
22 साल बाद 13 दिसंबर के ही दिन एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र के मंदिर पर हमले की कोशिश की गई है. हालांकि, इस बार के हमले में कोई नुकसान नहीं हुआ है पर आगे की जांच में पता चलेगा कि हमलावरों का कितना नुकसान करने का इरादा था. अभी तक जो तथ्य सामने आ रहे हैं उससे तो यही लगता है कि ये लोग गुमराह युवा थे. जिन्हें व्यवस्था से नफरत थी और वे अपनी आवाज को देश के सामने लाने की कोशिश कर रहे थे. अभी तक हमलावरों के बारे में जो कुछ पता चला है उसके अनुसार किसी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं मिला है. संसद के बाहर जो लड़की पटाखे छोड़ने के बाद नारेबाजी करती गिरफ्तार हुई है वो सिविल सेवा की तैयारी कर रही थी और खास बात यह है कि वो किसान आंदोलन में भी भाग ले चुकी है. एक और आरोपी, जिसका नाम सागर शर्मा बताया जा रहा है वो लखनऊ में ई-रिक्शा चलाता है.
बात बस इतनी ही नहीं है. अगर इन हमलावरों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और क्या ये भगत सिंह की तर्ज पर बम फोड़कर सरकार तक अपनी नाराजगी पहुंचाना चाहते थे? बात अगर इतनी भी है तो भी ये मामला आतंकवाद से कम गंभीर नहीं हो जाता है. आतंकवाद को बल के आधार पर नेस्तनाबूद किया जा सकता है पर इस तरह की नराजगी को दूर करना बहुत मुश्किल है. जिस तरह संसद के बाहर हमलावरों के साथ आई लड़की मीडिया को बाइट दे रही थी उसके पास कोई भी ऐसा वजनदार तर्क नहीं था जिसके चलते उसके कृत्य के साथ हमदर्दी हो सके. भारत माता की जय, जय भीम, तानाशाही नहीं चलेगी जैसे नारे के साथ ये कहना है कि हमारी बात नहीं सुनी जा रही है, जिसकी वजह से उन्होंने ये कदम उठाया. ये कहीं से भी तार्किक नहीं लगता.
किसान आंदोलन की कितनी भूमिका
संसद के बाहर नारे लगाती लड़की के बारे में कहा जा रहा है कि वो किसान आंदोलन से भी जुड़ी हुई थी.संसद के बाहर मीडिया से वो कह रही थी कि ''मेरा नाम नीलम है. भारत सरकार हमारे ऊपर अत्याचार करती है. हकों की बात करने पर लाठीचार्ज करके हमें जेल के अंदर डाला जाता है. टॉर्चर किया जाता है. हमारे पास आवाज उठाने का कोई माध्यम नहीं है. हम किसी संगठन से नहीं हैं. आम स्टूडेंट हैं. माता-पिता हमारे लिए इतना काम करते हैं. मजदूर, किसान, छोटे व्यापारी, दुकानदार किसी की आवाज नहीं सुनी जाती. यह हर जगह हमारी आवाज को दबाने की कोशिश करते हैं. तानाशाही नहीं चलेगी. तानाशाही बंद करो. भारत माता की जय.'' यह कहते-कहते चीखती-चिल्लाती और नारेबाजी करती हुई एक प्रदर्शनकारी महिला को पुलिसकर्मी गाड़ी में बैठा देती है.
दरअसल, इस तरह की टेंडेंसी पूरी शासन व्यवस्था को पंगु बना सकती है. जब नाराजगी संसद भवन तक पहुंच सकती है तो कल लोकल लेवल पर हर ऑफिस और संस्थान इस तरह की धमकियों का शिकार हो सकता है. किसान आंदोलन पर पहले भी देश विरोधी गतिविधियों को लेकर आरोप लगता रहा है. इस तरह के हजारों युवकों को सरकार और देश के खिलाफ बरगलाने का नतीजा अब सामने आ रहा है. खालिस्तानी आतंकवादियों से जुड़े कई संगठन किसान आंदोलन को टूल-किट की तरह इस्तेमाल कर रहे थे.कई महीने तक देश की राजधानी को बंधक ही नहीं बनाया गया बल्कि ट्रैक्टर रैली के नाम पर लाल किले में घुसकर खालसा का झंडा भी फहराया गया. इस तरह के आंदोलनों की परिणाम यही होता है कि अंततः ये नक्सलवाद को जन्म देते हैं जो समाज के लिए नासूर बन जाता है.
क्या शाहरुख की जवान से लिया गया प्लॉट
शाहरुख खान की इसी साल आई फिल्म जवान का प्लॉट भी कुछ ऐसा ही है. समाज में नौकरशाही से परेशान जो किसान आत्महत्या कर चुके हैं उनकी कर्जमाफी के लिए पूरी मेट्रो को ही बंधक बना लिया जाता है. मेट्रो में यात्रियों को बंधक बनाने के लिए नकली बंदूक का इस्तेमाल किया जाता है. और बंधक बनाने में लगी सभी लड़कियां किसी न किसी तरीके से नौकरशाही और सरकार की सताईं हुईं होती हैं. इन लड़कियों का नेतृत्व कर रहा युवक सबको न्याय दिलाने के लिए यह तरीका अपनाता है. मेट्रो यात्रियों को बंधक बनाकर सरकार से अपनी मांगें पूरी कराई जाती हैं. क्या ये मामला कुछ वैसा ही नहीं है. हो सकता है कि पूरा प्लान सफल नहीं हुआ हो, यह भी हो सकता है कि कुछ सांसदों को बंधक बनाने का प्लान रहा हो.
सांसदों की हिम्मत की दाद देनी होगी
कल्पना करिए कहीं भीड़ में आप खड़े हैं जहां आज ही के दिन कुछ सालों पहले हमला हो चुका हो, जिसमें कई लोगों की जान जा चुकी हो. आपके सामने अचानक धुआं-धुआं हो जाए. कुछ अवांछित लोग हमला करने के अंदाज में दिख जाएं. ऐसी हालत में आपकी स्थिति क्या होगी. आम तौर पर ऐसी स्थिति में अफरातफरी मच जाती है. लोग अपनी जान बचाने के लिए भागते हैं. ऐसा ही कुछ हुआ आज लोकसभा में. पर आश्चर्य देखिए कि हमारे सांसदों ने जो हिम्मत दिखाई वो काबिलेगौर है. हमले के जो वीडियो सामने आए हैं उनमें हमारे सांसद जान बचाकर भागने की बजाय मुकाबला करते दिख रहे हैं. सासंदों ने भागने की बजाय हमलावर को दबोच लिया. संसद भवन की सिक्युरिटी के अंदर पहुंचने तक सांसदों ने सिक्युरिटी जवानों वाला काम कर दिया था.