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डिनर के बाद रिसॉर्ट पहुंची वसुंधरा पॉलिटिक्स, 5 बातों से समझिये आखिर चाहती क्या हैं वे

राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे आखिर चाहती क्या हैं? आलाकमान से पंगा लेकर क्या वो सीएम बनने का अपना ख्वाब पूरा कर पाएंगी. एक तरफ तो वो लगातार यह दिखाने का प्रयास कर रही हैं कि वो पार्टी लाइन से अलग नहीं हैं. तो फिर डिनर और रिजॉर्ट पॉलिटिक्स के दांव क्यों ?

राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे क्यी सीएम से कम पर मानेंगी? राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे क्यी सीएम से कम पर मानेंगी?
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 07 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 8:07 PM IST

राजस्थान में कौन बनेगा सीएम? आज चौथे दिन भी इस पर सस्पेंस बना हुआ है. सीएम पद के दावेदारों की खबरें दिन भर उड़ती रहीं. कभी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव का नाम ट्रेंड करने लग रहा है तो कभी बाबा बालकनाथ का नाम चलने लगता है. इस बीच स्था्ई भाव से वसुंधरा लगातार केंद्रबिंदु में हैं. वो दिल्ली में हैं. एक तरफ तो पीएम मोदी की तारीफ में ट्वीट पर ट्वीट किए जा रही हैं दूसरी ओर प्रेशर पॉलिटिक्स भी चला रही हैं. इस सबके बीच राजस्‍थान में भाजपा के एक विधायक के पिता ने आरोप लगा दिया कि वसुंधरा के पुत्र सांसद दुष्यंत सिंह ने एक रिसॉर्ट में उसके विधायक बेटे को कुछ विधायकों के साथ जबरन रखा हुआ था. तो आखिर वसुंधरा चाहती क्या हैं? क्या वसुंधरा को नहीं पता है कि वो बीजेपी आलाकमान से पंगा लेकर क्या हासिल कर लेंगी?

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1- क्या पार्टी वसुंधरा के बिना प्रदेश की सभी लोकसभा सीटें जीतने में सक्षम नहीं है?

क्या वसुंधरा नहीं जानती हैं कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व लोकप्रियता के चरम पर है. कोई भी बगावत या कोई भी प्रेशर पॉलिटिक्स उस समय काम करती है जब केंद्रीय नेतृत्व कमजोर हो. यहां पर तो मोदी-शाह के नेतृत्व में पार्टी इतनी मजबूत है कि बिना चेहरे के चुनाव लड़कर भी तीन स्टेट में प्रचंड बहुमत हासिल करती है. जनता आज मोदी के नाम पर वोट दे रही है. 2018 में राज्य में पार्टी की दुर्गति होती है इसके बावजूद भी 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी राजस्थान से सभी 25 लोकसभा सीटें जीतनें में सफल होती है.

2- वसुंधरा के खास साथी अशोक गहलोत जो खुद संकट में हैं कितना साथ देंगे?

ऐसा माना जाता रहा है कि वसुंधरा और अशोक गहलोत एक दूसरे को कठिन परिस्थितियों में मदद करते रहे हैं. अशोक गहलोत ने तो एक बार सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार भी किया था. सचिन पायलट ये आरोप लगाते रहे हैं कि अशोक गहलोत और वसुंधरा मिले हुए हैं. चुनावों के दौरान भी यह माना जा रहा था कि अशोक गहलोत और वसुंधरा दोनों की यह प्लानिंग है कि किसी भी तरह बीजेपी और कांग्रेस दोनों के 100 सीट से कम पर रोक दिया जाए. यही कारण रहा है कि कांग्रेस में अशोक गहलोत ने बागी उम्मीदवारों के खिलाफ जाकर प्रचार नहीं किया. इधर बीजेपी में यही काम वसुंधरा ने किया था. कहा जा रहा था कि मौका पड़ने पर दोनों एक दूसरे की मदद करने के लिए वचनवद्ध थे. पर बीजेपी ने 115 सीटें जीतकर दोनों नेताओं की योजनाओं पर पानी फेर दिया. 

