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जाति जनगणना पर RSS की 'सह‍मति' का मतलब अब इससे आंख नहीं चुराई जा सकती

हाल के वर्षों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में काफी बदलाव हुआ है. पर बदलाव की बयार भारतीय जनता पार्टी में तेज रही है. पर आरएसएस भारतीय जनता पार्टी की रीढ़ रहा है. शायद यही कारण है जाति को लेकर आरएसएस बहुत तेजी एस अपनी विचारधारा बदल रहा है.

RSS चीफ मोहन भागवत (फाइल फोटो) RSS चीफ मोहन भागवत (फाइल फोटो)
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 02 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:26 PM IST

आरएसएस ने जाति जनगणना पर सकारात्मक रुख दिखाकर भारतीय जनता पार्टी को धर्मसंकट से बचा लिया है. आरएसएस ने सोमवार को इसका समर्थन करने का संकेत दे दिया है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इसका उपयोग राजनीतिक या चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए. आरएसएस ने यह भी कहा कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उप-वर्गीकरण की दिशा में कोई भी कदम संबंधित समुदायों की सहमति के बिना नहीं उठाया जाना चाहिए. आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक के अंतिम दिन केरल के पलक्कड़ में प्रेस से बातचीत में यह जानकारी दी.

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इंडिया गठबंधन के दलों की ओर से लगातार जातिगत  जनगणना कराने की बात की जा रही है.यहां तक कि एनडीए के घटक दलों में भी जाति जनगणना को लेकर सकारात्मक रुख दिखा रहे हैं. जेडीयू और लोजपा ( रामविलास) सरकार में शामिल है पर जाति  जनगणना पर इंडिया गठबंधन के दलों के समान ही चाहते हों कि देश में जाति जनगणना होनी चाहिए.भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेताओं ने भी समय समय पर कहा है कि वो जाति जनगणना के पक्ष में हैं.

शायद यही कारण है कि पार्टी ने कभी भी ऑफिशियली तौर पर जाति जनगणना का विरोध नहीं किया. पर विपक्ष लोकसभा चुनावों में जाति जनगणना का वादा अपने मेनिफेस्टो में करके जनता के बीच ऐसा संदेश देने की कोशिश की कि भारतीय जनता पार्टी जाति जनगणना और जातिगत आरक्षण की विरोधी है. विपक्ष ने इस मुद्दे पर इस तरह भ्रम पैदा किया कि जनता के बीच संदेश गया कि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई तो आरक्षण को खत्म कर देगी.यही कारण रहा कि बीजेपी की सीटों में बड़ी गिरावट हो गई. अब चूंकि आरएसएस ने इस मुद्दे पर ग्रीन सिग्‍नल दे दिया है तो जाहिर सी बात है कि बहुत जल्दी ऐसे संकेत मिल सकते हैं भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार जाति जनगणना के किसी फॉर्मेट को लेकर सामने आ सकती है.

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1- आरएसएस के अब जाति संबंधी विचार बदल चुके हैं?

आम तौर पर आरएसएस वर्ण व्यवस्था को मानने वाला रहा है. यही कारण है कि बहुत से लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ब्राह्मणवादी व्यवस्था के समर्थक रूप में भी देखते रहे हैं. पर 2022 में एक पुस्तक के विमोचन समारोह में  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने जो कुछ कहा उससे आरएसएस के प्रति इस तरह का विचार रखने वालों को जरूर धक्का लगा होगा. भागवत ने कहा कि वर्ण और जाति जैसी अवधारणाओं को पूरी तरह से त्याग दिया जाना चाहिए.भागवत का कहना था कि भेदभाव का कारण बनने वाली हर चीज ताला, स्टॉक और बैरल से बाहर हो जानी चाहिए. 

