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हरियाणा नगर निकाय चुनावों में बीजेपी की बंपर जीत में प्रदेश कांग्रेस की कितनी भूमिका?

आम तौर पर कहा जाता है कि प्रदेश में जिसकी सरकार रहती है स्थानीय निकाय चुनावों में उस दल का ही बहुमत होता है. पर बिल्कुल ऐसा भी नहीं है. वह भी तब जब कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टी का राज्य से सफाया ही हो जाए. वह भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे कद्दावर नेताओं के इलाके से भी पार्टी न जीत पाए तो सवाल तो उठेंगे ही.

सीएम नायब सिंह सैनी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा. (फाइल फोटो) सीएम नायब सिंह सैनी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा. (फाइल फोटो)
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 12 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 7:37 PM IST

हरियाणा नगर निकाय चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 10 नगर निगमों में से 9 पर जीत दर्ज कर ली है, जिसमें कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेंद्र हुड्डा का गढ़ रोहतक भी शामिल है. जबकि मानेसर में निर्दलीय महिला उम्मीदवार को जीत मिली है. जिसके बारे में बताया जा रहा है कि ये बीजेपी की बागी कैंडिडेट हैं. कांग्रेस पर इस सीट को जीतने का मौका था पर यहां भी उसकी दाल नहीं गली. विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद कांग्रेस के पास शक्ति प्रदर्शन का यह अच्छा मौका था पर पार्टी के गढ़ों में भी प्रत्याशी जीत नहीं सके. भूपेंद्र सिंह हुड्डा होम टर्फ रोहतक और रेशलर से विधायक बनीं विनेश फोगाट के इलाके जुलाना में भी कांग्रेस को शर्मिंदा होना पड़ा है. बड़ी बात यह भी है कि कांग्रेस उम्मीदवारों की हार बड़े मतों के अंतर से हुई है. फरीदाबाद में बीजेपी की परवीन जोशी ने 3 लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की, जबकि गुरुग्राम में राज रानी ने 1.79 लाख वोटों के अंतर से विजय प्राप्त की है. आइये देखते हैं कि वो कौन से कारण रहे जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को उसके सबसे मजबूत गढ़ों में भी धूल चटा दिया है. 

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1-कांग्रेस का हुड्डा को प्रतिपक्ष का नेता नहीं बनाना

निकाय चुनाव के नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि इन परिणामों का कांग्रेस पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा, पहले भी नगर निगमों में बीजेपी का दबदबा रहा है. अगर हम कोई सीट हारते तो यह झटका होता, लेकिन ये हमारे पास पहले से ही नहीं था. कुछ क्षेत्रों में कांग्रेस को बढ़त मिली होगी, लेकिन मैं चुनाव के दौरान कहीं नहीं गया. मुझे नहीं लगता कि इन नतीजों का कोई खास प्रभाव होगा.

हालांकि अभी तक प्रदेश की केवल 6 नगर निगम सीटों पर बीजेपी काबिज थी. हरियाणा की 2 नगर निगम वाले शहरों में कांग्रेस के मेयर थे और एक शहर में हरियाणा जन चेतना पार्टी की मेयर थी. मानेसर नगर निगम में पहली बार चुनाव हुए हैं पर यहां बीजेपी कैंडिडेट को हार मिली है. पर कांग्रेस को यहां भी मौका नहीं मिल सका है.

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दरअसल हरियाणा विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस पार्टी अभी तक नेता प्रतिपक्ष का चुनाव नहीं कर सकी है. हरियाणा में माना जाता है कि कांग्रेस हुड्डा की मुट्ठी में है. कांग्रेस के कुल 37 विधायकों में से बमुश्किल 3 या 4 विधायक ही हुड्डा कैंप के नहीं हैं. जाहिर है कि हुड्डा के दबदबे को देखते हुए नेता प्रतिपक्ष का पद उन्हें दे देना चहिए था. पर कांग्रेस पार्टी में हुड्डा को लेकर क्या चल रहा है ये कोई नहीं समझ सकता है. जाहिर है ऐसे में पार्टी की दुर्दशा तो होनी ही थी. हरियाणा में कांग्रेस में हुड्डा पिता-पुत्र ही जमीन के नेता हैं. इन दोनों ही ने इस बार ग्राउंड पर उतर कर मेहनत नहीं की . नतीजा सामने है.

