
दिल्ली विधानसभा चुनावों में पिछले दो बार से आम आदमी पार्टी को जिस तरह एकतरफा जीत मिली है, उससे साफ जाहिर है कि उसे सभी वर्गों का वोट मिला था. पर इस बार पूर्वांचली वोटर्स को लेकर आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही कुछ ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं. पर आम आदमी पार्टी की पूर्वांचल को लेकर कुछ ज्यादा ही सक्रियता बताती है कि उन्हें लगता है कि इस बार उनका यह वोट बैंक उनके साथ नहीं है. क्योंकि दिल्ली में अपने दूसरे वोटर्स के लिए आप उस तरह बेचैन नहीं हैं जिस तरह पूर्वांचलियों के लिए लगातार कुछ न कुछ उनके द्वारा किया जा रहा है. तो क्या समझा जाए कि पूर्वांचली वोटर इस बार दिल्ली विधानसभा चुनावों में किंगमेकर की भूमिका में हैं? क्या ऐसा नहीं लग रहा है कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में पूर्वांचली बनाम अन्य की जंग की कोशिश हो रही है. सवाल यह उठता है कि अगर ऐसा होता है तो फायदे में कौन रहेगा?
1- तीन हफ्ते में ही केजरीवाल का दांव कैसे उल्टा पड़ गया?
20 दिसंबर 2024 को यानी आज से करीब 3 हफ्ते पहले दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया कि बीजेपी के राट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली में बसे पूर्वांचल समाज के लोगों की तुलना बांग्लादेशियों से की है. बीजेपी के लोग पूर्वांचल समाज के नाम कटवाने के लिए फॉर्म भरवा रहे हैं. उन्होंने इसे पूर्वांचल समाज के खिलाफ एक बड़ी साजिश करार दिया. इसके खिलाफ आम आदमी पार्टी दिल्ली में पूर्वांचलियों के सम्मान में संजय सिंह मैदान में अभियान चलाने की घोषणा की थी. पार्टी ने कहा था कि अभियान के दौरान लोगों को जेपी नड्डा का संसद में दिया गया भाषण दिखाया जाएगा और सांसद संजय सिंह कालोनियों में रात्रि प्रवास भी करेंगे. अरविंद केजरीवाल ने कहा, दिल्ली में 30-40 साल से बसे लोग, जो यूपी और बिहार से आए हैं, उन्हें 'रोहिंग्या' और 'बांग्लादेशी' कैसे कहा जा सकता है?
इस बयान के ठीक 20 दिन बाद गुरुवार को अरविंद केजरीवाल मुख्य चुनाव आयुक्त से मुलाकात के बाद कहते हैं कि 15 दिसंबर से 8 जनवरी तक 13 हजार नए वोट बनवाने के लिए आवेदन किए गए हैं. नई दिल्ली एक लाख वोटों की विधानसभा है, उसमें 13 हजार नए लोग कहां से आ गए. पिछले 15 दिनों में 13 हजार नए वोट बनवाने के लिए एप्लिकेशन किए गए हैं. इससे साफ होता है कि ये लोग यूपी, बिहार और आसपास के राज्यों से लोगों को लाकर फर्जी वोट बनवा रहे हैं. तो 13 हजार वो और साढ़े पांच हजार ये, साढ़े 18 प्रतिशत वोट अगर किसी विधानसभा से इधर से उधर कर दिए जाएंगे तो फिर चुनाव थोड़ी है. फिर तो सिर्फ तमाशा है.
केजरीवाल के इसी वीडियो के बाद हंगामा शुरू हुआ-
अरविंद केजरीवाल के कहने का मतलब बता रहा था कि जैसे पूर्वांचली समुदाय कहां से आ जाता है. और आ गया तो उन्हें तो वोट देगा नहीं. उनका भाव इस तरह से, जैसे ये लोग अनावश्यक हैं. जैसे हम इन्हें झेल रहे हों. चुनावी मौसम में बस इतना कहना ही काफी होता है. दूसरी पार्टी इसे लपकने के लिए तैयार बैठी होती है. जैसे जेपी नड्डा के रोहिंग्या वाले बयान को अरविंद केजरीवाल ने कैच किया, जैसे अमित शाह के संसद में दिए गए अंबेडकर वाले बयान को कांग्रेस ने कैच किया था. अब बारी बीजेपी की थी. जाहिर है कि बीजेपी तो इस खेल की मास्टर है. बीजेपी से ही सीखकर आज कांग्रेस और आप ने इस तरह की बातों पर सामने वाली पार्टी को घेरना सीखा है.
2-क्या दिल्ली में पूर्वांचली बनाम अन्य की जंग कराना चाहते हैं केजरीवाल?
