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नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का नेता घोषित करने में बीजेपी को दिक्कत क्या है?

नीतीश कुमार को बिहार में होने वाले हर विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी से गठबंधन का नेता होने का सर्टिफिकेट लेना पड़ता है, और थोड़े ना-नुकुर के बाद मिल भी जाता है - लेकिन, आने वाले चुनाव को लेकर बीजेपी के मन में थोड़ा संकोच देखने को मिल रहा है.

नीतीश कुमार ने बीजेपी को भी वैसे ही घेर रखा है, जैसे बीजेपी जेडीयू नेता को घेरना चाहती है. नीतीश कुमार ने बीजेपी को भी वैसे ही घेर रखा है, जैसे बीजेपी जेडीयू नेता को घेरना चाहती है.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 04 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 1:58 PM IST

नीतीश कुमार को बिहार चुनाव के लिए एनडीए का आधा-नेता घोषित किया जा चुका है, आधा अब भी बाकी है - और उसी की लड़ाई जारी है. 

बिहार बीजेपी की तरफ से तो नीतीश कुमार को एनडीए का नेता करीब करीब घोषित कर दिया गया है, लेकिन केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने संसदीय बोर्ड से नीतीश कुमार के नाम के अप्रूवल का जो क्लॉज लगाया है, वो अभी रोड़ा बना रहेगा.

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असल में, नीतीश कुमार ने तो अमित शाह के बयान के बाद से ही पैंतरेबाजी शुरू कर दी थी, अब तो ये डिमांड उनके बेटे निशांत की तरफ से भी रख दी गई है कि नीतीश कुमार को बिहार चुनाव के लिए एनडीए का नेता घोषित किया जाये. 

निशांत कुमार राजनीति में आएंगे भी या नहीं, ये तो अभी पक्का भी नहीं है, लेकिन पिता को एनडीए का नेता बनाये जाने की मांग तो जोरशोर से करने लगे हैं - निशांत कुमार के बयान से साफ है कि बीजेपी को वो एक गठबंधन पार्टनर से ज्यादा तवज्जो नहीं देना चाहते, वो भी छोटे भाई वाले रोल में ही. 

जैसे अमित शाह के संसदीय बोर्ड वाली बात के बाद बिहार बीजेपी एक्टिव थी, वैसे ही दिलीप जायसवाल के बयान के बाद भी डैमेज कंट्रोल की कोशिश की गई है. 

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अब तो सवाल यही बचा है कि आखिर भारतीय जनता पार्टी को बिहार में नीतीश कुमार को एनडीए का नेता घोषित करने में कौन सी मुश्किल आड़े आ रही है?

1. क्या बीजेपी के अंदर से कोई दिक्कत पेश आ रही है?

2022 में नीतीश कुमार के एनडीए छोड़कर महागठबंधन में चले जाने के बाद अमित शाह ने बिहार में रैली की थी और कहा था, 2025 में बीजेपी का अपना मुख्यमंत्री होगा. अमित शाह ने कहा था, लेकिन ये काम 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आ जाने के बाद होगा. 

लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले ही नीतीश कुमार ने फिर पाला बदला और लौटकर एनडीए में चले आये. ऊपर से बीजेपी अपने दम पर बहुमत नहीं हासिल कर सकी, इसलिए केंद्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी को नीतीश कुमार का सपोर्ट लेना पड़ा. 

जाहिर है, बीजेपी नेताओं में अमित शाह के बयान के बाद उम्मीद जगी होगी, और वे भी मुख्यमंत्री बनने की तैयारी में लग गये होंगे - और सम्राट चौधरी को डिप्टी सीएम बनाने के बाद तो ऐसी बातें भी होने लगीं कि उनको नीतीश कुमार के समानांतर खड़ा किया जा रहा है. 

जब बिहार बीजेपी के नेताओं के बीच से ही किसी को लाकर नेता बनाने की कोशिश होगी, तो जाहिर है अपनी योग्यता से बेपरवाह मुख्यमंत्री पद के दावेदार नेता भी होड़ में शामिल होंगे. महाराष्ट्र में बीजेपी के स्टैंड को देखते हुए भी नीतीश कुमार के चुनाव बाद भी मुख्यमंत्री बने रहने पर अभी से शक होने लगा है.

