
शिवराज सिंह चौहान 2018 की ही तरह इस बार भी घर में नहीं बैठ रहे हैं. न ही मध्य प्रदेश छोड़ कर दिल्ली का रुख करने का उनका कोई इरादा है. ऐसे में जबकि न तो शिवराज सिंह चौहान ने राजनीति से संन्यास लेने जैसी कोई बात कही है, न ही बीजेपी नेतृत्व की तरफ से ऐसा कोई संकेत मिला है - ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री का राजनीतिक भविष्य किस दिशा में बढ़ रहा है?
एजेंडा आज तक में जब बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से सवाल हुआ तो बोले, शिवराज सिंह चौहान ही नहीं बल्कि वसुंधरा राजे और डॉक्टर रमन सिंह जैसे नेताओं को भी उनके कद के हिसाब से जिम्मेदारी दी जाएगी.
जेपी नड्डा से पूछा गया था, आपने तीन कद्दावर तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को बैठने के लिए कहा, तो उनका जवाब था, 'बैठ जाइए नहीं, ये शब्द नहीं है हमारा... नए काम में लग जाइए... हम मिलकर तय करेंगे... इनको हम नया काम देंगे... ये हमारे वरिष्ठ नेता हैं... इनको 15-16 साल का अनुभव है.
बीजेपी अध्यक्ष का कहना है कि पार्टी साधारण कार्यकर्ता का उपयोग करने से भी पीछे नहीं हटती है. जेपी नड्डा ने अपनी तरफ से आश्वस्त किया है कि ऐसे नेताओं को उनके कद के हिसाब से काम मिलेगा और ये अच्छे तरीके से काम में लगाए जाएंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण देते हुए जेपी नड्डा ने समझाया, प्रधानमंत्री मोदी जब संगठन में थे... जब उन्हें नॉर्थ का काम मिला, नॉर्थ गए... जब साउथ का काम मिला तो वहां जाकर काम किया... जब सीएम पद की जिम्मेदारी दी गई, तो उसे भी निभाया. बीजेपी अध्यक्ष ने ये भी बताया कि बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने इस्तीफा देकर पार्टी का काम संभाला है.
1. मध्य प्रदेश में ही बने रहने दिया जाये
2018 में जब मध्य प्रदेश में कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी तो भी शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश नहीं छोड़ा था. बीजेपी में तब उनको राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बना दिया गया था, लेकिन वो कभी मध्य प्रदेश से कटे नहीं.
वसुंधरा राजे की तरह शिवराज सिंह चौहान के लिए भी दिल्ली में सेटल हो जाने का पूरा मौका था, लेकिन वो घुम फिर कर मध्य प्रदेश के लोगों के बीच ही बने रहने की कोशिश करते दिखे. और फिर सवा साल बात ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की बदौलत वो मौका आ गया जब फिर से वो मुख्यमंत्री बन गये.
मध्य प्रदेश में वैसे तो मुख्यमंत्री मोहन यादव के साथ दो डिप्टी सीएम भी शपथ ले चुके हैं. केंद्र से भेजे गये नरेंद्र सिंह तोमर को स्पीकर बनाया जा चुका. ऐसे में शिवराज सिंह चौहान के कद का कोई पद मध्य प्रदेश में तो नहीं बचा दिखाई पड़ रहा है.
अपने बूते बीजेपी को चुनाव जिता देने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान ने अहंकार भाव का प्रदर्शन नहीं किया है. जब तक मुख्यमंत्री बनाये जाने की संभावना थी, कह रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी को वो 29 कमल की माला भेंट करना चाहते हैं, और बाद में ये कहने लगे कि पार्टी ने बहुत कुछ दिया है, अब पार्टी को कुछ देने का मौका है.
एक सूरत ये तो बनती ही है कि वो ज्यादा दिन तक नहीं, तो कम से कम 2024 के आम चुनाव तक बुधनी के विधायक बने रहें - और जहां तक आगे की बात है, अभी वो 64 साल के ही हैं. बीजेपी में रिटायरमेंट की अघोषित उम्र तो 75 साल है.
2. 'लाड़ली बहना' टाइप ब्रांड एंबेसडर बना दिये जायें
भले ही राजनीतिक विरोध के चलते कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता लाड़ली बहना जैसी कारगर स्कीम को खारिज कर दें, लेकिन जिस तरह से शिवराज सिंह चौहान को हर जगह महिलाओं का सपोर्ट मिल रहा है - बीजेपी चाहे तो आम चुनाव में केंद्र के लिए ऐसी ही कोई स्कीम लाकर शिवराज सिंह चौहान को उसका जिम्मा सौंप दे.
