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लाहौर में भगवान राम के पुत्र लव की समाधि पहुंचे राजीव शुक्‍ला पेश करते हैं बदलती राजनीति की तस्‍वीर

कहा गया है कि समय बहुत बलवान होता है. एक समय था कि भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी मीनार-ए-पाकिस्तान और जिन्ना की मजार पर जाते थे. वहीं अब एक कांग्रेस नेता रमजान के महीने में पाकिस्तान जाता है और भगवान राम के पुत्र लव की समाधि पर जाकर पुष्पांजलि अर्पित करता है.

राजीव शुक्ला ने लाहौर में भगवान राम के पुत्र लव की समाधि पर पूजा अर्चना की. राजीव शुक्ला ने लाहौर में भगवान राम के पुत्र लव की समाधि पर पूजा अर्चना की.
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 07 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 5:47 PM IST

राज्यसभा सांसद और कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला इन दिनों  बीसीसीआई उपाध्यक्ष होने के नाते चैंपियंस ट्रॉफी के सिलसिले में पाकिस्तान पहुंचे हुए हैं. अपनी यात्रा के दौरान वे लाहौर स्थित भगवान राम के पुत्र लव की समाधि पर भी गए. राजीव शुक्ला ने उनकी समाधि पर पूजा-अर्चना करते हुए तस्वीर एक्स पर पोस्ट की है. इतना ही नहीं वो यह भी बताते हैं कि भगवान राम के दूसरे पुत्र कुश के नाम पर ही पाकिस्‍तान का शहर कसूर है. चूंकि राजीव शुक्ला एक पत्रकार भी रहे हैं इसलिए अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए यह भी लिखते हैं कि लाहौर के म्युनिसिपल रिकॉर्ड में दर्ज है कि यह नगर भगवान राम के पुत्र लव के नाम से बसाया गया था और कसूर शहर उनके दूसरे पुत्र कुश के नाम से. वो यह भी लिखते हैं कि पाकिस्तान सरकार भी यह बात मानती है. लाहौर के प्राचीन किले में प्रभु राम के पुत्र लव की प्राचीन समाधि है लाहौर नाम भी उन्ही के नाम से है. शुक्ला लिखते हैं कि वहां प्रार्थना का अवसर मिला. साथ में पाकिस्तान के गृहमंत्री मोहसिन नकवी जो इस समाधि का जीर्णोद्धार करवा रहे हैं.

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राजीव शुक्ला भगवान श्रीराम पुत्र लव की समाधि पर पहुंचकर गर्व के साथ लिखते हैं कि लाहौर शहर का नामकरण लव के नाम पर ही हुआ था. अपनी पूजा करते अपनी फोटो भी पोस्ट करते हैं. जाहिर है कि उन्हें कहीं न कहीं से ये बात बताते हुए अपनी विरासत के प्रति प्राउड फील हो रहा होगा. पर सवाल यह है कि वो जिस पार्टी कांग्रेस में हैं वहां तो भगवान राम को ही काल्पनिक माना जाता है. अगर राम काल्पनिक हुए तो लव और कुश भी काल्पनिक ही हुए. हालांकि राजीव शुक्ला भले ही कांग्रेस में रहे हों पर उन्होंने राम मंदिर के बारे में कभी उलूजुलूल बयान नहीं दिए. वो 2024 लोकसभा चुनावों के दौरान भी कहते रहे कि अगर देश में कांग्रेस की सरकार बनती है तो वो खुद आगे बढ़कर अयोध्या में श्रीराम लला मंदिर का कार्य पूरा करवाएंगे. 

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एक दौर था जब भाजपा नेता भी जिन्‍ना और पाकिस्‍तान प्रेम में डूबे हुए थे!

