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तेलंगाना में बीजेपी ने माहौल बनाया पर रेवंत रेड्डी ने कमाल कर दिखाया

तेलंगाना में बंदी संजय कुमार ने बीजेपी के लिए जो जमीन तैयार की उस पर कांग्रेस ने अपनी फसल काट ली. ऐसा क्यों कहा जा रहा है? क्या वास्तव में बीजेपी मजबूत थी या कांग्रेस ने बीआरएस और बीजेपी के मिले होने के जो आरोप लगाए वो सही थे? क्‍या वाकई लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने बीआरएस का साथ पाने के लिए तेलंगाना चुनाव में पूरी ताकत नहीं लगाई?

कांग्रेस नेता रेवंत रेड्डी और बीजेपी नेता बंदी संजय कांग्रेस नेता रेवंत रेड्डी और बीजेपी नेता बंदी संजय
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 03 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 8:20 PM IST

तेलंगाना में भाजपा भले ये कहकर अपनी पीठ थपथपा रही हो कि उसने पिछले चुनाव में एक सीट से बढ़कर इस बार 7 सीटें जीत रही है, लेकिन ये उसकी हार है. भाजपा नेता बंदी संजय कुमार ने जो जमीन तैयार की थी, उसमें पार्टी को कम से कम 40 सीटें जीतनी थी. लेकिन बंदी संजय कुमार को पार्टी की महत्वपूर्ण जिम्मदारी से हटाकर बीजेपी ने अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार ली. दूसरी ओर बीजेपी से ही निकले रेवंत रेड्डी का साथ पाकर कांग्रेस ने तेलंगाना में हारी हुई बाजी जीत ली. 

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दरअसल बंदी संजय तेलंगाना में बीजेपी के प्रॉमिनेंट फेस माने जाते रहे हैं. बंदी संजय के नेतृत्व में तेलंगाना में बीजेपी अपनी जमीन तैयार कर रही थी. इसके लिए पीएम मोदी ने भी 2 बार बंदी की सार्वजनिक रूप से तारीफ की थी. 12 साल की उम्र में ही RSS के कार्यकर्ता बन चुके बंदी संजय को पार्टी की अंदरूनी राजनीति का शिकार होना पड़ा. तेलंगाना बीजेपी में उन्हें आउटसाइडर के रूप में देखा जाता रहा है. पर उनके काम करने की शैली ही थी कि ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसपल कॉर्पोरेशन के चुनावों में बीजेपी को 48 सीटों पर सफलता मिली थी.उन्होंने बीजेपी के लिए ऐसी जमीन तैयार की थी इस विधानसभा चुनावों में पार्टी कम से कम 40 सीटें जीत सकती थी पर ऐन चुनावों के पहले उनकी छुट्टी कर दी गई. कांग्रेस ने इसे बीआरएस और बीजेपी की मिलीभगत कहकर प्रचारित किया. जिसमें उसे जबरदस्त सफलता मिलती दिख रही है.

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1- बंदी संजय ने कैसे भाजपा के पक्ष में बनाया माहौल

तेलंगाना में बने नए सचिवालय की गुंबदनुमा बिल्डिंग पर सियासत और प्रजा संग्राम यात्रा ने पूरे तेलंगाना में बीजेपी के पक्ष में जबरदस्त बज क्रिएट किया. अपने आंदोलनों से बंदी संजय कुमार ने तेलंगाना सरकार की नाक में दम कर रखा था. उन्होंने जनता से वादा किया था कि बीजेपी सरकार आने पर निजाम की संस्कृति दर्शाने वाले सचिवालय की बिल्डिंग से गुंबद हटवा देंगे. करीमनगर से बीजेपी सांसद बंदी ने कहा था कि हम ऐसा बदलाव करेंगे जो भारत और तेलंगाना की संस्कृति के प्रतीक होंगे. जनता को उनकी इस तरह की बातें पसंद आ रही थीं. बंदी ने आरोप लगाया कि केसीआर ने ओवैसी को खुश करने के लिए जनसचिवालय को ताजमहल में बदल दिया था. बंदी संजय की प्रजा संग्राम यात्रा बीजेपी को पूरे राज्य में जमीन तैयार कर रही थी. यात्रा के दौरान उन्हें पुलिस ने हिरासत में लिया गया था. बीजेपी कार्यकर्ता उस दौरान पुलिस की इस कार्रवाई के विरोध में सड़कों पर उतर आए थे. 