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दूसरी ओर अशोक गहलोत के ओएसडी रहे लोकेश शर्मा ने उनकी पोल खोलनी शुरू कर दी है. जिस तरह हर रोज लोकेश शर्मा अलग-अलग खुलासे कर रहे हैं उससे नहीं लगता कि अब गांधी परिवार कभी उनपर भरोसा करने वाला है. इस तरह अभी लोकसभा चुनावों तक कांग्रेस से कोई भी उम्मीद करना बेमानी ही है.क्योंकि कांग्रेस में अभी अशोक गहलोत और सचिन पायलट का झगड़ा और बढ़ने वाला है. इसका सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को मिलने वाला है. बीजेपी राज्य में लगातार तीसरी बार लोकसभा की सारी सीटें जीतने में कामयाब हो सकती है. इस तरह वसुंधरा चाहकर कुछ भी नहीं कर पाएंगी.

3- डिनर पॉलिटिक्स और रिसॉर्ट पालिटिक्स के साथ पीएम की तारीफों के पुल बांधकर क्या हासिल कर लेंगी?

वसुंधरा राजनीति के मंजी हुईं खिलाड़ी हैं.उनको पता है कि जब केंद्र में बीजेपी की सरकार है और राजस्थान में पार्टी के नाम पर प्रचंड बहुमत मिला है ऐसी दशा में न डिनर पॉलिटिक्स काम आएगी और न ही रिजॉर्ट पॉलिटिक्स काम आने वाली है. वसुंधरा राजे के बेटे और सांसद दुष्यंत सिंह पर किशनगंज विधायक ललित मीणा के पिता और पूर्व विधायक हेमराज मीणा ने आरोप लगाया है कि दुष्यंत सिंह ने बीजेपी के विधायकों को 'आपणों राजस्थान' रिसॉर्ट में रखा था. ये रिसॉर्ट जयपुर-सीकर रोड पर स्थित है. वहां झालावाड़ के तीन और बारां के तीन विधायकों को रखा गया था. हेमराज मीणा ने बोला, 'जब मुझे पता चला तो मैं बेटे को लाने गया था. इसी तरह वसुंधरा ने 20 से ज्यादा विधायकों को अपने घर डिनर पर बुलाया था. इसके बाद वसुंधरा कैंप ने दावा किया था कि उनके साथ 68 विधायकों का सपोर्ट है. कुछ निर्दलीयों के भी साथ आने का दावा किया गया.

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हालांकि, बुधवार को वसुंधरा ने फोन पर बीजेपी आलाकमान से बात की है. इसके बाद उनके घर के बाहर पीएम मोदी को बधाई वाले बैनर लगा दिए गए. उन्होंने साफ किया है कि वो पार्टी की अनुशासित कार्यकर्ता हैं और पार्टी की लाइन से कभी बाहर नहीं जाएंगी. इस बीचे वे एक्स पर लगातार पीएम मोदी की पोस्ट को रिपोस्ट भी कर रही हैं. गुरुवार को उन्होंने संसदीय दल की बैठक की तस्वीरों को नरेंद्र मोदी की तारीफों के साथ एक बार फिर पोस्ट किया. साफ झलकता है कि वे फूंक फूंक कर कदम रख रही हैं. एक तरफ तो वो अपना दम दिखा रही हैं तो दूसरी तरफ वो केंद्रीय नेतृत्‍व से खुलेआम बैर भी मोल लेना नहीं चाहती हैं.

4- क्या केंद्र से अपने लिए सुरक्षित भविष्य चाहती हैं वसुंधरा?

