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हरियाणा चुनाव की हार के बाद उद्धव ठाकरे और केजरीवाल का राहुल गांधी के लिए दो टूक पैगाम | Opinion

हरियाणा की हार और जम्‍मू-कश्‍मीर में नेशनल कांफ्रेंस के भरोसे मिली कामयाबी साबित करती है कि कांग्रेस का परफॉर्मेंस सहयोगियों के भरोसे ही रहता है - और यही वजह है कि राहुल गांधी को उद्धव ठाकरे और अरविंद केजरीवाल की बातें सुननी पड़ रही हैं.

हरियाणा में हार मिलते ही राहुल गांधी को नसीहतें मिलने लगी हैं. हरियाणा में हार मिलते ही राहुल गांधी को नसीहतें मिलने लगी हैं.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 08 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 10:41 PM IST

जीत सन्नाटे में भी जश्न का एहसास कराती है, और हार एक साथ कई मुसीबतें लेकर आती है. नसीहत भी ऐसी ही एक मुसीबत है - और राहुल गांधी को अभी से हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद मिलने लगी है.

हरियाणा की हार और जम्‍मू-कश्‍मीर में नेशनल कांफ्रेंस के भरोसे मिली कामयाबी साबित करती है कि कांग्रेस का परफॉर्मेंस सहयोगियों के भरोसे ही रहता है. लोकसभा चुनाव में भी उसे यूपी जैसे राज्‍य में जो कामयाबी मिली, वो भी समाजवादी पार्टी जैसे मजबूत क्षेत्रीय दल के भरोसे ही थी. 

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ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी जिस तेजी से आगे बढ़ रहे थे, उस चाल पर लगाम डालने और उन्‍हें थोड़ा दायरे में रहने का पैमाग लेकर इंडिया गठबंधन के सहयोगी हाजिर हुए हैं. ये कोई और नहीं, आगामी महाराष्‍ट्र और दिल्‍ली विधानसभा चुनाव में उनके संभावित सहयोगी शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और आम आदमी पार्टी हैं. राहुल गांधी के लिए उनका पैगाम इसलिए भी खास हो जाता है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस अगर कोई मोलभाव करे, तो वह अपनी सीमाओं का ख्‍याल जरूर रखे.

INDIA ब्लॉक के नेताओं के निशाने पर आये राहुल गांधी?

लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद राहुल गांधी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुखातिब होकर कहा करते थे कि अब गुजरात में भी बीजेपी को हराएंगे, तो आलम ये था कि INDIA ब्लॉक के नेता बड़े शौक से सुनते रहे, लेकिन हरियाणा की एक हार ने तो लगता है जैसे हवा का रुख ही बदल दिया है. नसीहतों का ये सिलसिला ऐसे नेताओं की तरफ से शुरू हुआ है जो खुद अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं.

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राहुल गांधी को सलाहियत भरे पहले दो संदेश उद्धव ठाकरे और अरविंद केजरीवाल की तरफ से मिले हैं. उद्धव ठाकरे को तो बोलने का मौका इसलिए मिल गया है क्योंकि लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के लोगों की सहानुभूति मिल गई, लेकिन अरविंद केजरीवाल का क्या कहा जाये? हरियाणा में तो आज तक खाता नहीं खोल पाये, और जेल से छूट कर चुनाव कैंपेन के करने के बावजूद दिल्ली में एक भी सीट हासिल नहीं कर पाये - और पंजाब में भी कोई उल्लेखनीय कामयाबी नहीं मिल पाई थी. 

राहुल गांधी को लेकर उद्धव ठाकरे और अरविंद केजरीवाल की बातें फिलहाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं, क्योंकि जल्दी ही महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं. हरियाणा में कांग्रेस की हार को लेकर अरविंद केजरीवाल के बाद अब संजय सिंह भी मोर्चे पर उतर चुके हैं, कांग्रेस के स्टैंड को धिक्कार रहे हैं. 

हरियाणा में कांग्रेस की हार पर अरविंद केजरीवाल का कहना है, 'किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं लेना चाहिये.'  

अव्वल तो अरविंद केजरीवाल कोई गलत बात नहीं कह रहे हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या ऐसा बोलने का उनको हक है. ये तो हर कोई मान रहा है कि कांग्रेस का अति आत्मविश्वास ही उसे ले डूबा है, ठीक यही बात यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी बीजेपी की लोकसभा चुनाव में हार को लेकर कहे थे. 

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अरविंद केजरीवाल के बाद आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह कांग्रेस नेतृत्व को बता रहे हैं कि अगर कांग्रेस ने हरियाणा में आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी को साथ लिया होता तो, नतीजे और होते. 

ये तो है ही कि अखिलेश यादव भी हरियाणा चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए कुछ सीटें चाह रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने साफ मना कर दिया. वैसे आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन की पेशकश तो राहुल गांधी ने ही की थी, और संजय सिंह ने स्वागत भी किया था लेकिन सीटों पर बात नहीं बनी और समझौता नहीं हो सका.

अब संजय सिंह कह रहे हैं कि अगर अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के लिए प्रचार करते तो सीटों के नंबर भी ज्यादा आये होते. बात तो सही है. और गठबंधन न होने का नतीजा ये हुआ कि जो आम आदमी पार्टी कांग्रेस की मददगार होती, वही पूरे हरियाणा में घूम घूम कर वोट काटती रही. 

और वैसे ही उद्धव ठाकरे की ओर से भी कहा गया है कि कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि जहां जहां उसकी बीजेपी से डायरेक्‍ट फाइट है, उसमें क्‍या कमी रह जाती है... कांग्रेस को हरियाणा चुनाव पर ठीक से ध्‍यान देना था.

INDIA ब्लॉक के नेताओं के निशाने पर क्यों हैं राहुल गांधी?

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हरियाणा के बाद राहुल गांधी ने महाराष्ट्र का रुख किया है, और बीजेपी के खिलाफ फिर से आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है. कभी सावरकर के नाम पर बयान देकर घिर जाने वाले राहुल गांधी अब छत्रपति शिवाजी का नाम लेकर बीजेपी पर हमले बोल रहे हैं. 

राहुल गांधी से उद्धव ठाकरे की चिढ़ मचे होने की कई वजहें हैं. उद्धव ठाकरे चाहते थे कि महाविकास आघाड़ी की तरफ से उनको मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाये. शरद पवार तो तैयार नहीं ही हुए, राहुल गांधी ने भी उनकी कोई मदद नहीं की. सिर्फ इसी काम के लिए वो बेटे और साथी संजय राउत के साथ दिल्ली भी आये थे. 

और अब विधानसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा होना है, उद्धव ठाकरे हरियाणा की हार के नाम पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हुआ करते थे तब सबसे ज्यादा शरद पवार की चलती थी, और कांग्रेस को दब कर ही रहना होता था. 

एक बार तो उद्धव ठाकरे, राहुल गांधी के एक बयान से नाराज तक हो गये बताये जा रहे थे, और तब राहुल गांधी ने आदित्य ठाकरे को फोनकर अपना पक्ष रखा था. हालांकि, उद्धव ठाकरे को ये नहीं भूलना चाहिये कि लोकसभा चुनाव के जिन नतीजों को लेकर वो बोलने लायक हुए हैं, उसमें कांग्रेस का प्रदर्शन उनकी और शरद पवार की पार्टी दोनो के मुकाबले बहुत बेहतर रहा है.  

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