
राजस्थान में बीजेपी ने लैंडस्लाइड विक्ट्री दर्ज की है. कांग्रेस की इतनी बड़ी हार का अंदाजा ग्राउंड पर काम करे लोगों को भी नहीं था. यह क्यों और कैसे हुआ इस पर अलग-अलग मत हो सकते हैं, पर इतना तय है कि यह जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे की ही जीत मानी जाएगी. स्थानीय स्तर पर किसी भी नेता को फेस नहीं बनाया गया था. इसलिए मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी बहुत हैं. पर भारतीय जनता पार्टी किसी को मुख्यमंत्री घोषित करने से पहले 2024 के लोकसभा चुनावों को भी ध्यान में रखेगी. बीजेपी की पूरी रणनीति इस समय कुछ महीनों बाद होने वाले लोकसभा चुनावों पर ही केंद्रित है.
इस बीच बहुत से नाम सीएम पद के दावेदारों के लिए जा रहे हैं पर जिन दो नामों की चर्चा सबसे ज्यादा है उनमें हैं जयपुर राजघराने की राजकुमारी दीया कुमारी और योगी बालकनाथ.ये दोनों लोकसभा सदस्य हैं और पार्टी ने इन्हें राजस्थान से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा था. दोनों नेता विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं.मीडिया में भी इन दोनों के सीएम कैंडिडेट बनने को लेकर काफी कुछ लिखा जा चुका है. आइये देखते हैं राजस्थान की राजनीति को देखते हुए दोनों के बीच सीएम पद की होड़ में कौन किससे कितना आगे है?
बालकनाथ ( प्लस पॉइंट्स)
राजस्थान की सियासत में बीजेपी के इस नेता को ‘योगी’ कहा जाता है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के नाथ संप्रदाय के योगी बालकनाथ अपने संप्रदाय के ही बाल सखा की तरह आक्रमक हिंदुत्व की राजनीति करते हैं. तिजारा सीट जहां से बाबा बालकनाथ ने जीत दर्ज की है वहां उनके नामांकन कराने से लेकर चुनाव प्रचार तक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सक्रिय रहे.सबसे अहम बात यह है कि आज तक और एक्सिस माई इंडिया के सर्वे में राजस्थान की जनता अशोक गहलोत के बाद सीएम पद के लिए सबसे अधिक बालकनाथ को ही पसंद कर रही थी. यहां तक कि वसुंधरा राजे और सचिन पायलट से भी अधिक लोगों ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की बात की थी.आइये देखते हैं कि कौन सी खूबियां ऐसी हैं जिनके चलते ये उम्मीद जगती है कि पार्टी उन्हें सीएम बना सकती है. साथ ही वे कौन से कारण हैं जिसके चलते वे सीएम बनने से चूक सकते हैं.
-ओबीसी और यादव होने का फायदा बीजेपी को मिलेगा
बालकनाथ यादव जाति से आते हैं. राजस्थान में ओबीसी होने के चलते उन्हें अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी दीया कुमारी से बढ़त हासिल हो रही है. क्योंकि हालिया ट्रेंड यही है कि हर पार्टी ओबीसी नेताओं को ही प्रोजेक्ट कर रही है. कांग्रेस नेता अपने भाषणों में यह कहा करते थे कि उनके पास तीन मुख्यमंत्री ऐसे हैं जो ओबीसी कैटेगरी से आते है, जबकि बीजेपी का केवल एक सीएम ही ओबीसी कैटेगरी का है. बालकनाथ का यादव होना उत्तर प्रदेश -बिहार के साथ हरियाणा के लोकसभा चुनावों मे पार्टी के लिए कारगर हो सकता है. यूपी और बिहार में अगर यादव वोट का बहुत बड़ा शेयर है .अखिलेश यादव और लालू परिवार के कारण यादव वोट बीजेपी को नहीं मिलते रहे हैं. लोकसभा चुनावों में बालकनाथ को फेस बनाकर अगर यादव वोटर्स का कुछ परसेंट भी पार्टी खींच लेती है तो यूपी बिहार में समाजवादी पार्टी और आरजेडी को कमजोर किया जा सकेगा.