मोहन भागवत ने यह भी कहा कि जाति व्यवस्था की अब कोई प्रासंगिकता नहीं है. आरएसएस प्रमुख ने डॉ. मदन कुलकर्णी और डॉ. रेणुका बोकारे द्वारा लिखित पुस्तक 'वज्रसुची तुंक' का हवाला दिया और कहा- सामाजिक समानता भारतीय परंपरा का एक हिस्सा थी, लेकिन इसे भुला दिया गया और इसके हानिकारक परिणाम हुए. आज इनके बारे में पूछता है तो जवाब होना चाहिए कि 'यह अतीत है, इसे भूल जाओ.' आरएसएस प्रमुख ने कहा- 'जो कुछ भी भेदभाव का कारण बनता है, उसे बाहर कर दिया जाना चाहिए.' उन्होंने ये भी कहा कि पिछली पीढ़ियों ने हर जगह गलतियां की हैं और भारत कोई अपवाद नहीं है.

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यह आरएसएस के लगातार बदलाव का नतीजा है कि आज संघ जातिगत जनगणना की बात पर भी सहमत है . 

2- आरएसएस नेताओं के आरक्षण विरोधी बयान से भी बीजेपी को नुकसान होता रहा है

सितंबर 2015 में आरएसएस के मुखपत्रों ‘पाञ्चजन्य’ और ‘ऑर्गेनाइज़र’ को दिए एक इंटरव्यू में मोहन भागवत ने आरक्षण की ‘समीक्षा’ किए जाने की ज़रूरत बताई थी. उन्होंने एक ‘अराजनीतिक समिति’ बनाने का प्रस्ताव रखा था जिसका काम ये देखना था कि आरक्षण का फायदा किन लोगों को और कितने समय तक मिलना चाहिए.

उनके इस बयान के ठीक बाद बिहार विधानसभा के चुनाव हुए थे, लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया था और कहा था कि 'संघ आरक्षण को ख़त्म कराना चाहता है'. कहा जाता है कि बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार में इस बयान की भी बड़ी भूमिका रही. शायद इस ग़लती से बीजेपी और आरएसएस दोनों ने सबक सीखा. 
 
शायद यही कारण है कि 23 सितंबर 2023 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण जारी रखने का समर्थन किया. भागवत ने कहा कि जब तक समाज में भेदभाव है आरक्षण भी बरकरार रहना चाहिए.संविधान सम्मत जितना आरक्षण है उसका संघ के लोग समर्थन करते हैं.जाहिर है कि भागवत के इस बयान से लोग चौंक गए.

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3- बीजेपी को चुनाव जीतना है तो आरएसएस को अपनी विचारधारा बदलनी ही होगी  

भारतीय जनता पार्टी ने आज चुनाव जीतने के लिए ही अपनी नीतियों और स्ट्रक्चर में काफी बदलाव किया है. जो पार्टी कभी ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी कही जाती रही है अब वह पिछड़ों की पार्टी बनती जा रही है. दूसरी ओर आरएसएस का कोई भी प्रमुख अभी तक पिछड़ी जाति या दलित जाति से नहीं बन पाया है. आरएसएस के अधिकतर प्रमुख अभी तक ब्राह्मण ही बनते रहे हैं. महिलाओं की मुख्य भूमिका में भागीदारी भी न के बराबर रही है. जबकि बीजेपी ने संसद में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने वाला कानून पास कर चुकी है.  य़ही कारण है कि आरएसएस की ऐसी छवि बन चुकी है कि उसकी विचारधारा महिला विरोधी है. आरएसएस महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकती है. महिलाओं को शाखा में जाने की इजाजत नहीं देता.अपनी महिला विरोधी छवि से निपटने के लिए आरएसएस नई शुरूआत कर चुका है.अब तक संघ में राष्ट्र सेविका समिति नाम से महिला संगठन हुआ करता था लेकिन संघ के अब महिला समन्वय नाम से शाखा शुरू किया जा चुका है. पर यह सब अभी ऊंट के मुंह में जीरा के समान ही है. जमाना बदल चुका है  . सोशल मीडिया के जमाने में अब महिलाएं अपना वोट का फैसला खुद करती हैं. यही नहीं महिलाएं अपने बच्चों और पति को भी अपने हिसाब से वोट करवा रही हैं.
शायद यही कारण है कि आरएसएस महिलाओं, दलितों और पिछड़ों को लेकर जो फैसले ले रहा है वो उसके पुराने विचारों से अलग नजर आ रही है.