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2. क्या नीतीश कुमार को लेकर एनडीए में टकराव शुरू हो गया है? 

ऊपर से तो ऐसा कुछ नहीं लग रहा है कि नीतीश कुमार को लेकर एनडीए में फिलहाल किसी तरह का विरोध हो, लेकिन अंदर अगर कोई खिचड़ी पक रही हो तो बात अलग है. देखा जाये तो चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा सभी नीतीश कुमार के कट्टर विरोधी रहे हैं. जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा तो विरोध करने के बाद नीतीश कुमार की शरण में भी लौट चुके हैं. 

चिराग पासवान का भी कोई बयान ऐसा नहीं है. बल्कि, वो तो नीतीश कुमार को एनडीए का नेता बनाये जाने के पक्षधर ही लगते हैं. हां, पहले ऐसा नहीं था. नीतीश कुमार से मिलने पर चिराग पासवान सम्मान तो पूरा देते थे, लेकिन हमले का कोई मौका भी नहीं छोड़ते थे - और 2020 का बिहार चुनाव तो नीतीश कुमार ताउम्र नहीं भूलेंगे, जब भी चिराग पासवान का जिक्र आएगा. 

3. क्या बीजेपी नेतृत्व के मन में किसी बात को लेकर संदेह है?

नीतीश कुमार ऐसे घुटे हुए राजनीतिज्ञ हैं कि कब कौन दांव चल दें, और कब किस चाल से बाजी पलट दें, कोई नहीं जानता. सिर्फ पाला बदलने की ही बात नहीं, बिहार की राजनीति में ऐसी कई चालें नीतीश कुमार के नाम दर्ज हैं, जिसकी शिकार बीजेपी भी हुई है, और लालू यादव भी. 

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बीजेपी नेतृत्व पहले से ही केंद्र सरकार को मिले सपोर्ट के लिए नीतीश कुमार के एहसान तले दबा हुआ है, अगर अभी से नीतीश कुमार को एनडीए का नेता भी घोषित कर दिया जाये तो भला उनको कोई कंट्रोल कर पाएगा. 

हो सकता है, बीजेपी नेतृत्व को लगता हो कि अगर अभी से नीतीश कुमार को बिहार एनडीए का नेता घोषित कर दिया गया तो वो कदम कदम पर मनमानी करने लगेंगे - और सीटों पर सहमति बनाना मुश्किल हो जाएगा.

4. कहीं नीतीश कुमार की लोकप्रियता को लेकर कोई शक तो नहीं है?

लंबे कार्यकाल के बाद किसी भी मुख्यमंत्री की लोकप्रियता पहले जैसी नहीं रह पाती. परिस्थितियां और कारण अलग हो सकते हैं, लेकिन लोग एक चेहरे से ऊब ही जाते हैं. 

पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और ऐसे कई राज्यों में देखा जा चुका है. नीतीश कुमार भी वही बात लागू होती है - और ये चीज पिछले चुनाव से ही महसूस की जा रही है. 

2020 कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के आंतरिक सर्वे में नीतीश कुमार का प्रभाव कम लग रहा था, और तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मोर्चा संभालना पड़ा था - क्या इस बार भी ऐसा ही कुछ लग रहा है?

5. बीजेपी को नीतीश के प्रति नाराजगी का शिकार होने का डर तो नहीं?

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किसी को भी शायद ही कोश शक हो कि नीतीश कुमार के खिलाफ बिहार में जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर है, और ये 2020 में भी महसूस किया गया था - लेकिन बीजेपी और मोदी की मदद से नीतीश कुमार ने सब मैनेज कर लिया. आखिरी रैली में बोले भी थे, अंत भला तो सब भला. 

जाहिर है, बीजेपी को भी लग रहा होगा कि कहीं ऐसा न हो नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की कीमत उसे भी न चुकानी पड़े - थोड़े-थोड़े समय के लिए छोड़ दें तो शुरू से अब तक बीजेपी नीतीश कुमार के साथ सत्ता में साझीदार तो रही ही है.

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