
कपिल मिश्रा दिल्ली के ऐसे फायरब्रांड नेता बन गये हैं, जो बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे वाली राजनीति में बड़े आराम से फिट हो गये हैं. जब वो आम आदमी पार्टी में हुआ करते थे, तो उनका तेवर एंटी-बीजेपी पॉलिटिक्स के हिसाब से चल रहा था.
बीजेपी में कपिल मिश्रा को भाव भी इसलिए ही मिलता है, क्योंकि जिस तरह वो पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हमलावर होते थे, आम आदमी पार्टी छोड़ने के बाद वो अरविंद केजरीवाल के खिलाफ उससे कहीं ज्यादा आक्रामक नजर आते हैं.
कपिल मिश्रा को जब बीजेपी ने उनके पुराने इलाके करावल नगर विधानसभा क्षेत्र से मौजूदा विधायक का टिकट काट कर उम्मीदवार बनाया तो बवाल शुरू हो गया - मौजूदा बीजेपी विधायक मोहन सिंह बिष्ट ने विरोध में तूफान मचा दिया था. अब वो मान गये हैं - डैमेज कंट्रोल करते हुए बीजेपी ने मोहन सिंह बिष्ट को अब मुस्तफाबाद से उम्मीवार बनाया है, जहां से असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2020 के दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन को टिकट दे रखा है.
कपिल मिश्रा को टिकट दिये जाने से नाराजगी
कपिल मिश्रा को करावल नगर से उम्मीदवार बताने वाली बीजेपी की लिस्ट आते ही, मोहन सिंह बिष्ट खुलेआम बगावत पर उतर आये, और इस बीजेपी की बड़ी गलती करार दिया. बिष्ट ने कपिल मिश्रा को भी ‘ऐरा गैरा…’ बताया और बीजेपी को खामियाजा भुगतने की चेतावनी दे डाली.
न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में मोहन सिंह बिष्ट का कहना था, भारतीय जनता पार्टी सोचती है… किसी को भी मैदान में उतारेंगे… और वो जीत जाएगा… ये बड़ी गलती है… केवल समय ही बताएगा… मैं किसी अन्य सीट से चुनाव नहीं लड़ूंगा… मैं 17 जनवरी से पहले करावल नगर सीट से अपना नामांकन दाखिल करूंगा.
मोहन सिंह बिष्ट ने एक और बातचीत में अपना इरादा साफ कर दिया, मैं दूसरी विधानसभा सीट से चुनाव नहीं लडूंगा… मेरे करावल नगर के लोगों से पारिवारिक रिश्ते हैं… और मैं यहां लोगों को नहीं छोड़ना चाहता… मैं दूसरी जगह चुनाव क्यों लड़ूं? जिस जगह पर पहले विकास कार्य नहीं होते थे, वहां मैंने विपरीत परिस्थितियों में काम करके दिखाया है.
बीजेपी विधायक ने दावा किया कि करावल नगर में घूमकर कोई भी देख सकता है, चारों तरफ विकास के काम हो रहे हैं. मोहन सिंह बिष्ट का ये कहना बीजेपी के उस दावे के भी खिलाफ था, जिसमें बीजेपी कहती है कि दिल्ली विकास का काम हुआ ही नहीं.
बाद में, बीजेपी नेताओं के मुताबिक, जेपी नड्डा के साथ मीटिंग के बाद मोहन सिंह बिष्ट शांत भी हो गये - और फिर आनन फानन में बीजेपी की तरफ से एक और लिस्ट जारी करते हुए उनको मुस्तफाबाद से उम्मीदवार घोषित किया गया है.
कपिल मिश्रा बनाम मोहन सिंह बिष्ट
कपिल मिश्रा और मोहन सिंह बिष्ट का दिल्ली चुनाव में दो बार आमना-सामना हो चुका है, और दोनो एक दूसरे को हरा भी चुके हैं.
2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कपिल मिश्रा आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार थे, और मोहन सिंह बिष्ट से हार गये थे. लेकिन, 2015 में कपिल मिश्रा ने मोहन सिंह बिष्ट को हरा दिया था. विधायक बनने के साथ ही वो दिल्ली सरकार में मंत्री भी बने थे.
2019 में आम आदमी पार्टी से निकाल दिये जाने के बाद कपिल मिश्रा को बीजेपी ने 2020 के चुनाव में मॉडल टाउन से टिकट दिया था, लेकिन आम आदमी पार्टी के अखिलेश पति त्रिपाठी से वो चुनाव हार गये थे.
कपिल मिश्रा की निष्ठा को देखते हुए बीजेपी ने उनकी पुरानी सीट करावल नगर भेज दिया है, जिसके पीछे बीजेपी नेता मीडिया से बातचीत में वोट समीकरण बता रहे हैं. और यही बात, मोहन सिंह बिष्ट को मुस्तफाबाद से उम्मीदवार बनाये जाने को लेकर भी समझाने की कोशिश हो रही है.
मुस्तफाबाद में कैसी होगी बिष्ट की लड़ाई
मीडिया से बातचीत में बीजेपी नेता पार्टी के इंटरनल सर्वे का हवाला देते हैं. दावा किया जा रहा है कि पूर्वांचल के लोगों में कपिल मिश्रा की पैठ को देखते हुए उनको करावल नगर से टिकट दिया गया है. और, मुस्तफाबाद में अच्छे खासे पहाड़ी लोगों की आबादी होने के चलते मोहन सिंह बिष्ट को मैदान में उतारा गया है, जिनके बीच वो खासे लोकप्रिय बताये जा रहे हैं.
मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र से असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2020 के नॉर्थ ईस्ट दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपियों में से एक ताहिर हुसैन को उम्मीदवार बनाया है. यदि ताहिर को मुस्लिम वोट मिलता है तो वो आप का ही नुकसान होगा.
लेकिन सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या पहाड़ी आबादी में लोकप्रियता की बात करके मोहन सिंह बिष्ट को बगावत के लिए सूली पर चढ़ा दिया गया है - और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ पूरे पांच साल अलख जगाये रखने के लिए कपिल मिश्रा को करावल नगर का टिकट इनाम के तौर पर दिया गया है.
क्या कपिल मिश्रा के दबाव में बीजेपी को ये फैसला लेना पड़ा है? मोहन सिंह बिष्ट उन हालात में जीते थे, जब अरविंद केजरीवाल ने करीब 2015 की तरह ही 2020 मेंं सत्ता में वापसी की थी, जबकि कपिल मिश्रा औंधे मुंह गिर पड़े थे - बीजेपी ने जो जोखिम उठाया है, लेने के देने भी तो पड़ सकते हैं.