2-दिल्ली में आम आदमी पार्टी जैसा संघर्ष नहीं दिखा कांग्रेस का

दिल्ली में आम आदमी पार्टी चुनाव हारने के दिन से आम लोगों के मुद्दे के लिए सड़क से लेकर विधानसभा तक में संघर्ष कर रही है. ठीक इसके उलट कांग्रेस की आवाज हरियाणा में गायब है. दिल्ली में हर रोज आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी बीजेपी सरकार पर हमले करती हैं. बीजेपी के चुनावी वादों को पूरा करने की मांग करती हैं. पर हरियाणा में ऐसा कुछ नहीं हो रहा. कांग्रेस ने कभी किसानों के लिए या आम आदमी की कठिनाइयों को लेकर धरना प्रदर्शन तो दूर अखबारों में विज्ञप्ति देती हुई भी नहीं दिख रही है. एक तरीके से पार्टी राज्य में नेतृत्ववीहिन , दिशाहीन हो चुकी है. एक तरफ बीजेपी का चुनाव प्रचार करने के लिए हरियाणा के मुख्यमंत्री ही नहीं दिल्ली की मुख्यमंत्री भी जमीन पर उतर गईं थीं. पर कांग्रेस की ओर से हुड्डा जैसे चेहरे ही नदारद रहे. ऐसे में प्रत्याशियों का मनोबल पहले ही कमजोर हो गया था.

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3-नायब सैनी की कार्यशैली

प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की लोकप्रियता भी एक बड़ा कारण है निकाय चुनावों में बीजेपी को मिले व्यापक समर्थन का. आम तौर पर अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों के मुकाबले नायब सिंह सैनी हंबल और सर्वसुलभ हैं. जनता की बातों को सुनते हैं और आसानी से प्रदेश की जनता के लिए उपलब्ध हो जाते है. सरकार में आने के बाद विकास कार्य करने के दावे तो सभी मुख्यमंत्री करते हैं. खुद नायब सैनी ने भी कुर्सी मिलने के बाद सभी वर्गों के लिए कुछ न कुछ ऐलान जरूर किया है. पर जो बात उन्हें अलग बनाती है वह उनका व्यवहार ही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मुख्यमंत्री सैनी के सरल व्यक्तित्व के कायल हैं. यही कारण है कि पीएम उन्हें अक्सर तीन ‘वी’ की उपाधि से सम्मानित करते रहे हैं. प्रधानमंत्री कहते हैं कि नायब सिंह सैनी विनम्र, विवकेशील व विद्वान व्यक्तित्व के धनी हैं, जिन्होंने इतने कम समय में मुख्यमंत्री के रूप में राजनीतिक लोकप्रियता हासिल की है.

मुख्यमंत्री ने सिरसा और नारायण गढ़ के कार्यक्रमों में जिस तरह कांग्रेस विधायकों को तवज्जो दी उसके चलते पूरे राज्य में उनके पक्ष में माहौल बना है. विरोधी भी उनकी तारीफ करते मिल जाते हैं.

4-जनता को चाहिए ट्रिपल इंजन वाली सरकार

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जनता समझदार हो गई है. उस पता है कि रोजमर्रा के जीवन में कठिनाइयों का अंत तभी होगा जब राज्य और केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की सरकार स्थानीय स्तर पर भी होगा. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार होने से जो दुर्दशा लोगों की हुई है उसे हरियाणा की जनता ठीक से समझ गई है. जनता समझती है कि स्टेट गवर्नमेंट और सेंट्रल गवर्नमेंट की मदद के बिना स्थानीय निकायों का काम नहीं चल सकता है.  

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