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तिरुपति लड्डू विवाद : पवन कल्याण की डिमांड के बहाने समझिए क्यों जरूरी हो गया सनातन धर्म रक्षा बोर्ड | Opinion

पवन कल्याण कोई पहले व्यक्ति नहीं हैं जो हिंदू मंदिरों की देखरेख के लिए अलग व्‍यवस्‍था की डिमांड कर रहे हैं. दरअसल भारत में मस्जिद, दरगाह और चर्च पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है लेकिन मठों-मंदिरों और गुरुद्वारों पर सरकार का नियंत्रण है. और इन सरकारी व्‍यवस्‍थाओं में मनमानी, अनियमितता और आस्‍थाओं की अनदेखी से श्रद्धालुओं में आक्रोश रहा है.

तिरुपति मंदिर के प्रसाद में मिलावट के आरोप के बाद सनातन धर्म रक्षा बोर्ड बनाने की मांग उठ रही है. तिरुपति मंदिर के प्रसाद में मिलावट के आरोप के बाद सनातन धर्म रक्षा बोर्ड बनाने की मांग उठ रही है.
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:15 PM IST

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया कि वाईएस जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली पिछली वाईएसआरसीपी सरकार के कार्यकाल के दौरान प्रसिद्ध तिरुमाला लड्डू तैयार करने के लिए इस्तेमाल किए गए घी में जानवर की चर्बी मिलाई जाती थी. हालांकि वाईएसआरसीपी ने इन आरोपों से इनकार किया है पर जांच रिपोर्ट इन तथ्यों की पुष्टि करते हैं. हो सकता है कि तत्कालीन सीएम जगनमोहन को इस मिलावट के संबंध में जानकारी न हो पर उनके ईसाई धर्मावलंबी होने के चलते हिंदू संगठनों को एक मौका तो मिल ही गया है. आंध्र प्रदेश के उप मुख्यमंत्री पवन कल्याण ने तिरुपति के श्री वेंकटेश्वर मंदिर के लड्डू प्रसाद में इस्तेमाल की गई अपवित्र सामग्री पर नाराजगी जताई है. कल्याण ने शुक्रवार को कहा कि अब समय आ गया है कि पूरे भारत में मंदिरों से जुड़े सभी मुद्दों पर विचार करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अविलंब ‘सनातन धर्म रक्षा बोर्ड’ का गठन किया जाए.

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पवन कल्याण ने सोशल मीडिया वेबसाइट एक्स पर लिखा 'यह समूचा प्रकरण मंदिरों के अपमान, भूमि संबंधी मुद्दों और अन्य धार्मिक प्रथाओं से जुड़े कई मुद्दों पर चिंतनीय प्रकाश डालता है. अब समय आ गया है कि पूरे भारत में मंदिरों से जुड़े सभी मुद्दों पर विचार करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अविलंब ‘सनातन धर्म रक्षा बोर्ड’ का गठन किया जाए. सभी नीति निर्माताओं, धार्मिक प्रमुखों, न्यायपालिका, आम नागरिकों, मीडिया और अपने-अपने क्षेत्रों के अन्य सभी दिग्गजों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एक सार्थक बहस होनी चाहिए.' कल्याण की जिस सनातन धर्म बोर्ड को राष्ट्रीय स्तर पर बनाने की डिमांड कर रहे हैं उसके बारे में अभी स्पष्ट नहीं है कि उसके क्या अधिकार मिलेंगे. पर अभी तक जो डिमांड होती रही है उसके अनुसार यही लगता है कि इस बोर्ड में हिंदू मंदिरों को सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त कराने की दिशा में एक कदम होगा.

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पवन कल्याण कोई पहले व्यक्ति नहीं हैं जो इस तरह की डिमांड कर रहे हैं . इसके पहले भी हिंदू मंदिरों को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त करने की डिमांड होती रही है. दरअसल भारत में मस्जिद, दरगाह और चर्च पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है लेकिन मठों-मंदिरों और गुरुद्वारों पर सरकार का नियंत्रण है. यही बात हिंदुओं को खटकती रही है. 

सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने इस संबंध में मठों और मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है। उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि धर्मनिरपेक्ष देश में जब संविधान किसी भी तरह के धार्मिक भेदभाव की मनाही करता है तब पूजा स्थलों के प्रबंधन को लेकर भेदभाव क्यों होना चाहिए? याचिका में मांग की गई है कि जैसे मुस्लिमों और ईसाईयों द्वारा अपने धार्मिक स्थलों, प्रार्थना स्थलों का प्रबंधन बिना सरकारी दखल के किया जाता है वैसे ही हिंदुओं को भी अपने धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन और प्रशासन का अधिकार होना चाहिए.

एक अनुमान के मुताबिक देश के 15 राज्यों में करीब चार लाख मंदिरों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सरकारी नियंत्रण है. सुप्रीम कोर्ट हिंदू मंदिरों पर सरकारी कब्जे को कई मौकों पर अनुचित कह चुका है. 2019 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर मामले में जस्टिस ( रिटायर्ड) बोबडे ने कहा था, ‘मैं नहीं समझ पाता कि सरकारी अफसरों को क्यों मंदिर का संचालन करना चाहिए?’ उन्होंने तमिलनाडु का उदाहरण दिया कि सरकारी नियंत्रण के दौरान वहां अनमोल देव-मूर्तियों की चोरी की अनेक घटनाएं होती रही हैं.  जग्गी वासुदेव अपने एक ऑर्टिकल में कुछ पुलिस अफसरों कि किताब के हवाले से लिखते हैं कि तमिलनाडु के मंदिरों से हजारों मूर्तियां चोरी हो गईं उनकी जगह चुपके से डुप्लीकेट मूर्तियां लगा दी गईं हैं. हिंदू संगठनों का मानना है कि  ऐसी स्थितियों का कारण भक्तों के पास अपने मंदिरों के संचालन का अधिकार न होना है. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में तमिलनाडु के प्रसिद्ध नटराज मंदिर पर सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का आदेश दिया था.लेकिन हजारों मंदिर अभी भी सरकार के नियंत्रण में है.

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1947 में भारत को आजादी मिली और 1950 में हमें अपना संविधान मिला.संविधान के अनुच्छेद 26 के अनुसार सरकार किसी भी धर्म की धार्मिक प्रथा में हस्तक्षेप नहीं कर सकती. इस अनुच्छेद के बल पर हिंदुओं ने अपना मंदिर वापस ले लिया. लेकिन 1951  में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1951  पास कर दिया . इस अधिनियम के बनने के बाद राज्यों को अधिकार मिल गए कि वो किसी भी मंदिर को अपने अधीन ले सकते हैं. जबकि यह कानून मस्जिद और चर्च को अपने अधीन लेने का अधिकार नहीं देता है. इसी अधिनियम का सहारा लेकर राज्य सरकार किसी भी धर्म के व्यक्ति को प्रशासक, अध्यक्ष या प्रबंधक नियुक्त कर सकता है. 

 फिलहाल सनातन धर्म रक्षा बोर्ड को कम से कम शिरोमणि गुरद्वारा प्रबंधक बोर्ड जैसे अधिकार तो मिल ही जाने चाहिए. हालांकि सिखों को भी देश में ईसाइयों और मुसलमानों जैसे धार्मिक अधिकार नहीं मिले हुए हैं. फिर भी एक तुलनात्मक उदाहरण देख सकते हैं. वासुदेव जग्गी महाराज लिखते हैं कि तमिलनाडु सरकार के अधीन 44,000 मंदिर हैं, जिनमें आधे मिलियन एकड़ से अधिक भूमि है. लेकिन इनसे कुल वार्षिक राजस्व केवल 128 करोड़ रुपये है. इसके विपरीत, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के पास 85 गुरुद्वारे हैं, लेकिन उनका बजट 1,000 करोड़ रुपये से अधिक है. 44,000 मंदिर, जो 87 प्रतिशत आबादी से संबंधित हैं, का केवल 128 करोड़ रुपये का राजस्व, प्रशासन की खराबी को दर्शाता है.

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