-कट्टर हिंदुत्ववादी छवि का लाभ
विकास और कल्याणकारी योजनाओं में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. बीजेपी ने भी काफी कुछ उसी तरह की योजनाओं का वादा किया था. पर कांग्रेस की बजाय अगर बीजेपी को जनता ने पसंद किया तो इसका मतलब है कि हिंदुत्व का मुद्दा जोरदार चला है. कन्हैया लाल मर्डर केस को लोगों ने कांग्रेस के तुष्टिकरण की नीति का नतीजा माना है. ऐसे समय में कांग्रेस भी कोशिश करेगी कि वो हिंदुत्व के मुद्दे पर और सॉफ्ट हो. लोकसभा चुनावों में हिंदुत्व के मुद्दे पर अगर पार्टी को मजबूती से अड़े रहना है तो बालकनाथ इसके लिए मुफीद रहेंगे.
-पार्टी को एक और योगी जैसा मजबूत नेता मिल जाएगा
कट्टर हिंदुत्ववादी योगी आदित्यनाथ की शैली की पूरे देश में चर्चा होती है. योगी आदित्यनाथ का इस्तेमाल पूरे देश में बीजेपी करती रही है. यहां तक की पूर्वोत्तर में भी योगी की डिमांड रहती है. राजस्थान मे भी बालकनाथ को पसंद करने का कारण यही है कि लोगों को लगता है कि बालकनाथ योगी आदित्यनाथ की शैली में राज्य को चलाएंगे.कुल मिलाकर पार्टी चाहेगी कि एक और योगी बीजेपी को मिल जाए तो बेहतर होगा.
-योगी के नाम पर पार्टी के अंदर गुटबंदी को कम किया जा सकेगा
आम तौर पर योगी आदित्यनाथ की तरह बालकनाथ भी राज्य में गुटबाजी से अलग थलग हैं. पार्टी चाहेगी कि 2024 लोकसभा चुनावों तक पार्टी में किसी भी तरीके की गुटबाजी न हो . बालकनाथ किसी भी जाति के नेता नहीं हैं . उनकी जाति की संख्या भी राज्य में नगणय ही है. इसलिए जाति के नाम पर भी किसी तरह का असंतोष होने की उम्मीद नहीं है. जैसे किसी जाट को बनाने पर राजपूत और गुर्जर नाराज हो सकते हैं या गुर्जर को बनाने पर जाट और राजपूत नाराज हो सकते हैं. इसलिए बालकनाथ के नाम मुहर लग सकती है.
बालकनाथ (नेगेटिव पॉइंट)
-राजस्थान में जातियों के समीकरण में फिट नहीं
राजस्थान की जातिगत राजनीति में वे मिसफिट हैं. उनके नाम पर जातिगत वोटबैंक नहीं के बराबर है. ओबीसी वोटबैंक नाम की कोई चीज राजस्थान में डिवेलप नहीं हो पाई है. यहां पर गुर्जर और जाट वोट बैंक हैं.
-पार्टी एक और नाथ योगी को लाना नहीं चाहेगी
पार्टी एक और नाथ योगी को बड़ा पद देकर पार्टी की छवि और अधिक परंपरागत पार्टी वाली नहीं बनाना चाहेगी. वैसे ही योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय नेतृत्व के अनबन की खबरें आती रहती हैं. बालकनाथ के आने के बाद योगी आदित्यनाथ का काकस बनने की आशंका भी बनेगी. कोई भी पार्टी नहीं चाहेगी कि पार्टी में कोई मजबूत काकस बने.
दीया कुमारी (प्लस पॉइंट्स)
राजस्थान बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुधरा राजे सिंधिया के पैरलल महारानी दीया कुमारी को खड़ा करने की कोशिस यूं ही नहीं हो सकती.यह है कि पार्टी वसुंधरा की जगह नया नेतृत्व तैयार करने के मूड में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजस्थान में अपनी सभाओं में जिस तरह दीया कुमारी को तवज्जो दिए उससे उनकी राजस्थान में राजनीतिक ताकत नजर आ रही थी. दिसंबर 2018 में जब बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने दीया कुमारी और उनकी मां पद्मिनी देवी के जयपुर आवास पर पहुंचे थे तभी से यह अटकलें लगनी शुरू हो गईं थीं कि महारानी का भविष्य पार्टी में उज्जवल दिख रहा है.महारानी दीया कुमारी पर पार्टी क्यों दांव लगा सकती है, इसके कई कारण है. उसी तरह वो क्यों सीएम पद की रेस में पीछे छूट सकती हैं यह भी देखते हैं.
