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बीजेपी को ममता बनर्जी के जातिगत गणना कराने से दिक्कत क्यों है?

बीजेपी पहले ही साफ कर चुकी है कि जातीय जनगणना से उसे परहेज नहीं है, लेकिन पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सरकार के सर्वे को हिंदुत्व के लिए नुकसानदेह साबित करने के लिए नया तरीका खोज लिया है.

ममता बनर्जी ने वोटर लिस्ट को लेकर सवाल उठाया, तो बीजेपी ने सर्वे के नाम पर घेर लिया. ममता बनर्जी ने वोटर लिस्ट को लेकर सवाल उठाया, तो बीजेपी ने सर्वे के नाम पर घेर लिया.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 06 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 2:10 PM IST

जातीय राजनीति बीजेपी के लिए बहुत बड़ी चुनौती होती है, और काउंटर करने के लिए उसे अलग अलग तौर तरीके अपनाने पड़ते हैं. 

दिल्ली के बाद, बेशक विधानसभा चुनाव बिहार में होने वाले हैं, लेकिन बीजेपी अभी से पश्चिम बंगाल की रणनीति पर काम करने लगी है. पश्चिम बंगाल में चुनाव अगले साल यानी 2026 में होने हैं. तब केरल और तमिलनाडु में भी चुनाव होंगे, लेकिन बीजेपी 2014 से ही बंगाल जीतने की कोशिश कर रही है, और चूक जाती है. 

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ममता बनर्जी ने भी दिल्ली और महाराष्ट्र की ही तरह पश्चिम बंगाल में भी वोटर लिस्ट में गड़बड़ी किये जाने का मुद्दा उठाया है, और उसे काउंटर करने के लिए बंगाल बीजेपी नेता तृणमूल कांग्रेस सरकार पर जाति आधारित सर्वे के जरिये तुष्टिकरण की राजनीति जैसा आरोप लगा रहे हैं. 

अव्वल तो बीजेपी नेता अमित शाह कह चुके हैं कि बीजेपी को जातीय जनगणना से परहेज नहीं है, लेकिन उसके बारे में फैसला सही वक्त आने पर लिया जाएगा. और ये बात लोकसभा चुनाव से पहले की है - पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने सरकार के सर्वे को हिंदुत्व के लिए नुकसानदेह साबित करने के लिए अपना अलग ऐंगल खोज लिया है. 

बीजेपी को आपत्ति सर्वे से है या ममता बनर्जी से?

बिहार में हुई जातिगत गणना के बाद से कई राज्यों में कास्ट सर्वे हो चुका है. ताजातरीन मामला तेलंगाना का है, लेकिन बीजेपी की तरफ से वैसी सख्त प्रतिक्रिया कभी नहीं जताई गई, जैसा उसका स्टैंड पश्चिम बंगाल में देखने को मिल रहा है. 

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बिहार के कास्ट सर्वे को तो अब लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी फर्जी बता चुके हैं. पहले तो वो बिहार में जातिगत गणना कराने का क्रेडिट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से छीनकर खुद ले रहे थे, और थोड़ा हिस्सा आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के साथ भी शेयर कर रहे थे, लेकिन बाद में स्टैंड बदल गया. बिहार चुनाव के नजदीक आते आते कांग्रेस अब कास्ट सर्वे का श्रेय नीतीश कुमार ही नहीं, तेजस्वी यादव को भी लेने नहीं देना चाहती है - और ये सब बीजेपी के लिए मनोरंजन का साधन बन रहा है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के कास्ट सर्वे के बाद जातियों का बंटवारा अपने तरीके से पेश किया था. मोदी ने बताया था कि सिर्फ महिला, किसान, गरीब और युवा ही जातियां हैं. 

अब पश्चिम बंगाल बीजेपी के महासचिव जगन्नाथ चटर्जी कह रहे हैं, टीएमसी सरकार जाति आधारित सर्वे कराकर सांप्रदायिक भेदभाव बढ़ाना चाहती है… मकसद मुस्लिम ओबीसी को फायदा पहुंचाना है… इससे हिंदू OBC को नुकसान होगा. 

जगन्नाथ चटर्जी का दावा है कि सर्वे में पूछे गये सवाल सांप्रदायिक और गैरकानूनी हैं… ये सवाल हिंदू और मुस्लिमों के बीच विभाजन पैदा करेंगे.

बीजेपी नेता का कहना है, सर्वे में पूछा जा रहा है कि क्या आप अपने पड़ोसियों के साथ खाना साझा करते हैं? आज तक ऐसे सवाल हमने कभी नहीं देखे.

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समझा जाता है कि बीजेपी का ये हमला ममता बनर्जी के उस दावे को काउंटर करने की कोशिश है, जिसमें ममता बनर्जी ने आरोप लगाया था कि बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के हर जिले में फर्जी वोटर जोड़े हैं. ममता बनर्जी ने कहा था, चुनाव आयोग भी उनकी मदद कर रहा है… मैं बंगाल के लोगों से अपील करती हूं कि वे वोटर लिस्ट की जांच करें… किसी भी दिन एनआरसी और सीएए के नाम पर सही वोटर के नाम हटाये जा सकते हैं.

ममता बनर्जी के आरोप पर चुनाव आयोग का जवाब भी आ गया था. चुनाव आयोग का कहना था, पहले के मैनुअल सिस्टम में EPIC नंबर गलत तरीके से दिये गये थे, लेकिन अब ये प्रक्रिया ERONET यानी इलेक्टोरल रोल मैनेजमेंट सिस्टम पर शिफ्ट हो चुकी है, और ये गलती दोबारा नहीं होगी.

ऐसे सर्वे चुनावी रैलियों के अलावा कहां मायने रखते हैं?

राजनीतिक बयानबाजी और आरोप अपनी जगह है, लेकिन सच्चाई तो यही है कि कास्ट सेंसस राज्य सरकारें करा ही नहीं सकतीं, सर्वे की बात अलग है. और सर्वे से होना भी क्या है, ले देकर चुनावी जुमले ही तो गढ़े जा सकते हैं. 

बिहार में हुए कास्ट सर्वे के आंकड़ों पर भी तो सवाल उठाये ही गये थे. कहा जा रहा था जब प्रक्रिया ही ठीक नहीं, तो आंकड़े कहां से सही आएंगे. कांग्रेस ने तो कार्यकारिणी में प्रस्ताव भी पारित कर रखा है, और चुनावी रैलियों में राहुल गांधी वादा करते फिरते हैं कि सत्ता में आने पर जातिगत गणना कराई जाएगी. तेलंगाना में कांग्रेस ने वादा निभाया भी है - लेकिन, उसका हासिल क्या है? बिहार सरकार ने सर्वे के आंकड़ों के आधार पर विधानसभा में प्रस्ताव भी पेश किया था, और पास कर केंद्र के पास भेजा भी था. पहले तो हाई कोर्ट ने ही रोक लगा दी थी, और सरकार के पास वो किसी कोने में पड़ा होगा - हो सकता है, अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान फिर से बहस शुरू हो. 

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जो काम ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सर्वे के आंकड़े आने के बाद के लिए सोची होगी, बीजेपी अभी से शुरू हो चुकी है - पश्चिम बंगाल की जगह कोई और राज्य होता तो शायद ऐसा बवाल नहीं मचता.
 

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