
केंद्र सरकार ने सीएए लागू करने का नोटिफिकेशन जारी कर 2024 के लोकसभा चुनावों का सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया है. बीजेपी की रणनीति है कि सीएए का विरोध करने वाले दलों को यह साबित किया जाएगा कि वे हिंदुओं का हित नहीं चाहते हैं. यही कारण है कि विपक्ष इस मुद्दे पर उसी तरह फूंक फूंक कर बयान दे रहा है जिस तरह राम मंदिर के उद्घाटन पर बचते हुए बयान दिए जा रहे थे. पर राम मंदिर उद्घाटन का जिस तरह मजबूती से विरोध टीएमसी अध्यक्ष और पश्चि्म बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया था उसी तरह उन्होंने सीएए के विरोध का भी बीड़ा उठाया हुआ है. असुद्दीन ओवैसी भी इस मुद्दे पर खुलकर केंद्र सरकार का विरोध कर रहे हैं. ओवैसी और ममता बनर्जी का विरोध तो समझ में आता है क्योंकि उनको वोट देने वालों का एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो सीएए पर सरकार से नाराज है. पर दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के सर्वे सर्वा अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह सीएए का विरोध कर रहे हैं वो उनसे किसी को उम्मीद नहीं था. आइये देखते हैं कि आखिर वो कौन से कारण हैं जिसके चलते अरविंद केजरीवाल सीएए का इतना तीखा विरोध करने पर उतर आए हैं.
1-कभी शाहीन बाग नहीं गए थे केजरीवाल, आज कांग्रेस से अधिक हैं मुखर
अरविंद केजरीवाल हमेशा से अपने अलग स्टैंड को लेकर जाने जाते रहे हैं. संसद में उनकी पार्टी ने 370 हटाए जाने का समर्थन किया था. राम मंदिर के मामले में भी उन्होंने कहा था वो उद्घाटन के बाद जब भीड़ कम होगी अपने परिवार के साथ राम लला के दर्शन करने जाएंगे. विपक्ष के कई नेता केजरीवाल की इन चालों पर हैरान होते रहे हैं. सीएए पर जब पहली बार हो हल्ला मचा अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने इसका विरोध किया था हालांकि खुल कर नहीं. तब कांग्रेस सीएए के विरोध में सबसे अधिक मुखर थी पर आज अरविंद केजरीवाल सीएए का सबसे ज्यादा विरोध कर रही है.
याद करिए 2019 में शाहीनबाग में मुस्लिम महिलाएं धरने पर बैठ गईं और कोविड शुरू होने तक बैठीं रहीं. लेफ्ट से लेकर कांग्रेस के कई नेता आंदोलनकारी महिलाओं को वहां नैतिक समर्थन देने पहुंचे. नहीं गए तो केवल अरविंद केजरीवाल. उनकी टीम भी इस आंदोलन से दूर रही. जेएनयू में हंगामा हुआ, जामिया में बवाल हुआ. सोशल मीडिया पर लोग अरविंद केजरीवाल से दोनों जगहों पर जाने की अपील करते रहे पर अरविंद केजरीवाल पर कोई असर नहीं हुआ. पर आज के अरविंद केजरीवाल सीएए मुद्दे पर विपक्ष के नेताओं में सबसे अधिक मुखर दिख रहे हैं. उन्होंने सीएए के विरोध में एक विडियो भी जारी किया है. ममता बनर्जी और ओवैसी को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस नेताओं के मुकाबले में तो वो सीएए विरोध में बाजी मार ले गए हैं.
2-क्या पंजाब और दिल्ली में सिखों की नाराजगी का नहीं है डर?
सीएए का सबसे अधिक नुकसान और फायदा विशेषकर बंगलादेश से आए हिंदू और अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए हिंदुओं और सिखों को ही होने वाला है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान से अभी भी बहुत से सिख भारत आने के इच्छुक हैं. केजरीवाल सीएए के विरोध में हिंदू-मुस्लिम एंगल नहीं रख रहे हैं. वे सीधे कह रहे हैं पाकिस्तान-बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले करोड़ों गरीबों को नौकरी और आवास कहां से दिया जा सकेगा. वो हमारे संसाधनों में ही हिस्सेदारी करेंगे.हालांकि केजरीवाल कानून को गलत तरीके से इंटरप्रेट कर रहे हैं.पर उस पर चर्चा बाद में .
