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अब पहले से कहीं अधिक: योग ही तरीका है

आज जब समाज आर्थिक खुशहाली, आराम और टेकनॉलोजी के ऊंचे से ऊंचे स्तर में विकसित हो रहे हैं, हर संभव किस्म की सुविधाएं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, आज उपलब्ध हैं. लेकिन फिर भी खुशहाली नहीं आई है. मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे दुनियाभर में ऐसे बढ़ रहे हैं कि यह अब व्यक्तिगत अनुभव नहीं रह गया है - यह सामाजिक अनुभव बन गया है.

सद्गुरु सद्गुरु
सद्गुरु
  • नई दिल्ली,
  • 19 जून 2024,
  • अपडेटेड 11:42 AM IST

सदियों से, खुशहाली की खोज में, लोगों ने ऊपर देखा है. इससे बहुत ज्यादा मतिभ्रम आया है - लोगों ने हर तरह की चीजों की कल्पना कर ली है और इसने एक किस्म के स्वर्ग और दूसरे किस्म के स्वर्ग के बीच लगातार लड़ाइयां पैदा की हैं. लोग किसी भगवान या किसी स्वर्ग के लिए लड़ रहे हैं, जिसे उनमें से किसी ने नहीं देखा है, लेकिन वे मरते दम तक लड़ने को तैयार हैं. हाल के समय में, बाहरी दुनिया से खुशहाली खोजने की ओर बदलाव हुआ है. दुनिया से खुशहाली खोजने की प्रक्रिया में, बाहर से जीवन का रस हासिल करने की कोशिश में, हम अपने जीवन के स्रोत - इस धरती को ही नष्ट कर दे रहे हैं.

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आज जब समाज आर्थिक खुशहाली, आराम और टेकनॉलोजी के ऊंचे से ऊंचे स्तर में विकसित हो रहे हैं, हर संभव किस्म की सुविधाएं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, आज उपलब्ध हैं. लेकिन फिर भी खुशहाली नहीं आई है. मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे दुनियाभर में ऐसे बढ़ रहे हैं कि यह अब व्यक्तिगत अनुभव नहीं रह गया है - यह सामाजिक अनुभव बन गया है. ऐसी उम्मीद की जाती है कि अगले 15 से 20 साल में, कोई भी परिवार ऐसा नहीं बचेगा जिसमें कम से कम एक मानसिक रोगी व्यक्ति न हो.

हमें समझना चाहिए कि सारे मानवीय अनुभव - पीड़ा या सुख, आनंद या दुख, यंत्रणा या परमानंद - भीतर से पैदा होते हैं. एक बार जब आपको इसका एहसास होता है तो योग बहुत प्रासंगिक हो जाता है, क्योंकि यह लोगों के लिए अंदर मुड़ने और अपनी खुशहाली पैदा करने की एक टेक्नॉलोजी और साधन है.

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योग आंतरिक प्रबंधन का विज्ञान है

योग की पूरी प्रक्रिया आंतरिक प्रबंधन का विज्ञान है जहां आप एक ऐसी आंतरिक संभावना पैदा करते हैं जहां आंनदमय, खुश, शांत होना आपकी अपनी प्रकृति से होता है, इसलिए नहीं क्योंकि आपके आस-पास कोई चीज होती है. आपका जीवन खुशी की तलाश में अब और नहीं रहता बल्कि वह आपकी खुशी की अभिव्यक्ति बन जाता है. योग का संदेश यह है: "ऊपर नहीं, बाहर नहीं - अंदर। बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता अंदर है."

दुर्भाग्य से, बस कुछ समय पहले तक, अगर आप किसी भारतीय गांव में गए होते तो लोगों ने ‘योग’ शब्द को नहीं सुना था, लेकिन उन्होंने कोका कोला सुना हुआ था. कोका कोला की मार्केटिंग बहुत कारगर रही है, लेकिन हम योग और अपनी संस्कृति के दूसरे पहलुओं की मार्केटिंग में संकोच करते रहे हैं, जो हमारे लिए मूल्यवान हैं. हमें लगता है कि जिस पल किसी चीज की मार्केटिंग करते हैं, वह भ्रष्ट हो चुकी है. लेकिन आप कैसे जानेंगे कि कोई मूल्यवान चीज मौजूद है? जीवन को देखने का मेरा तरीका यह है कि अगर मेरे कुएं में पानी है और आप प्यासे हैं तो मेरा काम है कि मैं अपनी छत पर जाकर चिल्लाऊं कि यहां पानी उपलब्ध है. लेकिन अगर आपको लगता है कि आप सभ्य हैं और आप कुछ नहीं बोलते तो लोग प्यास से मर जाएंगे.

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हर किस्म के दिन होते हैं...

भारतीय संस्कृति में एक ऐसी आंतरिक शक्ति है जो आंतरिक खुशहाली के एक पूरे विज्ञान और टेक्नॉलोजी से आती है - अभी पूरी दुनिया इसके लिए आतुर है. 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में संयुक्त राष्ट्र की घोषणा इस संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है, हालांकि अधिकांश लोग शायद इसे अभी न समझ सकें. वे सोच सकते हैं, बबल बाथ डे होता है, मदर्स डे होता है, और हर किस्म के दिन होते हैं, लेकिन यह वैसी एक और चीज नहीं है. यह उस प्राचीन विज्ञान को मान्यता है, जिसका हमने हजारों साल से शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक खुशहाली के लिए उपयोग किया है। इस मान्यता ने योग को निश्चित रूप से, दुनिया में पहले से कहीं ज्यादा बड़े तरीके से पहुंचाया है. आज, कम से कम ‘योग’ शब्द को पूरी दुनिया जानती है, अगर वे प्रक्रिया को नहीं भी जानते या उसका अभ्यास नहीं भी करते हैं.

यह अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस इस संदेश को फैलाने का एक और अवसर है कि हर इंसान खुद के लिए खुशहाली पैदा कर सकता है; उनके लिए खुशहाली लाने के लिए उन्हें किसी दूसरी ताकत का इंतजार करने की जरूरत नहीं है. यह अपनी स्वयं की खुशहाली, और बदले में दुनिया की खुशहाली की पूरी जिम्मेदारी लेने की प्रतिबद्धता के लिए भी है.

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