अरविंद केजरीवाल को यह पता है कि दिल्ली में पूर्वांचलियों के बीच आम आदमी पार्टी के बजाय बीजेपी ज्यादा लोकप्रिय है. इसलिए ही शायद उन्होंने तीन हफ्ते पहले 20 दिसंबर को पूर्वांचलियों को अपने खेमे में लाने के लिए ही नड्डा के रोहिंग्या वाले भाषण को तूल पकड़ाया था. पर जब 3 हफ्तों में भी पूर्वांचली वोटों में सेंध लगाने में पार्टी असफल रही तो संभवतया दूसरे खेल की प्लानिंग की गई. संभव है कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली में पूर्वांचली बनाम अन्य का खेल करवाना चाहते हैं. जाहिर है कि पूर्वांचलियों की जनसंख्या दिल्ली की कुल आबादी की करीब 24 से 25 प्रतिशत है. दिल्ली विधानसभा की कुल 35 सीटों पर पूर्वांचली ठीक ठाक संख्या में हैं. 17 विधानसभा पूर्वांचली बहुल है.यानि कि यहां पर जीत हार की चाभी पूर्वांचली वोटर्स के हाथ में है.
आम तौर पर दिल्ली के पुराने बाशिंदों को बाहर से आए लोग नापसंद हैं. यह किसी भी शहर और समाज के लिए सत्य होता है. अरविंद केजरीवाल की मंशा ये हो सकती है कि 75 बनाम 25 की जंग करा दी जाए. पूर्वांचलियों के प्रति चाहे अरविंद केजरीवाल हों या पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शीला दीक्षित दोनों का ही नजरिया उनके लब पर चाहे अनचाहे आता रहा है. देश में और भी कई नेता हैं जो पूर्वांचलियों को हेय दृष्टि से देखते रहे हैं.
3-क्या पूर्वाचल के वोटर्स आप के बजाय बीजेपी के नजदीक हैं?
उत्तर प्रदेश और बिहार में काफी दिनों से बीजेपी की सरकार है. दूसरे इन दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी अभी भी जगह नहीं बना सकी है. जाहिर है कि यहां के लोग सीधे तौर पर अपने जड़ों से जुड़े हैं इसलिए बीजेपी के ज्यादे नजदीक हैं. इसके बावजूद पिछले 2 चुनावों में पूर्वांचली समुदाय ने आम आदमी पार्टी का वोट दिया है. पर कोविड के दौरान सबसे मुश्किल में गरीब और श्रम करने वाले लोग ही परेशान हुए थे. लाखों की संख्या में मजदूरों को उनकी हाल पर छोड़ दिया गया था. 2020 और 2021 में कई मौके ऐसे आए जब दिल्ली सरकार ने उनको जैसे तैसे जीने के लिए छोड़ दिया. आपको याद होगा कि आनंद विहार के पास लाखों लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. यूपी की बसें उन लोगों को आनंद विहार बॉर्डर से मुफ्त में उन्हें घर छोड़ रही थीं. और दिल्ली सरकार का कोई प्रतिनिधि उस समय नहीं दिखाई देता था. दिल्ली सरकार ने पूर्वाचलियों के प्रति जो व्यवहार दिखाया था वह आम आदमी पार्टी की सरकार की ऐतिहासिक भूल थी. जाहिर है कि उसके बाद पूर्वांचली समाज को लगा उनकी पार्टी वहीं हैं जो यूपी और बिहार में एक्टिव हैं. एम्स में भीड़ को लेकर अरविंद केजरीवाल ने जो बयान दिया था वो भी इस समाज को हर्ट करने के लिए काफी था.
4- पूर्वांचली वोटर्स को अपना बनाने के लिए बीजेपी ने की है खास तैयारी
दिल्ली में BJP ने बहुत पहले से ही मनोज तिवारी के अलावा बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को चुनाव प्रचार में उतारा हुआ है. कहा जा रहा है कि बीजेपी ने अपने NDA के सहयोगियों JDU और LJP को भी कुछ सीटें देने की योजना बनाई है. बीजेपी चाहती है कि बिहार से जुड़ी इन सहयोगी पार्टियों की वजह से पूर्वांचली वोटर बीजेपी से जुड़ें. बिहार और पूर्वी यूपी से अपने कई वरिष्ठ सांसदों और नेताओं ने भी मैदान बीजेपी के पक्ष में मैदान संभाला हुआ है. अरविंद केजरीवाल के बाहरियों वाले भाषण के एनकाउंटर में उत्तर प्रदेश के सीएम ,दोनों डिप्टी सीएम ने बयान जारी कर अरविंद केजरीवाल को घेरा है. एनडीए के सहयोगिओं ने भी कड़ा एतराज जताया है. बीजेपी ने अपने पूर्वांचल मोर्चा समेत सभी मोर्चों को विधानसभाओं में पूर्वांचली वोटरों तक पहुंचने के लिए चाय पर चर्चा की तरह लिट्टी-चोखा पर चर्चा का अभियान तैयार किया हुआ है. बिहार और उत्तर प्रदेश से डेढ़ सौ से अधिक विधायक, सांसद, मंत्री और 25000 से अधिक बीजेपी के कार्यकर्ता विभिन्न कार्यक्रमों मसलन पूर्वांचली लाभार्थी संपर्क अभियान, पूर्वांचल स्वाभिमान सम्मेलन, पूर्वांचली सांस्कृतिक समिति संपर्क अभियान, पूर्वांचल समाज संवाद, पूर्वांचली मकर संक्रांति महोत्सव अभियान में शामिल होंगे.