
राहुल गांधी ने पिछली बार भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कुछ समय यूपी में गुजारा था, लेकिन इस बार यूपी पर ज्यादा जोर लग रहा है. और यात्रा का नाम बदले जाने के पीछे भी यूपी की राजनीति ही लगती है. पहले इसका नाम 'न्याय यात्रा' रखा गया था, लेकिन अब ये 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' के नाम से सामने आ रही है. मणिपुर से शुरू होकर मुंबई में खत्म होने वाली यात्रा के तहत राहुल गांधी सबसे ज्यादा वक्त यूपी में ही गुजारने वाले हैं.
ये भी कांग्रेस का देर से लिया गया एक फैसला है, अब तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे कि दुरूस्त भी है या नहीं? देखना होगा, कैसे राहुल गांधी उत्तर-दक्षिण की राजनीति के फर्क पर यूपी के लोगों के सामने अपना पक्ष रखते हैं, और सनातन के मुद्दे पर कांग्रेस का स्टैंड समझाते हैं - और INDIA ब्लॉक के सहयोगियों को साथ लेकर चल पाते हैं. हालांकि, 2021 के केरल विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान उन्होंने उत्तर भारतीयों को लेकर ऐसा बयान दिया था, जिस पर उनकी सफाई तो बनती ही है- 'पहले 15 साल मैं उत्तर भारत से सांसद रहा. इसलिए मुझे अलग तरह की राजनीति की आदत हो गई थी. मेरे लिए केरल आना नया अनुभव था. क्योंकि अचानक मैंने देखा कि लोग मुद्दों में दिलचस्पी रखते हैं, सिर्फ दिखावे के लिए नहीं बल्कि गहनता से उस पर विचार करते हैं.' जब राहुल ये बयान दे रहे थे तो शायद उन्हें अंदाजा नहींं होगा कि उन्हें फिर उन्हीं भारतीयों के समक्ष जाना होगा.
वैसे, कांग्रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा की जगह यूपी का प्रभार अविनाश पांडे को सौंपे जाने के बाद कई सवाल खड़े होने लगे थे. एक सवाल ये भी था कि क्या राहुल की तरह प्रियंका गांधी ने भी उत्तर प्रदेश की राजनीति से दूरी बना ली है?
ये समझने की बड़ी वजह ये रही कि प्रियंका गांधी भी राहुल गांधी वाली स्टाइल में ही यूपी से अलग होती देखी गईं. राहुल गांधी के मामले में तो ऐसा लगा था कि 2019 के आम चुनाव में, खासकर अमेठी में, कांग्रेस की हार के बाद उनको दक्षिण भारत की राजनीति में ज्यादा मजा आने लगा था, और करीब करीब वैसे ही 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हिस्से में महज दो सीटें आने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा की भी दिलचस्पी खत्म हो गई थी. अब कांग्रेस ने अपने एक फैसले से ऐसे सवालों का अपनी तरफ से जवाब देने की कोशिश की है, फिर भी अभी बहुत सारे सवाल हैं जो यूपी के लोगों के मन में हैं और राहुल गांधी से आमने सामने की भेंट में पूछे जाएंगे.
भारत जोड़ो न्याय यात्रा वाया यूपी पॉलिटिक्स
राहुल गांधी की नई यात्रा पिछली भारत जोड़ो यात्रा से काफी अलग होगी. पिछली यात्रा में राहुल गांधी सहित सभी भारत यात्रियों ने पदयात्रा की थी, लेकिन इस बार पदयात्राएं छोटी होंगी और बड़ा हिस्सा बस से तय किया जाएगा.
14 जनवरी, 2024 को मणिपुर से शुरू होने जा रही भारत जोड़ो न्याय यात्रा यूपी में 11 दिन तक चलेगी और राज्य के 20 जिलों से होकर गुजरने वाली है. पूरी यात्रा में सबसे लंबा सफर यूपी में ही होगा - 1,074 किलोमीटर.
खास बात ये है कि यात्रा के रूट में गांधी परिवार का गढ़ समझे जाने वाले अमेठी और रायबरेली के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी को भी शामिल किया गया है. याद रहे ममता बनर्जी ने वाराणसी से प्रियंका को चुनाव मैदान में उतारने की सलाह दे रखी है. और ये भी याद रहे कि अमेठी सीट फिलहाल बीजेपी के पास है, और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी वहां से सांसद हैं.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश के मुताबिक, भारत जोड़ो न्याय यात्रा में विपक्षी गठबंधन INDIA के सहयोगी दलों और सिविल सोसाइटी के लोगों को भी बुलाया गया है. लेकिन सवाल है कि क्या सभी सहयोगी दल यात्रा में शामिल होंगे? ये यात्रा तो कांग्रेस की है, INDIA ब्लॉक के बैनर तले आयोजित भी नहीं हो रही है.
राहुल गांधी की पिछली भारत जोड़ो यात्रा में विपक्षी खेमे के डीएमके, एनसीपी और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना के नेता शामिल जरूर हुए थे, लेकिन अखिलेश यादव और नीतीश कुमार जैसे नेताओं ने साफ साफ दूरी बना ली थी.