2- हैदराबाद म्‍युनिसिपल चुनाव में भाजपा जीती भी

बंदी संजय कुमार के अभियानों और उनके कुशल नेतृत्व का ही कमाल था कि 150 सीटों वाले हैदराबाद निकाय में बीजेपी ने 48 सीटों पर कब्जा जमा लिया. इस निकाय में 2016 के पिछले चुनाव में बीजेपी सिर्फ चार सीटें ही जीत सकी थी. चार साल में बीजेपी ने अपना प्रदर्शन 11 गुना बढ़ा लिया था. वह सत्तारूढ़ दल तेलंगाना राष्ट्र समिति जिस अब भारत राष्ट्र समिति के नाम से जाना जाता है दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनना पड़ा. बीआरएस को 99 सीटों से कम होकर 55 सीटों तक सिमटना पड़ा. हालांकि असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहाद-उल-मुसलमीन की 44 सीटें पिछली बार की तरह बरकरार रही.कांग्रेस भी दो की दो सीटों पर ही सिमट गई है. यानी कि बीजेपी ने कांग्रेस की जगह ले ली थी.

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3- तीन उपचुनावों में 2 सीटें जीतकर बीआरएस की नींद उड़ाई

2020 में हैदराबाद निगम चुनाव में 48 सीटें जीतना ही नहीं इसके बाद हुए तीन उपचुनावों में दो सीटें झटक कर बंदी संजय कुमार ने केसीआर सरकार की नींद उड़ा दी थी. इस दौरान ही केसीआर के प्रमुख सहयोगी एवं प्रदेश सरकार के मंत्री एटला राजेंदर भी भाजपा के साथ खड़े हो गए. बस यही संजय कुमार के राजनीतिक जीवन में ग्रहण लगना शुरू हो गया.तेलंगाना में भाजपा पर वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई. बंदी संजय एवं एटला के मतभेद का स्तर इस तरह बढ़ गया कि प्रदेश भाजपा को नुकसान होने लगा. शक्ति संतुलन के लिए संजय को हटाकर प्रदेश की कमान केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी को सौंप दी. संजय के लोगों ने खुद को समेट लिया.यही कारण रहा कि विधानसभा चुनावों में भी संजय सक्रिय नहीं दिखे.

4- बंदी संजय के पर कतरे गए, और संयोग से रेवंथ रेड्डी जैसे युवा को कांग्रेस ने प्रमोट किया
 
हैदराबाद निगम चुनाव में भाजपा की बड़ी सफलता व विधानसभा उपचुनाव में तीन में दो सीटों पर कब्जे के बाद लगने लगा था कि तेलंगाना में भाजपा बड़ा विकल्प बनकर उभर रही थी. बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की सक्रियता और प्रदेश भाजपा की आक्रामक शैली से ऐसा लग रहा कि अब के.चंद्रशेखर राव सरकार के अंत का समय आ गया है.प्रदेश अध्यक्ष बंदी संजय ने लगातार अपने अभियानों के जरिए प्रदेश में सत्ता विरोधी माहौल बनाए रखा. पूरे पांच साल प्रदेश में विपक्ष के नाम पर कांग्रेस कहीं नहीं थी. लेकिन बीजेपी के कुछ गलत फैसलों का फायदा उठाने में हाशिये पर खड़ी कांग्रेस ने देर नहीं की. सधे कदमों से संघर्ष में खुद को आगे रखने के लिए बीजेपी से ही आए रेवंथ रेड्डी को प्रदेश की कमान सौंप दी और उन पर पूरा भरोसा रखते हुए फ्री हैंड काम करने दिया.

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5- लोकसभा चुनाव में बीआरएस से समर्थन की आस से भाजपा को नुकसान, कांग्रेस का फायदा

कर्नाटक की जीत से उत्साहित कांग्रेस तेलंगाना चुनाव को लेकर काफी उत्साहित थी. दिल्ली शराब घोटाले में फंसी मुख्यमंत्री केसीआर की पुत्री के. कविता के प्रकरण को कांग्रेस ने मुद्दा बनाया. तेलंगाना में माना जा रहा था कि कविता की गिरफ्तारी तय है, किंतु जब नहीं हुई तो कांग्रेस ने यह मैसेज दिया कि भाजपा और बीआरएस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा के नेताओं ने भी बिना नाम डिस्क्लोज किए दावा किया कि संजय की ओर से भी भाजपा के बीआरएस के साथ आंतरिक समझौते की बात फैलाई गई. भारतीय जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले विजयशांति ने आरोप लगाया कि जिस दिन भाजपा और बीआरएस के बीच समझौते के तहत बंदी संजय को राज्य पार्टी प्रमुख के पद से हटा दिया गया था, उसी दिन भाजपा ने तेलंगाना में दांव खो दिया था.

यह मान लिया गया कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा केसीआर और उनकी पार्टी को अपना अलायंस मानकर चल रही है. वह विधानसभा चुनाव में अधूरे मन काम कर रही है. उसका पूरा फोकस इसी बात पर है कि तेलंगाना में बीआरएस का साथ मिले. शायद भाजपा यह मानकर चल रही थी कि केसीआर चुनाव जीत ही जाएंगे. भाजपा और बीआरएस की इस जुगलबंदी ने कांग्रेस का भला कर दिया.

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