
UP By Election Result 2024: उत्तर प्रदेश में 9 सीटों पर होने वाले उपचुनाव इस बार योगी आदित्यनाथ के लिए जीवन मरण का प्रश्न बन गया था. पर जिस तरह के रुझान आ रहे हैं उससे यही लगता है कि योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में कमाल कर दिया है. खबर लिखे जाने तक सिर्फ करहल और सीसामऊ में समाजवादी पार्टी बीजेपी से आगे है. शेष सभी सीटों पर बीजेपी अपने निकटम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी से आगे चल रही है. फिलहाल लोकसभा चुनावों में जिस तरह की फजीहत बीजेपी और योगी को सहनी पड़ी थी अब शायद उपचुनावों के परिणाम उस ट्रॉमा से पार्टी को बाहर निकल सके. योगी ने लोकसभा चुनावों के तुर्ंत बाद ही ठान लिया था कि उपचुनावों की सभी सीटें जीतनी हैं और उन्होंने यह कर दिखाया. फिलहाल यह कैसे संभव हुआ आइये देखते हैं.
1- बीजेपी ने एकजुट हो कर मोर्चा संभाला
भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी कलह का असर इन चुनावों में नही्ं दिखा. सभी ने एकजुट होकर जमकर प्रचार किया. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव के अंतिम हफ्ते में योगी ने 5 दिन में 15 रैली की. योगी सरकार ने नौ सीटों पर सरकार के 30 मंत्रियों की टीम-30 को मैदान में उतारा था. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी सभी नौ सीटों पर एक-एक चुनावी सभा को संबोधित किया. उनका पूरा जोर फूलपुर और मझवां सीट पर रहा है. उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी उपचुनाव में नौ सीटों पर एक-एक रैली की. दूसरी ओर आरएसएस भी इस बार पूरे जोर शोर के साथ बीजेपी प्रत्याशियों के प्रचार में लगा हुआ था. लोकसभा चुनावों के दौरान आरएसएस की नामौजूदगी का नतीजा रहा कि बीजेपी को बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ा था.
2- बंटेंगे तो कटेंगे का नारा और स्थानीय राजनीति
योगी आदित्यनाथ का नारा बंटेंगे तो कटेंगे की चर्चा यूपी से अधिक महाराष्ट्र के चुनावों में थी.उत्तर प्रदेश में इस नारे की चर्चा ही नहीं होती विशेषकर उपचुनावों में तो बिल्कुल भी नहीं . पर इस नारे को जीवनदान यूपी में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने दे दी.अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ने इस नारे को खिल्ली समझ कर इसका खूब मजाक उड़ाया. ये केवल अपने कोर वोटर्स को खुश करने के लिए किया गया पर उल्टा पड़ गया. दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ ने लगातार कानून व्यवस्था और बेरोजगारी पर अपने को फोकस रखा. पुलिस की वैकेंसी आई और परीक्षा हुआ उसका रिजल्ट भी आया. छात्रों की मांग पर एक परीक्षा को कैंसल किया गया तो नॉर्मलाइजेश पर रोक भी लगाई गई. योगी आदित्यनाथ तमाम आलोचनाओं के बाद भी बुलडोजर न्याय और एनकाउंट न्याय पर अडिग रहे. जो उनकी यूएसपी बन चुकी है. जाहिर है कि योगी आदित्यनाथ की यही शैली लोगों को पसंद आती है.
3- अखिलेश के 'PDA' पर बीजेपी का ओबीसी फर्स्ट भारी पड़ा
लोकसभा चुनावों में ये कहा गया कि अखिलेश का पीडीए फॉर्मूला काम कर गया. इसलिए ये लड़ाई अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले की भी थी. जो इस बार बीजेपी के ओबीसी फर्स्ट फार्मूले के सामने बिखरती नजर आई. ऐसा समझा जा रहा था उप चुनाव में अगर पीडीए फॉर्मूला सफल रहा तो 2027 तक इसी लाइन पर राजनीति आगे बढ़ेगी. पर अब बीजेपी अपने ओबीसी फर्स्ट फॉर्मूले को और आगे बढ़ाएगी. इस विधानसभा उपचुनावों में नौ सीटों पर 90 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला था. सभी नौ सीटों पर बीजेपी-एसपी और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला रहा पर सीधी टक्कर बीजेपी और एसपी के बीच ही रही. 2022 विधानसभा चुनावों में इन 9 सीटों में 4 सीटें समाजवादी पार्टी के पास हैं. जबकि एनडीए के पास 5 सीटें थीं. जिसमें बीजेपी के पास तीन और सहयोगी दलों के पास दो सीटें थीं
टिकटों के बंटवारे में अखिलेश ने मुस्लिम कार्ड खेला है तो वहीं बीजेपी ने ओबीसी पर दांव लगा दिया. बीजेपी ने सबसे ज्यादा 5 उम्मीदवार ओबीसी उतारे हैं. जबकि एक दलित और 3 अगड़ी जाति के हैं. मुस्लिम को बीजेपी ने कोई टिकट नहीं दिया है. वहीं समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा 4 उम्मीदवार मुस्लिम उतारे हैं. इसके अलावा ओबीसी 3, दलित 2 उम्मीदवार हैं जबकि अगड़ी जाति को एक भी टिकट नहीं दिया है. टिकट बंटवारे में यह संदेश गया कि समाजवादी पार्टी मुस्लिम परस्त पार्टी है. जिस ओबीसी जाति जनगणना को लेकर विपक्ष बीजेपी को घेर रहा है वहां बीजेपी ने ओबीसी पर ही दांव लगा दिया. संदेश गया कि अखिलेश पीडीए में ओबीसी को मुस्लिम से बैलेंस कर रहे हैं.
4- लोकसभा चुनाव वाली विपक्षी एकता नहीं दिखी, कांग्रेस को अलग रखना भारी पड़ गया
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के दौरान जिस तरह की एका विपक्षी दलों विशेषकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच देखी गई वो इस बार नहीं थी. अखिलेश यादव को इस बात का गुमान रहा कि वो हर हाल में उपचुनाव अकेले ही जीत जाएंगे. यही कारण रहा कि कांग्रेस के साथ उपचुनावों में उन्होंने में सीट शेयरिंग करना उचित नहीं समझा. अखिलेश यादव को ऐसा लग रहा था कि अगर कांग्रेस को यूपी में ज्यादा मौका दिए तो वह एक दिन उनको ही खा जाएगी. कल की चिंता करके अखिलेश ने अपना वर्तमान भी खराब कर लिया. लोकसभा चुनावों के दौरान रायबरेली और अमेठी और अन्य संसदीय सीटों पर कांग्रेस को मिले बंपर वोट इस बात के सबूत थे कि वे केवल समाजवादी पार्टी के सपोर्ट के चलते नहीं मिले थे. लोग चाहते थे कि कांग्रेस भी लड़ाई में रहे. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के विकल्प के रूप में बहुत से लोग कांग्रेस को देखते हैं. अगर समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस का साथ लिया होता तो हो सकता है कि तस्वीर कुछ और होती. भारतीय जनता पार्टी ने आरएलडी को साथ लेने में बड़े भाई की भूमिका बनाए रखी पर अखिलेश ने यह दिल नहीं दिखाया.