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ट्रंप ने गाजा में संघर्ष विराम के लिए नेतन्याहू को एक पल में कैसे मनाया? सामने आई सच्चाई

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पद ग्रहण करने से पहले नेतन्याहू को गाजा में युद्ध विराम के लिए मना लिया था. लेकिन पद संभालते ही गाजा को लेकर उनके तेवर बदल गए और अब तो उन्होंने गाजा पर कब्जा करने की बात कह दी है. उनके बयानों से दुनिया जहां हैरान है तो वहीं, इजरायल खुश हो रहा है.

डोनाल्ड ट्रंप संघर्ष विराम के बाद नेतन्याहू को पुरस्कृत करने के लिए हर कोशिश कर रहे हैं (Photo- Reuters) डोनाल्ड ट्रंप संघर्ष विराम के बाद नेतन्याहू को पुरस्कृत करने के लिए हर कोशिश कर रहे हैं (Photo- Reuters)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 5:47 PM IST

डोनाल्ड ट्रंप ने 4 फरवरी को इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ एक बयान जारी कर दुनिया को चौंका दिया था. बयान में उन्होंने कहा था कि अमेरिका गाजा पट्टी को 'मध्य पूर्व के Riviera (छुट्टियां बिताने के लिए रिजॉर्ट जैसी जगह)' में बदल देगा और इसके लिए फिलिस्तीनियों को कहीं और बसाने के बाद गाजा पर कब्जा करेगा और उसका मालिक बनेगा.

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दुनिया भर में ट्रंप के इस बयान की निंदा की गई, कई लोगों ने इसे विचित्र, हास्यास्पद, अविश्वसनीय बताया. यहां तक कि अमेरिका के सबसे कट्टर सहयोगी ब्रिटिश प्रधानमंत्री किएर स्टारमर ने भी इसका समर्थन करने से इनकार कर दिया. 

उन्होंने कहा, 'उन्हें [फिलिस्तीनियों] को घर जाने देना चाहिए, गाजा के पुनर्निर्माण की अनुमति दी जानी चाहिए, और हमें दो-राज्य समाधान की दिशा में पुनर्निर्माण में उनका साथ देना चाहिए.'

फिलिस्तीन के लड़ाकू संगठन हमास ने ट्रंप के बयान की निंदा करते हुए कहा, 'यह योजना क्षेत्र में अराजकता और तनाव पैदा करने का नुस्खा है, गाजा के लोग ऐसी योजनाओं को पारित नहीं होने देंगे.'

हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने मौजूदा कार्यकाल में गाजा को "साफ" करने का संकेत दिया है. ट्रंप का पहला कार्यकाल भी फिलिस्तीन के मुद्दे पर कुछ ऐसा ही रहा था-

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ट्रंप 1.0 और फिलिस्तीन

जनवरी 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति का पद संभालने के तुरंत बाद ट्रंप ने इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दे को प्राथमिकता दी. मई 2017 की शुरुआत में, उन्होंने फिलिस्तीन प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास की मेजबानी की और बैठक के दौरान इस बात पर जोर दिया कि वे “व्यक्तिगत रूप से इजरायलियों और फिलिस्तीनियों को शांति हासिल करने में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और कोई भी शांति समझौता केवल इजरायलियों और फिलिस्तीनियों के बीच सीधी बातचीत से ही संभव है”.

लेकिन ट्रंप के नेतृत्व में इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दे का समाधान मिलने का भ्रम तब टूट गया जब उन्होंने 6 दिसंबर, 2017 को येरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में औपचारिक रूप से मान्यता देने और अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से वहां स्थानांतरित करने के अपने दोहरे फैसले की घोषणा की. ट्रंप के इस फैसले से पूरी दुनिया हैरान रह गई.

इसके तुरंत बाद, ब्रसेल्स में अरब और यूरोपीय विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद फरवरी 2018 में  “ट्रंप शांति योजना” पेश की गई. इसने संकेत दिया कि अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय एक फिलिस्तीनी देश को मान्यता देंगे और पूर्वी यरुशलम को इसकी राजधानी के रूप में स्वीकार करेंगे. योजना में यरुशलम के पुराने शहर को अंतरराष्ट्रीय संरक्षण में रखने का भी आह्वान किया गया और यह भी कहा गया कि इजरायल यरुशलम को अपनी राजधानी बनाए रखेगा.