वैसे भी अगले लोक सभा चुनाव में महिला आरक्षण कानून लाने का श्रेय लेने के साथ साथ महिलाओं के वोट के लिए बीजेपी जोर शोर से प्रचार प्रसार करेगी ही. ऐसी एक झलक जयपुर में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के दौरान देखा ही जा चुका है, जिसमें पूरे कार्यक्रम की जिम्मेदारी महिलाओं के हाथ में थी.
मोदी सरकार में भी महिलाओं के लिए योजना तो है ही, शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना योजना और महिला आरक्षण कानून की थीम को जोड़ कर कोई कार्यक्रम बनाया जा सकता है - और उसका चेहरा शिवराज सिंह चौहान को बनाया जा सकता है.
3. देश के किसी राजभवन में भेज दिया जाये
सीनियर नेताओं के समर्थकों की नाराजगी से बचने के लिए बीजेपी उनको राज्यपाल बनाकर किसी राजभवन में भेज दिया करती है. राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र भी ऐसी ही एक मिसाल हैं. यूपी के ब्राह्मण वोटर को संदेश देने के लिए उनको केंद्र से हटाने के बाद ऐसी ही जिम्मेदारी दी गयी थी. वैसे भी यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर ठाकुरवाद की राजनीति के आरोपों को बैलेंस करने के लिए बीजेपी ऐसे प्रयोग करती रहती है.
राजस्थान के ही सीनियर नेता गुलाब चंद कटारिया को असम का राज्यपाल बनाया गया है. चुनावों के दौरान वो अपने घर उदयपुर पहुंचे थे, और कांग्रेस का आरोप था कि राज्यपाल होने के बावजूद वो विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए कैंपेन पर नजर रख रहे हैं. हालांकि, कुछ दिन बाद ही वो असम लौट गये थे.
शिवराज सिंह चौहान के कद के हिसाब से बीजेपी के पास उनको किसी राज्य का गवर्नर बनाने का ऑफर भी हो सकता है. एक मुश्किल ये जरूर है कि शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी शासित राज्यों में ही ये जिम्मेदारी दी जा सकती है - क्योंकि विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों में तो कड़क मिजाज वाले की जरूरत होती है.
4. मोदी कैबिनेट में भी जगह खाली तो है ही
विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों को उम्मीदवार बना कर मध्य प्रदेश भेज दिया था. उनमें से एक कृषि मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर को अब स्पीकर बनाया जा चुका है. कृषि मंत्रालय का काम फिलहाल आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा देख रहे हैं - अगर शिवराज सिंह चौहान को भी स्वीकार हो तो उनके ये जिम्मेदारी दी जा सकती है.
वैसे भी बीजेपी को ऐसे कृषि मंत्री की जरूरत तो है ही जो किसानों के बीच जाकर बीजेपी के प्रति सपोर्ट बेस को बढ़ाने की कोशिश कर सके. कृषि कानून वापस ले लिये जाने के बाद बीजेपी भले ही चुनाव जीत रही हो, लेकिन बीजेपी भी महसूस कर रही है कि किसानों ने मोदी के मुंह से तपस्या में कमी की बात सुनने के बाद भी बीजेपी को मन से माफ नहीं किया है.
5. नड्डा के बाद बीजेपी की कमान
लोक सभा चुनावों को देखते हुए जेपी नड्डा को जून, 2024 बीजेपी अध्यक्ष के रूप में एक्सटेंशन मिला हुआ है. ऐसे में एक संभावना ये भी बनती है कि जेपी नड्डा के बाद ये मौका शिवराज सिंह चौहान को देने पर विचार किया जाये. हालांकि, इस बात की कम ही संभावना लगती है.
शिवराज सिंह चौहान बीजेपी का ओबीसी चेहरा हैं. और जिस तरह से विपक्ष पिछड़े वर्ग के लोगों को उनका हक दिलाने के नाम पर जातीय जनगणना की मांग कर रहा है, शिवराज सिंह चौहान बीजेपी की तरफ से उसका मजबूत जवाब हो सकते हैं.
लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में बीजेपी के पास सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा पहले से ही मौजूद है तो किसी और को मोर्चे पर तैनात करने की बहुत जरूरत भी नहीं लगती. वैसे भी विधानसभा चुनावों के नतीजे तो जातीय राजनीति के मुद्दे को खारिज ही कर चुके हैं.