कांग्रेस की तरफ से यात्रा का नाम बदले जाने और रूट को लेकर चाहे जो भी समझाया जाये, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो आसानी से हजम होने वाली नहीं हैं. यात्रा का नाम पहले सिर्फ 'न्याय यात्रा' रखा गया था, मणिपुर से शुरू किये जाने के पीछे माना जा रहा था कि मणिपुर हिंसा को मुद्दा बनाने की कोशिश है, और कांग्रेस ये बताने की कोशिश कर रही है कि वो मणिपुर के लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए संघर्ष कर रही है.
तो क्या यूपी में राम मंदिर को लेकर बने माहौल में कांग्रेस को मणिपुर का मुद्दा कमजोर नजर आ रहा था, इसलिए यात्रा का नाम बदल कर फिर से उसमें भारत जोड़ दिया गया?
क्या कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस के सरकार बना लेने के बाद भी राहुल गांधी को दक्षिण की राजनीति में दम नहीं दिखा? या फिर उत्तर भारत में बीजेपी से दो-दो हाथ करने के इरादे से फिर से यूपी का रुख कर रहे हैं?
2019 के चुनाव नतीजे आने के बाद वायनाड पहुंच कर बचपन जैसा लोगों का प्यार मिलने की बात करने वाले राहुल गांधी को आखिरकार यूपी लौट कर आना ही पड़ रहा है - क्या राहुल गांधी को अभी से लगने लगा है कि दक्षिण की राजनीति से दिल्ली का रास्ता नहीं गुजरने वाला है?
यूपी में राहुल गांधी के सामने बहुत सारी चुनौतियां हैं
1. भारत जोड़ो न्याय यात्रा के उत्तर प्रदेश की सीमा में दाखिल होने से पहले राम मंदिर पर कांग्रेस का सरप्राइज भी सामने आ चुका होगा. सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे अयोध्या के आयोजन पर क्या रुख अपनाते हैं, ये भी देखना होगा.
2. यूपी में यात्रा के दाखिल होते ही सबसे पहले तो राहुल गांधी को उत्तर और दक्षिण भारत की राजनीति का फर्क नये सिरे से समझना होगा. 2021 के केरल विधानसभा चुनाव के वक्त राहुल गांधी ने उत्तर-दक्षिण के फर्क वाली राजनीतिक बहस शुरू की थी, जिसे बाद में तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी सहित दक्षिण भारत के कुछ नेताओं की बयानबाजी के बाद बवाल भी काफी हुआ.
3. राहुल गांधी को सनातन के मुद्दे पर भी उत्तर भारत में लोगों को सफाई देनी होगी. बताना होगा कि क्या डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के बयान का समर्थन करने वाले कांग्रेस नेता प्रियांक खरगे के सनातन पर स्टैंड का वो भी सपोर्ट करते हैं? मंदिर के पक्ष में बने यूपी के राजनीतिक माहौल में राहुल गांधी के लिए ऐसा कर पाना आसान नहीं होगा.
यूपी में राहुल गांधी के सामने बहुत सारी चुनौतियां हैं
पिछली भारत जोड़ो यात्रा के तहत भी कुछ दिन के लिए राहुल गांधी यूपी में थे, लेकिन समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव का साथ नहीं मिला था. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये कहते हुए मना कर दिया कि भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस का कार्यक्रम है - क्या इस बार INDIA ब्लॉक खड़ा करने की कोशिशों की वजह से विपक्षी दलों का रवैया अलग हो सकता है?
यूपी में राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती अखिलेश यादव के साथ ही सीटों के बंटवारे में भी पेश आने वाली है. हो सकता है, कांग्रेस नेता कमलनाथ के 'अखिलेश-वखिलेश' वाली
टिप्पणी से समाजवादी पार्टी नेता और कार्यकर्ता उबर चुके हों, लेकिन अखिलेश यादव ने पहले ही साफ कर रखा है कि सीटों के बंटवारे में फाइनल कॉल उनकी ही होगी.
पहले तो यहां तक सुनने में आ रहा था कि कांग्रेस यूपी में 40 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए गठबंधन में दावा कर सकती है, लेकिन अब तेवर कुछ नरम पड़े लग रहे हैं. अब यूपी की 80 सीटों में से कांग्रेस 25 सीटों पर चुनाव लड़ना चाह रही है. यूपी कांग्रेस के नेताओं ने उन सीटों की सूची तैयार कर ली है, जहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में है, और चुनाव जीतने की संभावना नजर आ रही है.
ध्यान रहे, 2009 में कांग्रेस को यूपी में 21 सीटें मिली थीं, लेकिन 2019 आते आते कांग्रेस के पास सिर्फ रायबरेली की एक सीट बच पाई है. रायबरेली से सोनिया गांधी सांसद हैं. ऐसा लगता है, कांग्रेस 2009 में जीती हुई सीटों के लिए ही INDIA ब्लॉक में दावा पेश करने वाली है.
हाल ही में कांग्रेस की तरफ से यूपी जोड़ो यात्रा शुरू की गई थी. यूपी जोड़ो यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ चुके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ही सबसे बड़े नेता नजर आ रहे थे. पहले दिन गांधी परिवार की प्रतिनिधि के तौर पर कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत भी तस्वीरों में नजर आ रही थीं.
अगर भारत जोड़ो न्याय यात्रा होनी ही थी, तो यूपी जोड़ो यात्रा में समय और श्रम खर्च करने की क्या जरूरत थी? और अगर यही करना था तो राहुल गांधी यूपी जोड़ो यात्रा में शामिल होकर आने वाली फिल्म का ट्रेलर तो पेश कर ही सकते थे.