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4-बीजेपी अब पिछड़ों और दलितों की पार्टी बनने की ओर अग्रसर है

भारतीय जनता पार्टी ने आरएसएस के मुकाबले तेज गति से अपने में बदलाव किया है. वह पार्टी जिसे सवर्णों और अमीरों की पार्टी माना जाता रहा है आज उसका चेहरा पिछड़ा समर्थक हो चुका है. पिछले 10 सालों में जितनी गरीबोन्मुख योजनाएं बीजेपी सरकार ने शुरू की हैं उतनी कांग्रेस और समाजवादी सरकारों में भी नहीं हो सकीं.वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल इस संबंध में कुछ तर्क देते हैं जो वाकई में रोचक हैं. मंडल लिखते हैं...

- पहली बार आदिवासी समुदाय की राष्ट्रपति इस सरकार ने बनाया. वे राष्ट्र गौरव हैं. 
- पहली बार केंद्र में 27 ओबीसी मंत्री इसी सरकार ने बनाए. कांग्रेस ने तो लालू यादव का राजनीतिक करियर ख़राब कर दिया. चुनाव लड़ने लायक़ नहीं छोड़ा. सहयोगी डीएमके के मंत्री को जेल डाल दिया था. मुलायम सिंह पर आय से अधिक संपत्ति का केस लगा दिया था.

- यूपी में पहला SC समुदाय का गवर्नर वाजपेयी जी ने बनाया. कांग्रेस ने कभी नहीं बनाया. 
- CAG के पद पर पहली बार एक आदिवासी इसी सरकार में आया. क़ाबिल हैं. 
-सरकार का इतना दबाव है कि अब सुप्रीम कोर्ट में भी चार एससी जज हैं. ये इतिहास में पहली बार हुआ. लॉ मिनिस्टर भी दलित हैं. 
- ओबीसी प्रधानमंत्री हैं. 
- कई महत्वपूर्ण मंत्रालय और विभाग ओबीसी के पास हैं. 
- भारी बजट वाले नेशनल हाईवे अथॉरिटी के चेयरमैन ओबीसी हैं. लंबी लिस्ट है. 
- पहली बार एक दलित कलाकार नॉमिनेटेड कटेगरी से राज्य सभा पहुंचा. इलैयाराजा भारत गौरव हैं. आप लोगों को तो ये लोग कभी दिखे नहीं. 
- पद्म पुरस्कार अब बड़ी संख्या में एससी, एसटी, ओबीसी को मिलने लगे हैं.
- NEET में जब राजीव गांधी ने ऑल इंडिया कोटा 1986 में लागू किया तो आरक्षण नहीं दिया. उसमें भी ओबीसी कोटा इसी सरकार में आया. हज़ारों ओबीसी डॉक्टर बन रहे हैं.
- कांग्रेस के समय तक सिर्फ़ असिस्टेंट प्रोफ़ेसर में आरक्षण था. अब एसोसिएट और फुल प्रोफ़ेसर में भी आरक्षण है. ये भी अभी हुआ.
- नवोदय में कांग्रेस ने ओबीसी कोटा नहीं दिया था. वहां भी अब लगा. 

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5. हिंदू एकता के लिए जातिगत बंटवारे की खाई नए सिरे से पाटना होगी

दरअसल आरएसएस का विचार हिंदू एकता ही रहा है. हिंदुओं के बीच जातिगत एकता के लिए संघ कुछ भी करने के लिए तैयार हो सकता है. यह इसी बात का उदाहरण है कि संघ जातिगत जनगणना को ग्रीन सिगनल दे रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि संघ ने इस संबंध में जो चिंता व्यक्त की है वह वाजिब है.जातिगत जनगणना की डिमांड ही इसलिए हो रही है कि हिंदुओं को बांटा जा सके.  सुनील आंबेकर कहते हैं कि आरएसएस का मानना है कि निश्चित रूप से, सभी कल्याणकारी गतिविधियों के लिए, विशेष रूप से उन समुदायों या जातियों को लक्षित करने वाले जो पीछे रह गए हैं – जिनके लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है .सरकार इसके लिए जाति जनगणना के जरिए डाटा तैयार कर सकती है.पर यह केवल उन समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए. इसका उपयोग चुनावों के लिए राजनीतिक हथियार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए. 

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