-श्रीराम के वंशज होने के नाते हिंदुत्व को धार
जयपुर राजघराना कछवाहा राजपूतों का रहा है. महारानी दीया कुमारी कई बार ये दावा कर चुकी हैं कि उनका वंश श्रीराम के बेटे कुश के 399वीं पीढ़ी है. पिता भवानी सिंह को 1971 के भारत-पाक युद्ध में पराक्रम दिखाने के लिए याद किया जाता है.महारानी दीया कुमारी का परिवार कांग्रेसी रहा है पर दीया कुमारी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर जमकर बोलती हैं. उन्होंने एक बार ताजमहल पर अपने खानदान का दावा ठोंक दिया था. उनका कहना था कि उनके पास ऐसे डॉक्युमेंट हैं जिससे साबित होता है कि यह जगह हमारी है.
-वसुंधरा को हटाने की भरपाई रजवाड़े से ही
अगर बीजेपी महारानी दीया कुमारी को सीएम कैंडिडेट बनाती है तो यह एक महारानी की जगह दूसरी महारानी जैसा ही होगा. वसुंधरा राजे को महारानी के नाम से भी बुलाया जाता है. दीया कुमारी भी महारानी हैं. दोनों राजपूत हैं, जो बीजेपी के परंपरागत रूप से वोटर हैं. इसलिए बीजेपी आश्वस्त हो सकती है कि अगर वसुंधरा नाराज भी होती हैं तो पार्टी को कोई नुकसान नहीं होने वाला है.
-राजपूत वोटरों को साधने में आएंगी काम
वसुंधरा से किनारा करने के बाद बीजेपी को राजपूत वोटों की चिंता रहेगी. पिछली बार राजपूत वोटों की नाराजगी के चलते ही 2018 में सरकार बनते बनते रह गई थी. लोकसभा चुनावों में आगे ऐसा कुछ न हो इसके लिए रानी की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी.
दरअसल राजस्थान में राजपूत करीब 14 फीसदी हैं जिनका 60 विधानसभा सीटों पर असर है. वैसे तो बीजेपी के पास कई राजपूत नेता हैं राज्य में जिनमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ आदि प्रमुख हैं. पर सांसद दीया कुमारी की बात अलग हैं. महारानी गायित्रि देवी की विरासत भी उनके पास है. बीजेपी उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर राजपूतों में संदेश दे सकती है.हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों में राजपूत वोटों को लुभाने के लिए बीजेपी प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार के लिए दीया कुमारी को उतारकर पार्टी ने यह संदेश पहले ही दे दिया था कि राजस्थान के राजपूतों के लिए उनका इस्तेमाल किया जाएगा. राजस्थान के बीजेपी नेताओं में वह इकलौती महिला नेता हैं, जिन्हें हिमाचल प्रदेश के चुनाव प्रचार में उतारा गया था.
-जातियों की नाराजगी नहीं होगी
महारानी को सीएम बनाने से आम तौर पर दूसरी जातियों जैसे जाट और गुर्जर जातियों में कोई नाराजगी नहीं होने वाली है. क्योंकि जयपुर की महारानी को आम जनता जातियों से परे मानती है. राजपूत भले उन्हें अपने जाति का समझकर प्राइड फील करते हैं पर अन्य जातियों के लिए भी रानी स्वाभिमान की ही प्रतीक हैं.जाति के नाम पर गुटबंदी और असंतोष फिलहाल रानी के नाम पर होने की उम्मीद कम है.
दीया कुमारी (माइनस पॉइन्ट्स)
-अनुभवहीन नेता
दीया कुमारी के पास इतने बड़े स्टेट को चलाने के लिए जो अनुभव होना चाहिए वो नहीं है. किसी राजघराने के लोगों से जनता अपने को उतना कनेक्ट भी नहीं कर पाती है. मुख्यमंत्री का पद ऐसा होता है जिसमें सरकार-पार्टी और केंद्रीय नेतृत्व सबको साधकर चलना होता है. केंद्रीय नेतृत्व के कृपा के भरोसे कुछ दिन सत्ता तो चलाई जा सकती है.
-गुटबंदी संभालना मुश्किल हो जाएगा
राजस्थान इकाई में पार्टी भयंकर गुटबाजी से त्रस्त रही है. यही कारण रहा है कि बीजेपी यहां कमजोर हो गई थी. 2018 का चुनाव में हार का कारण भी यही था. पार्टी के अंदर दुरभिसंधियों को समझ पाना और उन्हें खत्म करना फिलहाल दीया कुमारी के अनुभवों को देखते हुए उनके वश का नहीं लगता है.