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इतिहासकार की नजर से देखिए 'छावा' कितनी रील और कितनी रियल!

फिल्म 'छावा' ने छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन और बलिदान को पूरे देश के सामने लाया. लेकिन इसमें कई ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है. फिल्म में कुछ दृश्य वास्तविक इतिहास से मेल नहीं खाते.

फिल्म 'छावा' में कई जगहों पर क्रिएटिव लिबर्टी ली गई है. फिल्म 'छावा' में कई जगहों पर क्रिएटिव लिबर्टी ली गई है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 4:57 PM IST

फिल्म 'छावा' ने पूरे देश में जबरदस्त हलचल मचा दी है और छत्रपति संभाजी महाराज को एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है. इस फिल्म में उनके संघर्ष और बलिदान को दिखाया गया है, जिससे बाद अब कई लोग उनके बारे में जानने लगे हैं. फिल्म में मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा संभाजी महाराज पर किए गए अत्याचारों को दिखाया गया है. कई लोग इसे धर्म से जोड़कर देखते हैं, लेकिन क्या यह पूरी सच्चाई है? क्या औरंगजेब ने उन्हें सिर्फ इसलिए प्रताड़ित किया क्योंकि उन्होंने इस्लाम कबूलने से इनकार कर दिया था या फिर यह सत्ता की लड़ाई थी? इतिहास इसके बारे में क्या कहता है? आइए, जानते हैं कि 'छावा' में क्या सही दिखाया गया है और क्या नहीं.

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फिल्म देखकर थिएटर में बच्चों की आंखों में आंसू आ गए, नौजवानों को नारे लगाते देखा गया, और खुद प्रधानमंत्री ने भी फिल्म और इसके कलाकारों की तारीफ की. लेकिन सवाल यह है कि क्या 'छावा' सच में इतिहास पर आधारित है? यह फिल्म शिवाजी सावंत की प्रसिद्ध किताब 'छावा' पर बनी है, लेकिन इसमें कई जगहों पर रचनात्मक स्वतंत्रता (क्रिएटिव लिबर्टी) ली गई है. फिल्म में कई घटनाएं हैं जो इतिहास से मेल नहीं खातीं.

फिल्म के निर्माता-निर्देशकों ने इसे एक भव्य फिल्म बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिससे छत्रपति संभाजी महाराज का नाम पूरे देश में गूंज उठा. लेकिन कुछ दृश्य और घटनाएं इतिहास से मेल नहीं खातीं. उदाहरण के लिए, फिल्म में सोयराबाई (संभाजी महाराज की सौतेली मां) को दरबार में बैठकर पान खाते हुए दिखाया गया है, जबकि ऐसा कभी नहीं हुआ. फिल्म के कुछ हिस्से बेहतरीन हैं और युवाओं पर काफी प्रभाव डालते हैं, लेकिन दिखाए गए कुछ दृश्यों का कोई आधार या ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है. फिल्म में बुर्हानपुर के युद्ध को शानदार तरीके से दिखाया गया है, लेकिन इसमें कुछ चीजें बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई हैं. जैसे कि महाराज को पानी और कीचड़ से निकलते हुए दिखाया गया है. वह भी एक इंसान थे, तो पानी के अंदर सांस कैसे लेते? 

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एक और सवाल उठता है जब फिल्म में संभाजी महाराज को खुद 'शिव गर्जना' देते हुए दिखाया गया है. इतिहास में 'हर हर महादेव' का उल्लेख शाहजी महाराज के समय से मिलता है. भोंसले परिवार भगवान शिव के उपासक थे, और 'हर हर महादेव' का अर्थ होता है 'भगवान शिव की विजय हो'. लेकिन यह समझ से बाहर है कि महाराज खुद युद्ध से पहले इस तरह के नारे लगाते.

फिल्म में दिखाया गया है कि सोयराबाई ने औरंगजेब से मिलकर संभाजी महाराज के खिलाफ साजिश रची थी. लेकिन इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है. हां, वह चाहती थीं कि शिवाजी महाराज के दूसरे पुत्र राजाराम राजा बनें, और उनके भाई सेनापति हंबीरराव मोहिते इसमें उनका साथ दे रहे थे. लेकिन फिल्म में दिखाई गई कहानी पूरी तरह से तथ्यात्मक नहीं है.

संभाजी महाराज की शहादत उनके व्यक्तित्व का सबसे अहम हिस्सा थी. फिल्म ने इसे अच्छे से दिखाया, जो पहले किसी फिल्म या सीरीज में इतने विस्तार से नहीं दिखाया गया था. लेकिन फिल्म में इसे सिर्फ जाति के नजरिए से ही नहीं बल्कि धर्म के चश्मे भी से देखा गया है. सवाल यह है कि क्या संभाजी महाराज को सिर्फ इसलिए प्रताड़ित किया गया क्योंकि उन्होंने इस्लाम कबूलने से इनकार कर दिया था? असल में, धर्म के अलावा सत्ता और राजनीति भी एक बड़ा कारण था. औरंगजेब का मुख्य मकसद महाराष्ट्र के किले जीतना और सत्ता पाना था. हां, उसने कई लोगों को इस्लाम कबूलने को कहा, लेकिन यह उसकी प्राथमिकता नहीं थी. 

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उसने संभाजी महाराज के परिवार को भी कैद कर लिया, जिसमें उनकी पत्नी येसुबाई और उनके बेटे शाहू महाराज भी थे. औरंगजेब ने जरूर शाहू महाराज को इस्लाम कबूलने के लिए कहा, लेकिन उनका मुख्य लक्ष्य सत्ता पर पकड़ बनाना था. एक और ऐतिहासिक घटना यह है कि जब भोंसले परिवार की एक महिला के साथ एक मुगल अधिकारी ने दुर्व्यवहार किया, तो औरंगजेब ने अपने ही अधिकारी को सजा दी और मरवा दिया. यह दिखाता है कि उस समय भी नैतिकता को कुछ हद तक महत्व दिया जाता था.

इस समय के बारे में एक बात जिसकी सराहना की जानी चाहिए, वह है नैतिकता जिसके साथ वे जीते थे. इतिहासकारों ने (चाहे वे मुगल, पुर्तगाली या कोई और रहे हों) उल्लेख किया है कि औरंगजेब कोई भी कदम उठाते समय बहुत नैतिक दबाव में रहता था. इतिहास में यह दर्ज है कि छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज ने कभी किसी मुस्लिम महिला को नहीं छुआ और न ही किसी मस्जिद को ध्वस्त किया. 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद येसुबाई और बाकी लोग महाराष्ट्र वापस लौट आए.

एक सवाल जो मुझे परेशान करता है, वह यह है कि संभाजी महाराज की शहादत के बाद कोई बड़ा विद्रोह क्यों नहीं हुआ? किसी ने भी औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह नहीं किया. संभाजी महाराज की कहानी इतनी बड़ी थी कि उसे एक फिल्म में पूरी तरह से नहीं समेटा जा सकता, लेकिन 'छावा' ने लोगों के दिलों में उनके लिए एक नया जोश जरूर भर दिया है.

(विश्‍वास पाटिल संभाजी और शिवाजी, महासम्राट के लेखक हैं.)

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