
कांग्रेस के लिए यह हफ्ता खुशियां लेकर आया. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने 17 सीटें कांग्रेस को देकर गठबंधन करने को राजी हो गया है. दिल्ली से आम आदमी पार्टी ने भी ऑफर दे दिया है. सबसे बड़ी बात यह है कि बंगाल में ममता बनर्जी जिन्होंने कांग्रेस को उसकी औकात तक बता दी थी वो भी सीटें ऑफर कर रही हैं. महाराष्ट्र में धमकी दे रहे उद्धव ठाकरे भी लाइन पर आ गए हैं और सीट शेयरिंग करने के लिए हामी भर दी है. अचानक ताबड़तोड़ गठबंधन के ऑफर कैसे आने लगे? क्योंकि आम जनता में कांग्रेस का ग्राफ तो बढता दिख नहीं रहा है. और न ही राहुल गांधी ने कोई ऐसा करिश्मा दिखा दिया है कि विपक्ष कांग्रेस से गठबंधन के लिए मजबूर हुए जा रहा है. फिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक कांग्रेस के फेवर में इन पांच राज्यों से खुशखबरी आई है? आइये जानने की कोशिश करते हैं.
1-विपक्षी खेमे से महापलायन
इंडिया गठबंधन के ऑर्किटेक्ट नीतीश कुमार के एनडीए में जाने के बाद बीजेपी विरोधी सभी पार्टियों में भगदड़ की स्थिति देखेने को मिल रही थी.जिसे देखकर कांग्रेस ही नहीं क्षेत्रीय दलों में भी हताशा की स्थिति देखने को मिलने लगी. समाजवादी पार्टी को ही लें तो स्वामी प्रसाद मौर्या ,पल्लवी पटेल और सलीम शेरवानी जैसे लीडर पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को आंख दिखा रहे थे. दूसरी ओर कांग्रेस में कमलनाथ, मिलिंद देवड़, अशोक चव्हाण, सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी जैसे कद्दावर लोग या तो निकल लिए या उनके मन बदलते दिख रहे थे. ऐसी स्थिति में पार्टियों के नेतृत्व को यह समझ में आया कि अगर जल्दी ही इस स्थिति को काबू नहीं करते हैं तो भारी डैमेज हो जाएगा. यह समझ में आते ही हर तरफ से थोड़ा तुम झुको , थोड़ा हम झुकते हैं शुरू हुआ और समझौते की राह प्रशस्त हुई है. ये कहानी केवल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की नहीं है. यही कहानी शिवसेना , टीएमसी और आम आदमी पार्टी की भी है. सभी को अपनी शाखाएं दिख रही थीं जो दूसरे के सहारे के लिए मचल रही थीं. इसके पहले कि शाखाएं साथ छोड़ दें जड़ों ने उनकी सुरक्षा के लिए तनों को झुकने का आदेश दे दिया.
2-राम मंदिर लहर
देश भर में राम मंदिर के नाम पर बीजेपी के पक्ष में लहर चलती हुई दिख रही है. राम मंदिर उद्घाटन को बीजेपी ने बहुत खूबसूरती से कैश कराने का बंदोबस्त किया.विशेषकर उत्तर भारत में राम मंदिर लहर के आगे विपक्ष के सभी हथियार फेल होते देखे जा रहे हैं. राहुल गांधी की जाति जनगणना का मुद्दा हो या अडानी के हाथों देश को बेचने की बात हो पब्लिक सुनने को तैयार नहीं है. इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यूपी में देखने को मिला. जाति जनगणना की बात न अखिलेश यादव कर रहे हैं और न ही उनकी पार्टी में पिछड़ों के नेता बनने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य या पल्लवी पटेल. किसान आंदोलन को भी न यूपी में तवज्जो मिल रही है न ही दिल्ली या हरियाणा में. पिछली बार जिस तरह पूरे देश के किसानों का सपोर्ट मिल रहा था इस बार वो किसान लहर कहीं नहीं देखने को मिला है. क्योंकि राम मंदिर के लहर के आगे सभी आंदोलन फीके पड़ गए हैं.
3-अस्तित्व बचाने का संकट
पार्टियों के सामने अस्तित्व बचाने का संकट पैदा हो गया है. अब उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण लें. समाजवादी पार्टी 2014 और 2019 में लोकसभा चुनावों में मात्र 5-5 सीटों पर सिमट कर रह गई. कांग्रेस का हाल यह है अपने 2 किले में एक अमेठी 2019 में गवां चुकी है. रायबरेली भी इस बार जीतना मुश्किल है क्योंकि वहां 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस साफ हो चुकी है.
रायबरेली संसदीय सीट को बचाने के लिए समाजवादी पार्टी की मदद की अपरिहार्य जरूरत है. क्योंकि रायबरेली की पांच विधानसभा सीटों में से 4 समाजवादी पार्टी के पास हैं और एक सीट बीजेपी के पास है. कांग्रेस का तो रायबरेली से सफाया हो चुका है. 2019 के चुनावों में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में केवल एक सीट जीतने में कामयाबी हासिल हुई थी. अगर कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपना अस्तित्व बचाना है तो जाहिर है उसे समाजवादी पार्टी की हर बात माननी होगी . नहीं तो रायबरेली भी उसके हाथ से गया समझिए. यही हाल समाजवादी पार्टी का है .
अगर इस बार के चुनावों में भी अखिलेश को 5 सीटों से अधिक नहीं मिलीं तो उत्तर प्रदेश में उनकी साख को खतरा पैदा हो जाएगा. उनकी जगह लेने के कोई और दल आ जाएगा. दिल्ली में आम आदमी पार्टी को भी अपने अस्तित्व का संकट है. पिछली बार लोकसभा चुनावों में उसकी स्थिति बहुत खराब थी. महाराष्ट्र में भी उद्धव ठाकरे हों या शरद पवार सभी के हाथ से सत्ता तो गई ही पार्टी भी नहीं बची है. अगर सभी मिलकर चुनाव नहीं लड़े तो अस्तित्व का संकट तय है.
4-कई सर्वें में एनडीए को विशाल बहुमत
लोकसभा चुनावों को लेकर हाल ही में आए कुछ सर्वे की बात करें तो यब स्पष्ट दिख रहा है कि 2024 में एक बार फिर एनडीए भारी बहुमत से वापसी कर रहा है. इंडिया टुडे के सर्वे में एनडीए को 335 सीट मिलती दिख रही थी जबकि बीजेपी अकेले 304 सीट जीतती हुई दिख रही है. यही नहीं इसी तरह के मिलते-जुलते परिणाण दूसरे मीडिया हाउसेस के सर्वे में भी देखने को मिली है. पर दूसरी ओर उम्मीद की किरण भी है. सीएसडीएस के आंकड़े बताते हैं कि अगर विपक्ष एक जुट होकर चुनाव लडता है तो बीजेपी को 235 से 240 सीटों पर रोका जा सकता है जबकि विपक्ष को 300 से 305 सीटें मिल सकती हैं.उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 303 सीटें मिलीं थी जबकि विपक्ष को 236 सीटें हासिल हुईं थीं. आंकड़े बताते हैं कि अगर बीजेपी का एक परसेंट वोट भी कम होता है तो बीजेपी की सीटें 225 से 230 तक पहुंच सकती हैं, जबकि विपक्ष का आंकड़ा 310 से 325 तक पहुंच सकता है. सीट शेयरिंग के राजी होने के पीछे यह एक बहुत बड़ा कारण निकल कर आ रहा है.