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योगी आदित्यनाथ के मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर केशव प्रसाद मौर्य क्या जताना चाहते हैं?

यूपी बीजेपी की गुटबाजी खत्म होना तो दूर, दिन पर दिन स्थिति गंभीर रूप लेती जा रही है. ऐसी कई घटनाएं देखने को मिली हैं जिससे साफ है कि योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य अलग अलग रास्ते पर चल रहे हैं - जैसे एक दूसरे को लगातार चैलेंज कर रहे हों.

उपचुनाव पर कहीं भारी न पड़े, यूपी बीजेपी का झगड़ा उपचुनाव पर कहीं भारी न पड़े, यूपी बीजेपी का झगड़ा
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 24 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 2:33 PM IST

यूपी बीजेपी की लड़ाई नेक्स्ट लेवल की तरह बढ़ रही है. मुश्किल ये है कि आगे खतरे का निशान भी है - और ये सब ऐसे वक्त हो रहा है जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 10 सीटों के लिए जल्दी ही उपचुनाव होने जा रहे हैं. 

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को जो भी समझा बुझाकर दिल्ली से लखनऊ भेजा हो, लेकिन लगता नहीं कि आग बुझाने के लिए पानी डालने की कोई कोशिश हुई हो, या फिर पानी डालने का भी कोई असर हो रहा हो. 

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योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य की तकरार तेज ही होती जा रही है. यूपी बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी भी मीटिंग कर रहे हैं, लेकिन वहां भी गुटबाजी हावी नजर आ रही है. और ये गुटबाजी सिर्फ पार्टी तक ही नहीं सीमित लगती है, बल्कि असर तो सहयोगी दलों पर भी हो रहा है. 

केशव प्रसाद मौर्य ने एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें वो अपनी ही सरकार के उस मंत्रालय से जानकारी मांग रहे हैं जो विभाग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास है. केशव मौर्य से पहले बीजेपी की सहयोगी अपना दल नेता और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल भी ऐसे पत्र लिख चुकी हैं - और मिलता जुलता ही रंग ढंग यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर भी दिखा रहे हैं. 

यूपी बीजेपी का झगड़ा सुलझाने के लिए कोशिशें तो आरएसएस की तरफ से भी हो रही हैं, लेकिन अभी तक उसका कोई असर तो नहीं ही नजर आ रहा है - बाद में जो भी हो अभी तो लगता है ये झगड़ा उपचुनावों में ही भारी पड़ने वाला है. लोकसभा चुनाव में बुरी शिकस्त मिलने के बाद बीजेपी के लिए यूपी में ये नई और बड़ी चुनौती है. 

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1. केशव मौर्य ने चिट्ठी क्यों लिखी?

डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने यूपी सरकार के नियुक्ति और कार्मिक विभाग को चिट्ठी लिखकर सभी विभागों में आउटसोर्सिंग और संविदा कर्मचारियों की संख्या और उनमें आरक्षण का पालन किये जाने से जुड़ी जानकारी मांगी है.

अपनी चिट्ठी में डिप्टी सीएम ने लिखा है, मैंने 11 अगस्त, 2023 को ये मुद्दा विधान परिषद में उठाया था, और अधिकारियों से जानकारी चाही थी, लेकिन जानकारी न मिल पाने के कारण एक बार फिर पत्र लिखा और अधिकारियों को आदेशित किया कि शासनादेश के अनुसार सभी विभागों से सूचीवार जानकारी एकत्र और संकलित कर अवलोकनार्थ प्रस्तुत करें.

बताते हैं कि 14 जुलाई, 2024 को बीजेपी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के अगले ही दिन ही केशव प्रसाद मौर्य ने नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग को पत्र लिखा था. जब पुराने आदेशों पर कोई अमल नहीं हुआ तो एक बार फिर केशव मौर्य ने 15 जुलाई को चिट्ठी लिखकर विभाग से जवाब मांगा है. 

हर सरकार में ऐसे कामकाजी पत्र व्यवहार होते रहते हैं, लेकिन ये सब ऐसे समय हो रहा है जब मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम की तकरार चल रही है. ऐसे में ये मामला गंभीर लगता है. ये मामला इसलिए भी गंभीर हो जाता है क्योंकि मंत्रालय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास है, और आरक्षण संबंधित जानकारी जुटाने का खास राजनीतिक मतलब भी है. केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी नेता के रूप में खुद को लड़ते हुए पेश कर रहे हैं.

