
बिहार की राजनीति देश में सबसे अधिक जटिल है. बीजेपी हिंदी हर्टलैंड के इस खास राज्य को अभी भी अकेले फतह करने में सक्षम नहीं हो सकी है. कभी इस प्रदेश में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी. पर मंडल की राजनीति ने कांग्रेस का यहां डब्बा गोल कर दिया. बिहार विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस और गांधी परिवार यहां जिस तरह सक्रिय नजर आ रहा है उससे तो यही लगता है कि इस बार पार्टी यहां कुछ अलग करने वाली है. इसी कड़ी में कांग्रेस ने बिहार में ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ नाम से एक पदयात्रा शुरू की है. यात्रा यूथ कांग्रेस और NSUI द्वारा निकाली जा रही है. कांग्रेस की ओर से इस पदयात्रा के लिए किसी नाम की औपचारिक तौर पर घोषणा नहीं की गई है. पर यात्रा के फोकस में कन्हैया कुमार ही हैं. हालांकि कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह भी इस यात्रा में शामिल हुए हैं. पर जिन लोगों को बिहार की राजनीति के बारे में जरा भी पता है उन्हें मालूम है कि उत्तर प्रदेश की तरह यहां भी कांग्रेस बिना सहारे के एक कदम चलने में भी मजबूर है. पर हौसलों के उड़ान को कौन रोक सकता है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी दिल्ली में आम आदमी की पार्टी की तरह शायद यहां भी आरजेडी का काम बिगाड़ने के लिए तैयार दिख रहे हैं. आइये देखते हैं कि ऐसा क्यों लग रहा है.
1-कन्हैया से लालू परिवार की पुरानी खार
कन्हैया कुमार से लालू यादव परिवार बहुत पहले से ही खार खाता रहा है. ऐसा क्यों है यह समझ से परे है. वैसे बहुत से लोगों का मानना है कि लालू यादव नहीं चाहते हैं कि बिहार की राजनीति में तेजस्वी के मुकाबले कोई खड़ा हो. पर इस तर्क में वजन नहीं लगता है. फिर भी एक बात तो सही है ही कि बिहार की राजनीति में लालू यादव को फूटी आंख भी नहीं सुहाते हैं कन्हैया कुमार. दूसरी तरफ इसमें भी कोई दो राय नहीं हो सकती कि बिहार में लालू के भरोसे कांग्रेस की सांसें चलती हैं. 2020 के विधानसभा चुनावों में महागठबंधन ने कांग्रेस को 70 सीटें देकर एक अहसान ही जताया था. यही कारण रहा कि कांग्रेस 19 सीटें जीत सकी थी. हालांकि 2015 में जब आरजेडी और जेडीयू के साथ कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था तो 27 सीट जीतने में कामयाब हुई थी. इसलिए जाहिर तौर पर कांग्रेस बिना सहारे के आज बिहार में कोई हैसियत नहीं रखती है. अगर यह सब जानते हुए भी कांग्रेस आरजेडी प्रमुख लालू यादव की मर्जी के खिलाफ चलना चाहती है तो इसका मतलब है कि कांग्रेस ने सोच लिया है कि दिल्ली की तरह उसे अपनी जड़े तलाशनी है , चाहे इसके लिए उसका सफाया ही क्यों न हो जाए.
2-पोलिटकल बार्गेनिंग नहीं है ये कांग्रेस के अस्तित्व की लड़ाई है
बहुत से राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस केवल दिखावे के लिए ये भ्रम बना रही है कि वह राज्य में अलग चुनाव लड़ सकती है.दरअसल कहा जा रहा है कि आरजेडी इस बार कांग्रेस को महागठबंधन में 40 से 50 सीटें देने पर विचार कर रही है. पर कांग्रेस पिछली बार की तरह 70 सीट से कम लेने को तैयार नहीं है. इसके अलावा कांग्रेस अपने मनमुताबिक सीटों का चयन भी करना चाहती है. पर यह समझना कि केवल कुछ सीटों के लिए कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने का मन बना रही ,आरजेडी के लिए एक भूल साबित हो सकती है.
दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस अगर आम आदमी पार्टी के साथ चुनाव लड़ी होती तो जरूर फायदे में रही होती. पर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने के बजाय अकेले चुनाव लड़कर भविष्य पर ध्यान केंद्रित किया. यही हाल वो बिहार में भी कर सकती है. दरअसल दिल्ली हो या बिहार दोनों ही राज्यों में कांग्रेस के कोर वोटर्स के भरोसे ही आम आदमी पार्टी हो या आरजेडी दोनों ही मजबूत पार्टियां बन गईं. इन दोनों पार्टियों के चलते ही कांग्रेस की राजनीतिक हालत दिल्ली और बिहार में धेले भर की नहीं रह गई. कांग्रेस अब यह बात समझ चुकी है कि अगर इन राज्यों में फिर से सत्ता में आना है तो अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाना होगा. आरजेडी की पिछलग्गू पार्टी बनकर बिहार में कुछ हासिल नहीं हो सकता. बीजेपी को रोकने के नाम पर सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस का ही हो रहा है. कांग्रेस इस घेरे से अब बाहर निकलना चाहती है. राहुल गांधी ने कुछ महीने पहले ही बिहार यात्रा के दौरान राज्य में हुई जाति जनगणना को फर्जी बताकर तेजस्वी यादव को यह जता दिया था कि कांग्रेस अब सबसिडरी पार्टी बनकर काम नहीं करने वाली है.
3-पप्पू यादव भी आरजेडी का भला नहीं चाहेंगे
पप्पू यादव किसी न किसी बहाने लालू परिवार पर आक्षेप करते ही रहते हैं. हालांकि उसका टोन बहुत ज्यादा हार्ड नहीं होता है. लोकसभा चुनावों में उन्हें जो दर्द आरजेडी की तरफ से मिला था उसका दर्द उन्हें सालता रहता है. पप्पू यादव पूर्णिया सीट से महागठबंधन के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की जिद की वजह से उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा. हालांकि, उन्होंने आरजेडी उम्मीदवार बीमा भारती को हरा दिया. लेकिन तेजस्वी यादव ने उन्हें हराने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. जाहिर है कि पप्पू यादव आने वाले विधानसभा चुनाव में वो उसका बदला जरूर लेना चाहेंगे. विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस का झंडा बुलंद कर रहे पप्पू यादव ने आरजेडी को कुछ दिनों पहले ‘गदहा’ और कांग्रेस को ‘ऊंट’ से तुलना कर सबको चौंका दिया था.
हालांकि पप्पू यादव ने बाद में इसका मतलब बड़ी चालाकी के साथ समझाकर कांग्रेस और लालू यादव दोनों को खुश करने का भी प्रयास किया. पप्पू यादव से पत्रकारों ने पूछा कि क्या कांग्रेस इस बार के बिहार चुनाव में भी लालू यादव और आरजेडी के पीछे-पीछे ही चलेगी? इस सवाल के जवाब में पप्पू यादव ने कहा, ‘ये किसने कहा? कांग्रेस पार्टी ऊंट है. कांग्रेस बैठ भी जाती है तो गदहा से हमेशा ऊंचा ही रहेगी. हालांकि, बाद में उन्होंने बात को बदलने की पूरी कोशिश की पर बिहार की राजनीति में अब सबको पता है कि पप्पू यादव और लालू परिवार में छत्तीस का आंकड़ा है. कांग्रेस में जिस तरह पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को महत्व मिल रहा है उसे देखते हुए यह कहना मुश्किल नहीं है कि इस बार महागठबंधन की पार्टियों की राहें अलग हो सकती हैं.
4-कांग्रेस के अकेले लड़ने का नुकसान आरजेडी को ही नहीं बीजेपी को भी है
कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने का नुकसान वैसे तो महागठबंधन को होना तय है पर बीजेपी भी इससे अछूती रहेगी यह कहा नहीं जा सकता है. पिछले साल फरीदाबाद के सूरजकुंड में हुए बीजेपी के एक सम्मेलन में एक वरिष्ठ नेता ने कहा था कि बिहार में हमारी कोशिश होनी चाहिए कि कांग्रेस और आरजेडी अलग-अलग चुनाव लड़ें. दरअसल बिहार में बीजेपी का कोर वोटर्स सवर्ण हैं. उसी तरह कांग्रेस के भी कोर वोटर्स सवर्ण हैं. अगर कांग्रेस के कैंडिडेट सवर्ण जाति से संबंध रखते हैं और बीजेपी का कैंडिडेट किसी पिछड़ी जाति से है तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि एक बड़ा तबका जो बीजेपी को वोट देने वाला होगा वो कांग्रेस की ओर चला जाएगा. इसी तरह मुस्लिम और दलित वोटों में कांग्रेस की हिस्सेदारी बहुत तेजी से बढ़ रही है. अगर कांग्रेस मजबूत कैंडिडेट उतारती है तो आरजेडी को मुस्लिम और दलित वोटों से वंचित होना पड़ सकता है. इस तरह कांग्रेस का अकेले चुनाव लड़ना बीजेपी ही नहीं आरजेडी को भी नुकसान पहुंचा सकता है.