठबंधन से दूरी बना रही हैं. बंगाल और बिहार में राहुल की यात्रा काफी मजबूत हो सकती थी अगर यात्रा के पहले पूरी तैयारी कर ली गई होती. केवल राम मंदिर की चर्चा रोकने के लिए आनन-फानन में यात्रा शुरू करने का नुकसान तो उठाना ही होगा यात्रा को.
राहुल गांधी ने अपना मकसद खुद बता दिया
राहुल आज यात्रा के चौथे दिन नगालैंड पहुंचे .राहुल ने कहा, 'मैंने नगालैंड के गांव के लोगों के साथ चाय पी. एक बच्ची ने मुझसे पूछा कि इस यात्रा के पीछे मकसद क्या है? तो मैंने उसे बताया कि इस यात्रा का मकसद है उसकी बात सुनना. ये समझना कि नगालैंड के लोग क्या महसूस करते हैं और कैसे जिंदगी जीते हैं.राहुल गांधी ने अपनी यात्रा का उद्ैश्य खुद बयां कर दिया है.मतलब साफ है कि राहुल गांधी इसे राजनीतिक यात्रा नहीं मानते हैं. उनके कहने का मतलब है कि वो देशाटन पर हैं. एक पर्यटक की तरीके से बस वो समझने की कोशिश कर रहे हैं कि देश के लोग कैसी जिंदगी जीते हैं. दरअसल कांग्रेस को इस यात्रा से अब कोई उम्मीद नहीं रह गई है. आने वाले दिनों में बंगाल और बिहार और यूपी में और बुरा हाल हो सकता है. हालांकि गांधी फैमिली का इतना तो चार्म है ही कि देखने वालों की भीड़ तो जुटेगी ही. पर बिना इंडिया गठबंधन के दलों के साथ आए वो यात्रा के समय जुटने वाली भीड़ को वोटों में तब्दील कर सकेंगे ऐसा कम ही संभावना दिखता है.
न चाहते हुए भी राहुल मंदिर की ही चर्चा कर रहे
भारत जोड़ो न्याय यात्रा के तीसरे दिन कांग्रेस सांसद राहुल ने कहा कि नगालैंड ने कहा कि आरएसएस और भाजपा ने इस कार्यक्रम को पूरी तरह नरेंद्र मोदी फंक्शन बना दिया है. राहुल गांधी कहते हैं कि यह कार्यक्रम पूरी तरह से राजनीतिक है. RSS और BJP ने 22 जनवरी को चुनावी फ्लेवर दिया है इसीलिए कांग्रेस अध्यक्ष वहां नहीं जा रहे हैं. हम सब धर्मों के साथ हैं, जो भी वहां जाना चाहता है जा सकता है.
राहुल गांधी ने आगे कहा कि हिंदू संस्कृति के बड़े पुरोधाचार्य लोगों ने भी वहां जाने से मना कर दिया है, ऐसे में हमारे लिए वहां जाना बड़ा मुश्किल है. मैं धर्म का फायदा नहीं उठाता हूं. मैं हिंदू धर्म का पालन करता हूं लेकिन उसे शर्ट पर नहीं पहनता हूं. मैं जीवन में ही हिन्दू धर्म को अपनाता हूं जो सही है. मैं दिखाता नहीं, जो धर्म का सम्मान नहीं करते मानते नहीं वो दिखाते हैं. दरअसल राहुल गांधी की बात को उनकी ही पार्टी के लोग काट रहे हैं और राहुल गांधी उन्हें रोकने में असमर्थ साबित हो रहे हैं. यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष कुछ और नेताओं को साथ लेकर मकर संक्रांति के अवसर पर अयोध्या पहुंचे. कांग्रेस पार्टी के कई लोगों ने यह घोषणा कर रखी है कि वो प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होंगे. जिसमें हिमाचल के एक मंत्री भी हैं. हिंदू संस्कृति पुरोधाचार्य लोग मुहूर्त को सही नहीं मान रहे हैं तो फिर कर्नाटक की कांग्रेस सरकार 22 जनवरी को मंदिरों में विशेष पूजा का क्यों आयोजन कर रही है? राहुल अभी जब हिंदू बेल्ट की ओर आएंगे तो उन्हें इस तरह के ढेरों सवालों को जवाब देने होंगे.