
हरियाणा और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनावों की तारीख घोषित हो चुकी है. केंद्र सरकार ने जिस तरह आनन फानन में UPS (यूनिफाइड पेंशन स्कीम) लागू किया है उससे साफ जाहिर है कि उसके निशाने पर आगामी विधानसभा चुनाव हैं. भारतीय जनता पार्टी किसी भी कीमत पर एक और हार को बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है. पिछले दिने कम से कम 4 मामलों में पार्टी का यू टर्न यही कहता है कि बीजेपी अब कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहती है. यही कारण है कि देश के अर्थशास्त्रियों द्वारा ओपीएस को बोझ बताए जाने के बाद भी सरकार इसे लागू करने जा रही है. जबकि कांग्रेस ने खुद लोकसभा चुनावों में ओल्ड पेंशन स्कीम मुद्दे से किनारा कर लिया था.कांग्रेस ने हिमाचल और कर्नाटक में ओपीएस वापस लाने के मुद्दे पर चुनाव तो जीत लिया था पर अभी तक लागू नहीं कर पाई थी. शायद यही कारण है कि कांग्रेस ने इम मुद्दे से तौबा कर लिया. सरकार चाहती तो ओपीएस को लेकर शांत रह सकती थी, पर किसी भी सूरत में चुनाव जीतने की धुन में सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है जिसका फायदा उठाना उतना भी आसान हीं है जितना सरकार समझ रही है.
OPS (ओल्ड पेंशन स्कीम) को लेकर कांग्रेस हथियार डाल चुकी थी
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम से तौबा कर लिया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि पार्टी ने लोकसभा चुनावों के मेनिफेस्टो में इसका जिक्र तक नहीं किया. इसके साथ ही राहुल गांधी के भाषणों में भी कभी ओपीएस की बात नहीं की गई. यही नहीं कांग्रेस ने हिमाचल और कर्नाटक विधानसभा चुनावों में ओल्ड पेंशन स्कीम का वादा करके सत्ता में आई थी. पर अभी तक राज्यों की वित्तीय हालतों को देखते हुए इन सरकारों ने ओपीएस लागू करने में सफल नहीं हुए.शायद यही कारण रहा है कि कांग्रेस फिलहाल कुछ दिनों से इस मामले पर जोर नहीं डाल रही थी.
भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि, 'मैं राहुल गांधी से पूछना चाहता हूं - क्या उनकी सरकार ने वादे के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना लागू की है? कांग्रेस पार्टी पेंशन के बारे में अपने आश्वासन के स्पष्ट झूठ से इतनी सावधान हो गई है कि वह इसे लोकसभा चुनाव में अपने घोषणापत्र के हिस्से के रूप में शामिल करने का साहस नहीं जुटा सकी. पिछले दो वर्षों में हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों के दौरान, कांग्रेस ने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की वापसी का वादा किया था, लेकिन इसे अपने लोकसभा घोषणापत्र में शामिल नहीं किया.
फिर भी श्रेय लेने का हक बनेगा कांग्रेस का
फिर भी कांग्रेस ओपीएस की जगह यूपीएस लागू करवाने का श्रेय ले सकती है. क्योंकि कांग्रेस लगातार विधानसभा चुनावों में इसे मुद्दा बनाती रही है. मध्यप्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने ओपीएस का वादा किया था. इसके पहले हिमाचल और कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में का्ंग्रेस ने ओपीएस का वादा किया था. जाहिर है कि कांग्रेस हक के साथ कह सकती है कि उसके दबाव बनाने के चलते सरकार ने यह फैसला लिया है.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भले ही अपने मेनिफेस्टो में ओपीएस का वादा नहीं किया था पर बड़े नेताओं को छोड़ दिया जाए तो पूरी कांग्रेस ओपीएस के नाम पर वोट मांग रही थी. दूसरी बात यह भी है कि कांग्रेस की सहयोगी पार्टियों जैसे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी , बिहार में आरजेडी आदि खुलकर ओपीएस का समर्थन कर रही थीं. इसलिए कांग्रेस और विपक्ष आगामी चुनावों में जोर शोर से कहेंगे कि अभी तो विपक्ष को थोड़ा सा समर्थन मिला है तो सरकार इतनी झुक गई है.
रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने केंद्र पर कटाक्ष करते हुए कहा, यूपीएस में 'यू' का मतलब मोदी सरकार का यू टर्न है! 4 जून के बाद, जनता की शक्ति प्रधानमंत्री की शक्ति के अहंकार पर हावी हो गई है. लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन/इंडेक्सेशन के संबंध में बजट में रोलबैक, वक्फ बिल जेपीसी को भेजा जा रहा है, प्रसारण विधेयक को वापस लेना, लेटरल एंट्री का रोलबैक. हम जवाबदेही सुनिश्चित करते रहेंगे और 140 करोड़ भारतीयों को इस निरंकुश सरकार से बचाएंगे.
हरियाणा में कांग्रेस बहुत पहले से ही ओल्ड पेंशन स्कीम लाने की बात करती रही है.बीजेपी जनता के बीच जाकर यूपीएस का श्रेय लेने की कोशिश करेगी पर जनता को समझाना उसके लिए मुश्किल होगा. हां इतना जरूर होगा जो बीजेपी के वोटर ओपीएस चाहते थे वे इस मुद्दे के चलते अब दूसरी पार्टी की ओर रुख नहीं करेंगे.
सरकार को उम्मीद है कि वह कम से कम विपक्ष के एक मुद्दे को खत्म कर देगी
इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकार ने यूपीएस लागू करके कम से कम विपक्ष के एक मुद्दे को कम कर दिया है. इस कदम से केंद्र सरकार के 23 लाख कर्मचारियों पर असर पड़ेगा. इसके साथ ही हर राज्य में राज्य कर्माचारियों का एक बड़ा तबका रहता है. उनका भी पार्टी को सपोर्ट मिलेगा क्योंकि उन्हें भी उम्मीद होगी कि आने वाले दिनों में राज्य सरकारें भी यूपीएस लागू करेंगी. दरअसल सरकारी कर्मचारी वोट देने के लिहाज से संख्या बल में भले ही कम दिखते हैं पर उनकी भूमिका निर्णायक होती है. जनता से सीधा संपर्क में ये कर्मचारी ही होते हैं. अगर सरकारी कर्मचारी नाराज हैं तो वो जनमत सरकार के खिलाफ बनाते हैं. यही नहीं मतदान के दौरान सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी सत्तरूढ़ सरकारों को बहुत भारी पड़ती है. बूथ पर उपस्थित सरकारी कर्मचारी अगर सरकार से नाराज है तो वो कई तरह से नुकसान पहुंचाता है. यही कारण है कि सभी सरकारें कर्मचारियों को खुश रखती हैं. उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी भी बीजेपी को मिली शिकस्त का एक कारण माना गया था.
सरकारी कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनियनों से मुलाकात करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनकी सरकार का कदम सरकारी कर्मचारियों के लिए सुरक्षित भविष्य के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. हमें उन सभी सरकारी कर्मचारियों की कड़ी मेहनत पर गर्व है जो राष्ट्रीय प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. एकीकृत पेंशन योजना सरकारी कर्मचारियों के लिए सम्मान और वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करती है, जो उनकी भलाई और सुरक्षित भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता के अनुरूप है.