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2. ओपी राजभर अब कौन सी राजनीति कर रहे हैं

योगी आदित्यनाथ ने आजमगढ़ में एक समीक्षा बैठक बुलाई थी. सूत्रों के मुताबिक, मीटिंग में उनके कैबिनेट साथी ओमप्रकाश राजभर को भी शामिल होना था, लेकिन वो नहीं पहुंचे - और तो और वो लखनऊ में केशव प्रसाद मौर्य के साथ मुलाकात कर रहे थे, और सोशल मीडिया पर दोनो की मुलाकात की तस्वीर जोर शोर से शेयर की गई. 

4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद योगी आदित्यनाथ की तरफ से बुलाई गई मीटिंग में केशव प्रसाद मौर्य भी नहीं पहुंचे थे. मौर्य ही नहीं कई और भी मंत्री मीटिंग से दूर रहे थे - और उसके बाद से योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य दोनो ही अपने अपने हिसाब से अलग अलग मुलाकातें कर रहे हैं - और बीजेपी के लिए ये बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है.

3. भूपेंद्र चौधरी की मीटिंग में क्या हुआ

इस बीच एक मीटिंग यूपी बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की तरफ से पार्टी दफ्तर में भी बुलाई गई थी. मीटिंग में अध्यक्ष के अलावा संगठन मंत्री भी शामिल थे, लेकिन खास बात रही यूपी के दोनो डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक की मौजूदगी - और सबसे खास बात रही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वहां न होना. 

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बताया गया है कि योगी आदित्यनाथ का वाराणसी और आजमगढ़ में पहले से तय कार्यक्रम होने के कारण वो मीटिंग में शामिल नहीं हो सके, लेकिन ये कोई पहला वाकया तो है नहीं. पिछली बार जब मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम के बीच ऐसी ही तकरार चल रही थी तो योगी आदित्यनाथ मिर्जापुर निकल गये, और वहां से गोरखपुर रवाना हो गये थे.

और ये सब तब हो रहा था जब संघ के सीनियर नेता दत्तात्रेय होसबले लखनऊ में बैठे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राह देख रहे थे. बाद में दत्तात्रेय होसबले ने ही योगी आदित्यनाथ को केशव प्रसाद मौर्य के बेटे-बहू को आशीर्वाद दिलाने के नाम पर उनके घर बुलाया - और तब कहीं जाकर दोनो के बीच पैच-अप हो पाया था.

4. आरएसएस क्या कर रहा है

एक बार फिर योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य का झगड़ा खत्म कराने के लिए आरएसएस सक्रिय हुआ है. संघ के पदाधिकारियों को ये टास्क दिया गया है, लेकिन अभी कोई खास सफलता हाथ लगना तो दूर, दूर दूर तक कोई सकारात्मक संकेत भी नहीं नजर आ रहा है. 

विश्व हिंदू परिषद के भी एक सीनियर पदाधिकारी ने भी संगठन और सरकार के बीच सब सहज करने की कोशिश में जिम्मेदार लोगों से संपर्क और मुलाकात की है. बताते हैं कि संघ के पूर्वी प्रांत के एक वरिष्ठ प्रचारक ने भी केशव प्रसाद मौर्य से मिलकर ऊपर से मिला संदेश पहुंचाते हुए समझाने की कोशिश की है.  

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5. योगी ने दोनों डिप्टी सीएम को उपचुनावों से दूर रखा है

यूपी की 10 विधानसभा सीटों के लिए होने जा रहे उपचुनाव से पहले बीजेपी के अंदर चल रहा ये झगड़ा पार्टी को मुश्किल में डालने वाला है - ज्यादा मुश्किल इसलिए भी है क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने उपचुनावों का टास्क अपने हाथ में ले रखा है - और चुनाव कैंपेन से केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक को पूरी तरह दूर रखा हुआ है. 

योगी आदित्यनाथ ने 10 सीटों के लिए 30 मंत्रियों की टीम बनाई है, लेकिन दोनो डिप्टी सीएम को उससे दूर रखा है. लोकसभा चुनाव के बाद बदले हुए हालात में उपचुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना बीजेपी के लिए बहुत जरूरी हो गया है. 

जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें पांच पर तो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की काबिज है. बची हुई पांच सीटों में बीजेपी के अलावा सहयोगी दलों के भी विधायक रहे हैं - और अयोध्या की हार के बाद ये मुकाबला और भी कड़ा हो गया है, क्योंकि एक विधानसभा सीट तो फैजाबाद की मिल्कीपुर विधानसभा भी है. 

निश्चित तौर पर उपचुनाव चुनौती हैं, लेकिन मौका भी है. क्योंकि उपचुनावों का बहाना बनाकर योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी हित में शांत भी कराया जा सकता है - वरना, बाद में तो स्थिति और भी बेकाबू हो सकती है.

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