वैसे CAA के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जाएगी. इन तीन देशों के लोग ही नागरिकता के लिए आवेदन करने के योग्य होंगे. आंकड़ों के मुताबिक, 2014 तक पाकिस्तान-अफगानिस्तान से 32 हजार लोग भारत आए हैं. इनमें से अधिकतर लोग पंजाब और दिल्ली में ही हैं.राजस्थान में भी कुछ शरणार्थी रह रहे हैं. इसके साथ ही दिल्ली और पंजाब में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके रिश्तेदार और संबंधी भारत आने चाहते हैं. स्वभाविक है कि इनके लिए हिंदुस्तान के हिंदुओं और सिखों में संवेदनाएं होंगी. आखिर केजरीवाल उन्हें क्यों नाराज करना चाहते हैं. जहां तक मुस्लिम वोटों का सवाल है शाहीन बाग न जाकर भी केजरीवाल दिल्ली विधानसभा का चुनाव भारी बहुमत से जीत गए थे. मतलब साफ है मुस्लिम वोट शाहीन बाग न जाकर भी उन्होंने हासिल कर लिए थे. जबिक पंजाब में मुस्लिम वोटों से ज्यादा सिख वोट महत्वपूर्ण होते हैं.
3-क्या ममता की हां में हां मिलाकर कोई नया समीकरण बनाने की तैयारी है?
पिछले कुछ दिनों से ऐसा देखने को मिल रहा है कि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल एक दूसरे के साथ हर मोर्चे पर साथ खड़े नजर आते हैं. दोनों गाहे-बगाहे एक दूसरे का साथ भी देते रहते हैं. बेंगलुरु में हो रही विपक्ष की बैठक में शामिल होने से पहले आम आदमी पार्टी इस शर्त पर अड़ी थी कि कांग्रेस केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश का राज्यसभा में विरोध करे. लेकिन कांग्रेस इस शर्त पर हामी नहीं भर रही थी. पटना की बैठक में इस मुद्दे को लेकर AAP और कांग्रेस में टकराव भी देखने को मिला था.लेकिन ममता बनर्जी की मध्यस्थता के बाद कांग्रेस ने AAP की शर्त मानी और अब AAP भी इस बैठक में शामिल होगी.
इसी तरह जब मल्लिकार्जुन खरगे को इंडिया गठबंधन की ओर से पीएम फेस बनाने की बात पर ममता और केजरीवाल दोनों एक ही सुर में बोल रहे थे. इंडिया गठबंधन में यह माना जाने लगा है कि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल का किसी मुद्दे पर एक जैसा ही मत होगा. तो क्या समझा जाए कि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी चुनाव बाद किसी और गठबंधन का ख्वाब तो नहीं देख रहे हैं?
4-क्या कांग्रेस की जगह लेने की एक्सरसाइज है?
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि अरविंद केजरीवाल देश की राजनीति में तेजी से उभर रहे हैं. उनकी पार्टी जिस तरह देश कई राज्यों में उभर रही है उससे यही लगता है कि जल्द ही वह कांग्रेस की जगह ले लेगी. कांग्रेस के परंपरागत वोटों पर साल दर साल आम आदमी पार्टी का कब्जा होता जा रहा है. पहले दिल्ली उसके बाद पंजाब में कांग्रेस के सारे वोटों पर आम आदमी पार्टी कब्जा कर चुकी है. गुजरात और गोवा में भी कांग्रेस की जगह लेने को आम आदमी पार्टी बेकरार है. अगर सीएए पर अरविंद केजरीवाल अपने विरोध को अपने टार्गेट वोटर्स तक पहुंचाने में सफल रहते हैं तो वह अपने उद्देश्य में शायद सफल रहेंगे. केजरीवाल के पास मौका है बिखरती हुई कांग्रेस के वोट समेटने का.
5-हिंदू समर्थक बनती छवि से छुटकारा पाना है उद्देश्य?
भारतीय राजनीति में राजनीतिक दलों के विचार साल दर साल बदलते रहते हैं. समाजवादी विचारों वाली कांग्रेस ने 1991 के बाद के वर्षों में समाजवादी विचारों को तिलांजली दे दी थी. कभी तिलक -तराजू और तलवार को जूते मारने वाली बहुजन समाज पार्टी ब्राह्मणों को जोड़कर पूर्ण बहुमत के साथ यूपी में सरकार बनाती है.अनुच्छेद 370 पर बीजेपी सरकार को समर्थन, राम मंदिर पर नरम रुख और कट्टर राष्ट्रवादी छवि के लिए मशहूर हो चुकी आम आदमी पार्टी हो सकता है कि अब अपने रुख में बदलाव चाहती हो. हो सकता है कि भविष्य की योजनाओं में उसे बीजेपी समर्थक छवि भारी पड़ रही हो. इसलिए सीएए के बहाने वो अपनी खुद की बनाई हुई छवि से बाहर निकलना चाहती हो.