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ट्रंप प्रशासन ने इस प्रस्तावित प्लान को 'डील ऑफ द सेंचुरी' कहा जबकि फिलिस्तीनी प्राधिकरण ने इस योजना की भारी निंदा की. प्राधिकरण ने इसे फिलिस्तीनी मुद्दे को खत्म करने के एक साजिश के रूप में देखा. इस योजना को आधिकारिक तौर पर 20 जनवरी, 2020 को राष्ट्रपति ट्रंप ने 'शांति से समृद्धि' के रूप में प्रस्तुत किया था.

हालांकि, जिस निर्णय ने फिलिस्तीनियों के हित को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया, वह था सितंबर 2020 में अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर. समझौतों के तीन स्पष्ट उद्देश्य थे: पहला, अरब दुनिया के साथ इजरायल की स्वीकृति और सामंजस्य स्थापित करना; दूसरा, क्षेत्र में विमर्श की सुई को फिलिस्तीन मुद्दे से आगे ले जाना; और तीसरा, ईरान को दुश्मन नंबर एक के रूप में स्थापित करना.

मई 2018 में इजरायल के इशारे पर ट्रंप का ईरान परमाणु समझौते को एकतरफा रद्द करना इसी रणनीति का अहम हिस्सा था.

...तो इसलिए गाजा में युद्ध विराम पर राजी हुए नेतन्याहू

ट्रंप के पहले कार्यकाल में गाजा को लेकर उनकी रणनीति की दो बातें अहम थीं- पहला यह सुनिश्चित करना कि इजरायल और नेतन्याहू को वो सब मिले जो उन्हें किसी भी पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति से नहीं मिल पाया, क्षेत्र में किसी भी चीज के लिए पूर्ण समर्थन, और फिलिस्तीन मुद्दे को हाशिए पर रखना. दूसरा, ईरान को दुश्मन नंबर एक के रूप में टार्गेट करना, चाहे परमाणु समझौते को रद्द करने के जरिए हो या अधिकतम दबाव नीति के जरिए.

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इसलिए ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में जो कर रहे हैं, उसमें हैरानी की बात नहीं है. यह इस बात का भी संकेत है कि ट्रंप के मध्य पूर्व दूत स्टीव विटकॉफ ने नेतन्याहू को गाजा में युद्ध विराम समझौते पर सहमत होने के लिए क्यों और कैसे मजबूर कर दिया. शायद नेतन्याहू को युद्ध विराम की कीमत से भी ज्यादा बड़े इनाम के वादा किया गया होगा जिससे वो समझौते पर हस्ताक्षर करने को तैयार हो गए.

ट्रंप 2.0 और गाजा

राष्ट्रपति बनने से पहले ही ट्रंप गाजा को लेकर निशाने पर थे. चुनाव अभियान के दौरान, उन्होंने गाजा युद्ध से निपटने के लिए बाइडेन प्रशासन की आलोचना की और दावा किया कि अगर वो राष्ट्रपति होते तो युद्ध नहीं होता. चुनाव के बाद के कुछ सर्वेक्षणों से पता चलता है कि गाजा युद्ध भी ट्रंप की जीत में भूमिका निभाने में अहम रहा है.

राष्ट्रपति का पदभार संभालने से पहले ही उन्होंने धमकी दी थी कि अगर उनके पदभार संभालने से पहले युद्ध विराम लागू नहीं हुआ तो बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा. दुनिया को अपनी कूटनीति दिखाने के लिए ट्रंप ने युद्ध विराम समझौता भी करा लिया.

हालांकि, पद संभालने के तुरंत बाद, गाजा के प्रति ट्रंप का नजरिया और लहजा बदल गया और कई लोग हैरान रह गए हैं, सिवाय इजरायल के जो चुपचाप देख रहा है कि कैसे चीजें उसके पक्ष में होती जा रही हैं.

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शपथ ग्रहण समारोह के ठीक बाद 20 जनवरी को पत्रकारों से अपनी पहली बातचीत में उन्होंने गाजा युद्ध विराम पर संदेह जताते हुए कहा था कि उन्हें विश्वास नहीं है कि गाजा युद्ध विराम कायम रहेगा. उन्होंने कहा कि चल रहा संघर्ष “हमारा युद्ध नहीं है, यह उनका युद्ध है”, और इसके बाद 25 जनवरी को ट्रंप ने एक और चौंकाने वाला बयान दिया जिसमें उन्होंने कहा कि  गाजा एक 'विध्वंस स्थल' है जिसे खाली कर दिया जाना चाहिए.