अगर वसुंधरा राजे के पिछले कार्यकाल को देखा जाए तो यह स्पष्ट दिख जाएगा कि केंद्रीय नेतृत्व की अवहेलना उन्होंने शुरू कर दी थी. केंद्र की इच्छा के बाद भी उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष गजेंद्र सिंह शेखावत को नहीं बनने दिया. सत्ता जाने के बाद भी पूरे पांच साल तक के लिए वो शांत बैठ गईं. प्रदेश इकाई के समानांतर उन्होंने अपनी पार्टी चलाई. कई मौकों पर जब पार्टी को उनकी जरूरत थी वो नदारद रहीं. पार्टी की महत्वपूर्ण बैठकों से भी वो गायब रहीं. इसलिए वो खुद समझ रही होंगी कि उनको सीएम बनाया जाना नामुमकिन ही है. पत्रकार विनोद शर्मा का कहना है कि दरअसल रानी की सारी कवायद बीजेपी में अपने को सिक्योर करने की है. वो जानती हैं कि इसी पार्टी में लालकृष्ण आडवाणी के साथ क्या हुआ था. उनको कोई सम्मानित जगह मिलने का भरोसा होने पर वो खुद ही सरेंडर कर देंगी. उन्हें पता है कि पद न रहने पर या पार्टी से विरोध मोल लेने के बाद 20 विधायक भी उनके यहां डिनर पर नहीं आने वाले हैं.

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5- तो आखिर चाहती हैं क्या हैं वसुंधरा?

तो क्या वो केंद्र की राजनीति में अपने को एडजस्ट कर लेंगी. या क्या वो राज्यपाल पद के लिए तैयार होंगी. सभवतया नहीं. क्योंकि पहले ही वह कह चुकी हैं कि वो करेंगी तो केवल राजस्थान की राजनीति.वो कहती रही हैं कि अब जीएंगी तो राजस्थान की माटी में और मरेंगी तो इस प्रदेश के आंचल में पर राजनीति संभावनाओं का खेल है. जहां तक समझा जाता है कि राज्यपाल के पद के लिए वो पहले ही इनकार कर चुकी हैं.तो क्या वो लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी और केंद्रीय मंत्रिमंडल में कोई बड़ा पद लेंगी? लोकसभा चुनाव में उनके बेटे दुष्यंत सिंह लड़ रहे हैं अगर उनको भी लोकसभा लड़ाया जाता है तो पार्टी में कई और दावेदार तैयार हो जाएंगे. बीजेपी परिवारवाद को आपद काल के लिए सुरक्षित रखती है. और वसुंधरा से कोई आपद नहीं आने वाली है.

क्या विधानसभा अध्यक्ष का पद स्वीकार करेंगी? राजस्थान का इतिहास में कई मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा चुका है. कांग्रेस में कभी सीपी जोशी भी सीएम के दावेदार होते थे गहलोत सरकार में वे विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए थे. 1977 में महारावल लक्ष्मण सिंह को मुख्यमंत्री न बनाकर यह पद भैरो सिंह शेखावत को सौंपा गया. और महारावल को बदले में विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया. 1990 और 1993 में शेखावत के नज़दीकी प्रतिद्वंद्वी हरिशंकर भाभड़ा मुख्यमंत्री नहीं बन सके तो उन्हें दोनों बार विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया.

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वसुंधरा के कद के हिसाब से विधानसभा अध्यक्ष का पद फिलहाल उनको शोभा देता है. क्योंकि मुख्यमंत्री और पूरा मंत्रिमंडल नतमस्तक रहता है, ब्यूरोक्रेसी पर भी पकड़ रहती है. पर शायद बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इस पद के लिए तैयार न हो. क्योंकि बीजेपी नहीं चाहेगी जो मुख्यमंत्री बने वो वसुंधरा के आगे नतमस्तक हो या शक्ति का एक और केंद्र बन जाए. राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके भैरोसिंह शेखावत को बाद में उपराष्ट्रपति बनाया गया था. हो सकता है वसुंधरा राजे अपने लिए सही जगह वहीं देख रही हों.

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