समय-काल और परिस्थितियां किस तरह बदल जाती हैं. यह समझना चाहिए. भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष और देश के पूर्व गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी 2005 में पाकिस्तान के दौरे पर गए थे. वहां उन्होंने जिन्ना की मजार पर एक भाषण दिया और उन्हें धर्मनिरपेक्ष बता दिया था. जैसे ही इस भाषण की कॉपी बीजेपी मुख्यालय पहुंची. उसी समय पार्टी का एक खेमा आडवाणी के इस्तीफे को लेकर रणनीति बनाने लगा.आडवाणी दिल्ली वापस आए तो उन्हें एयरपोर्ट पर ‘जिन्ना समर्थक वापस जाओ’ के नारे सुनने पड़े. 7 जून को आडवाणी ने अपने विश्वस्त और पार्टी में उस समय उपाध्यक्ष वैंकेया नायडू को संबोधित करते हुए इस्तीफा दे दिया. आडवाणी से पहले देश पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान की यात्रा की और मीनार-ए-पाकिस्‍तान पर जाने वाले देश के पहले भारतीय नेता बने. इतना ही नहीं अटल सरकार में रक्षा और विदेश मंत्री रहे जसवंत सिंह ने भी अपनी किताब में जिन्‍ना को धर्मनिरपेक्ष बताकर विवाद छेड़ दिया था. जो हमेशा उनके साथ जुड़ा रहा. पर आज देश ही नहीं विश्व का माहौल बदला हुआ है.

दरअसल जब आप मजबूत होते हैं ,संपन्न होते हैं और समय आपके अनुरूप माहौल भी बनाता है. एक समय था बीजेपी जैसी पार्टी के नेता भी खुद को धर्मनिरपेक्ष बताने का कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहते थे. अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को यही लगता था कि अगर अपना फेस वैल्यू धर्मनिरपेक्ष नहीं रखेंगे तो भारत की राजनीति मे सर्वाइव नहीं कर पाएंगे. पर अब स्थितियां बदल चुकी हैं. आज जब देश में सनातन के पक्ष में माहौल है तो कांग्रेस नेता भी खुद को हिंदुत्व के साथ खड़ा करने में गर्व फील करते हैं. आज भारत की स्थिति भी मजबूत है इसलिए इस्लामी राष्ट्र में भी भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है.

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आखिर क्‍या बदल गया भारत और पाकिस्‍तान में...

पाकिस्तान के गृहमंत्री खुद एक भारतीय नेता को लव की समाधि घुमा रहे हैं और यह भी बता रहा है कि इसका जीर्णोद्धार भी करवा रहे हैं. क्या आडवाणी की तरह लव की समाधि पर ले जाने वाले पाकिस्तानी नेता की राजनीति भी खत्म हो सकती है? इसका जवाब है नहीं. क्योंकि कमजोर के साथ खड़ा होने में भी लोग शर्मिंदगी महसूस करते हैं, मजबूत के साथ तो उसके शर्तों पर भी खड़ा हुआ जा सकता है. राजीव शुक्ल आज भले ही विपक्ष में हैं. पर वो बीसीसीआई के उपाध्यक्ष हैं. चाहे कोई भी पार्टी हो वो सत्ता के दुलारे होते हैं. जाहिर है कि पाकिस्तान ही नहीं क्रिकेट खेलने वाले हर देश के लिए वो दुलारे हैं. 

हाल ही में राजीव शुक्ला उस समय सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे थे जब अहमदाबाद में पॉप ग्रुप कोल्डप्ले के कंसर्ट का आयोजन हुआ था. नरेंद्र मोदी स्टेडियम में राजीव शुक्ला का वही जलवा था जो कांग्रेस की देश में सरकार होने पर होता. उस दिन राजीव शुक्ला पर हजारों की संख्या में मीम्स बने थे. जो उनकी ताकत और उनकी पहुंच को और महिमामंडित कर रहे थे. एक्स पर तमाम लोग उनसे पूछ रहे हैं कि क्या वो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आ रहे हैं क्या? पर राजीव शुक्ला को कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने की जरूरत ही क्या है. वो बिना बीजेपी में आए ही सत्ता सुख भोग रहे हैं. और बीजेपी के लिए भी जितना अहम वे कांग्रेस में रहते हुए हैं उतना शायद पार्टी में रहते हुए न रह सके. 

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एक बात और आडवाणी के जिन्ना की मजार पर जाने के चलते भारतीय जनता पार्टी से उनकी छुट्टी हो गई थी. तब कहा गया था कि भारत के बंटवारे के लिए जिम्मेदार मुहम्मद अली जिन्ना की तारीफ करके उन्होंने पार्टी के सिद्धांतों को तोड़ा है. क्या यही सवाल कांग्रेस राजीव शुक्ला से कर सकेगी? क्या कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला से यही सवाल पूछ सकेंगे कि जिस राम को पार्टी कल्पना मानती रही है उनके पुत्र को कैसे आप इतिहास की संज्ञा दे रहे हैं? फिलहाल ऐसा नहीं होने वाला है क्योंकि समय चक्र बदल चुका है.

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