उन्होंने जॉर्डन, मिस्र और अन्य अरब देशों से गाजा पट्टी से आने वाले फिलिस्तीनी शरणार्थियों को और अधिक शरण देने को कहा. उन्होंने कहा कि गाजा की 15 लाख आबादी को क्षेत्र से हटा लेना चाहिए ताकि युद्ध में बर्बाद क्षेत्र को साफ किया जा सके. हालांकि, मिस्र और जॉर्डन ने इसकी आलोचना करते हुए इसे खारिज कर दिया था.

ट्रंप ने गाजा पर कब्जा करने का भी आह्वान किया है और वो गाजा को लेकर आगे भी बहुत कुछ कह सकते हैं. उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि वो वेस्ट बैंक को लेकर बड़ी घोषणा कर सकते हैं. ट्रंप संभवतः पूरे वेस्ट बैंक में इजरायल के अधिकार को मान्यता दे सकते हैं. अगर वो ऐसा करते हैं तो गाजा को अमेरिकी क्षेत्र और वेस्ट बैंक को इजरायली क्षेत्र में बदल दिया जाएगा, जिससे फिलिस्तीन के स्वतंत्र राष्ट्र की कोई भी उम्मीद हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी!

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दुख की बात है कि कोई भी देश इस मामले में हस्तक्षेप करने या कठिन सवाल पूछने को तैयार नहीं है. हमें यह याद रखना चाहिए कि उन्होंने अपने पहले कार्यकाल के दौरान गोलान हाइट्स पर इजरायल के कब्जे को मान्यता दे दी थी और यह इलाका सीरिया से छिन गया था.

अब क्या?

ट्रम्प के काम और बयान क्षेत्र के लिए भड़काऊ हैं, कम से कम कहें तो, और दो-राज्य समाधान की दिशा में काम करने के उनके वादे के उलट हैं. यह इजरायल और सऊदी अरब के बीच सामान्यीकरण समझौते के उनके प्लान से भी मेल नहीं खाता. सऊदी अरब ने अमेरिका में लगभग 500 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की थी जो शायद अब सफल न हो, क्योंकि सऊदी अरब ने साफ कर दिया है कि जब तक फिलिस्तीन मुद्दे का समाधान नहीं हो जाता, तब तक सऊदी इस तरह का कोई काम नहीं करेगा.

ट्रंप का दावा है कि वह एक ऐसे राष्ट्रपति हैं जो युद्ध शुरू करने के बजाय उन्हें समाप्त करते हैं. अगर इजरायली सेनाएं युद्ध विराम के पहले चरण के बाद गाजा को "साफ" करने के लिए फिर से गाजा में जाती हैं, तो फिर से व्यापक युद्ध छिड़ सकता है और स्थितियां पहले से भी मुश्किल हो सकती है. इसका नतीजा ये भी हो सकता है कि अब तक के युद्ध में चुप रहे अरब देश भड़क सकते हैं.

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इससे भी बड़ी बात ये है कि इससे हमास जैसे समूहों को नया जीवन मिल सकता है, जो खुद को गाजा और उसके लोगों के रक्षक के रूप में पेश करेंगे. यह युद्ध में अब तक इजरायल और अमेरिका के सभी कोशिशों पर पानी फेर देगा.

ट्रंप और उनका प्रशासन इजरायल की वफादारी और गाजा युद्ध विराम के लिए उसे पुरस्कृत करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है. अब नेतन्याहू को अचानक अपने राजनीतिक जीवन में नई शुरुआत मिल गई है. उनका धुर-दक्षिणपंथी गठबंधन खुश है, और एक-राज्य समाधान अब संभव लगता है.

ट्रंप को एक विकल्प चुनना होगा. उन्हें यह तय करना होगा कि राष्ट्रपति के रूप में और अमेरिका के दीर्घकालिक हितों के लिए क्या अधिक जरूरी है. फिर उसी हिसाब से उन्हें अपनी रणनीति बनानी होगी कि क्षेत्र में व्यापक शांति चाहते हैं या इजरायल को अंधा समर्थन देना चाहते हैं जो कभी न खत्म होने वाले युद्ध का कारण बन सकता है.

(लेखक: कर्नल राजीव अग्रवाल (सेवानिवृत्त). अपने 30 साल के करियर में राजीव अग्रवाल ने सैन्य खुफिया विभाग में निदेशक और विदेश मंत्रालय में निदेशक के अलावा अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं.)

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