
महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आए 11 दिन हो चुके हैं. महाराष्ट्र की जनता ने महायुति को तीन चौथाई से भी अधिक बहुमत दिया पर अभी भी नहीं पता है कि प्रदेश का सीएम कौन बनेगा. यह बात तो तय हो चुकी है कि मुख्यमंत्री भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से ही होगा. पर न तो भाजपा ने सरकार बनाने का दावा किया है और न ही राज्यपाल ने आमंत्रित किया है. हालांकि माना जा रहा है कि भाजपा देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर चुकी है. अभी तक के घटनाक्रम से ऐसा लग रहा है कि महाराष्ट्र में महायुति सरकार के गठन में कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ही बाधा बन रहे हैं. शिंदे को लेकर शुरू हुई यह बहस निराधार भी नहीं है. गृहमंत्री अमित शाह के आवास पर तीन घंटे तक चली मैराथन बैठक के बाद तीनों ही नेता उसी रात मुंबई लौट आए थे. उसके बाद से शिंदे सबको टहला रहे हैं. कभी कहते हैं कि बीमार हैं, फिर अचानक प्रकट होते हैं अमित शाह और नरेंद्र मोदी में आस्था जताते हैं. बीजेपी के सीएम बनने की बातें करते हैं. फिर बयान आ जाता है कि जनता उन्हें सीएम के रूप में देखना चाहती है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि एकनाथ शिंदे ये सब मोलभाव के लिए कर रहे हैं. उन्हें गृहमंत्रालय चाहिए, मलाईदार विभाग चाहिए और भी बहुत कुछ चाहिए. पर समझ में ये नहीं आ रहा है कि बीजेपी उनको इतना भाव क्यों दे रही है? बीजेपी के पास सरकार बनाने के लिए करीब-करीब बहुमत है. फिर अगर गठबंधन में इतना कमजोर दिखेगी तो कल अजित पवार भी सर उठाएंगे. इन सब बातों को देखते हुए सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी इतनी कमजोर क्यों दिख रही है?
1-क्या फडणवीस के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है?
मुख्यमंत्री के नाम की अब तक घोषणा न होने के चलते सबसे पहला संदेह इस बात पर जाता है कि क्या अभी देवेंद्र फडणवीस के नाम पर अभी मुहर नहीं लग सका है? दरअसल बीजेपी का पिछले कुछ सालों में ऐसा इतिहास रहा है कि जिस नाम की सबसे चर्चा रहती है अंतिम मुहर उस पर कभी नहीं लगा. हालांकि महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की स्थित बिल्कुल अलग है. पार्टी महाराष्ट्र जैसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्य में किसी नए या कमजोर नेता को नियुक्त करने का जोखिम नहीं उठा सकती है.फडणवीस के पक्ष में उनकी पिछली उपलब्धियां और अनुभव भी है. लेकिन उनकी जाति ब्राह्मण होने के चलते पार्टी में एक वर्ग चिंतित है. क्योंकि महाराष्ट्र में मराठा समुदाय का प्रभाव है.अगर फडणवीस सीएम बनते हैं तो बीजेपी मराठा नेताओं शिंदे और अजीत पवार को डिप्टी सीएम बनाकर ओबीसी समुदाय को संतुष्ट करने की योजना बना सकती है. पर ये दोनों सीधे बीजेपी के नेता नहीं हैं. इसलिए विरोधी पार्टी ये आरोप लगाएगी ही कि बीजेपी बनियों और ब्राह्मणों की पार्टी है.क्योंकि महाराष्ट्र का सीएम ब्राह्मण बनते ही बीजेपी शासित राज्यों में सबसे अधिक ब्राह्मण सीएम हो जाएंगे.
2-बीएमसी का चुनाव जीतना अहम
पिछले वित्त वर्ष में 52,000 करोड़ से ज्यादा के बजट वाली एशिया की सबसे अमीर नगर नगर निकाय बीएमसी देश के कई राज्यों से अधिक धनवान है. यहां पिछले 3 सालों से चुनाव नहीं हो सके हैं. इसलिए शिवसेना के पास एकनाथ शिंदे को ही सीएम बनाए रखने के लिए एक बड़ा तर्क यह भी होता है कि कम से कम बीएमसी चुनाव उनके नेतृत्व में ही हो जाने दें. बीएमसी पर पिछले 3 दशक से शिवसेना यूबीटी का कब्जा है. जाहिर है कि शिवसेना यूबीटी को बीएमसी चुनावों में मात तभी मिल सकती है जब महायुति की लीडरशिप एकनाथ शिंदे के हाथ में हो.
मुंबई में विधानसभा की कुल 36 सीटें हैं. इनमें से 22 सीटें महायुति को मिली हैं और 14 सीटें एमवीए के खाते में गई हैं. महायुति की 22 सीटों में बीजेपी की 15 सीटें (11 उपनगरीय और 4 आइलैंड सिटी) हैं. वहीं शिवसेना के खाते में गई सभी 6 सीटें उपनगरीय इलाकों की ही हैं. एनसीपी ने भी जो 1 सीट जीती है, वह उपनगरीय क्षेत्र की है. एमवीए में सबसे ज्यादा 10 सीटें शिवसेना(यूबीटी) को मिली हैं. वह उपनगरीय क्षेत्र में 6 और 4 आइलैंड सिटी में जीती है. कांग्रेस को मिली 3 सीटों में 1 उपनगरीय और 2 आइलैंड सिटी की हैं. साफ दिखाई दे रहा है कि बीएमसी को अगर जीतना है तो एकनाथ शिंदे जरूरी हो जाते हैं.
3-मराठा राजनीति
आरक्षण आंदोलन के चलते महाराष्ट्र में मराठे बीजेपी से नाराज चल रहे थे. इस बीच मराठा आरक्षण को लेकर ओबीसी बनाम मराठा संघर्ष भी देखने को मिला. हालांकि यह संघर्ष सड़कों पर नहीं दिखा पर ओबीसी को लगता है कि मराठों को आरक्षण मिलने से उनके कोटे पर असर पड़ेगा. राज्य में मराठा बनाम ओबीसी आरक्षण की लड़ाई चल रही थी, तब एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने कमान संभाली. चूंकि, महायुति में शिंदे खुद बड़े मराठा चेहरा हैं. उन्होंने विवाद को खत्म करने के लिए प्रयास किए और नतीजे में देखा गया कि मराठा समुदाय ने जमकर महायुति के समर्थन में वोटिंग की. यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी एकनाथ शिंदे को एकदम से किनारे कर देना नहीं चाहती है.महाराष्ट्र की राजनीति मराठा समुदाय के ईर्द-गिर्द ही घूमती है. राज्य में अब तक 18 मुख्यमंत्रियों में से 10 मराठा रहे हैं. इनमें एकनाथ शिंदे का नाम भी शामिल है. राज्य में कुल 288 विधानसभा और 48 लोकसभा सीटें हैं. मराठा समुदाय करीब 150 से ज्यादा विधानसभा सीटों और 25 लोकसभा सीटों पर मजबूत पकड़ रखता है. जाहिर है कि आसान नहीं है एकनाथ शिंदे की मांगों को अस्वीकार करके बीजेपी आगे बढ़ जाए.
4-अजित पवार की बार्गेनिंग से बचना चाहती है बीजेपी
बीजेपी के सामने दिक्कत यह है कि अगर एकनाथ शिंदे नाराज हो कर महायुति से अलग होते हैं तो अजित पवार की ब्लेकमेलिंग शुरू हो सकती है. क्योंकि शिंदे सेना के अलग होते ही अजित पवार बीजेपी के लिए आवश्यक हो जाएंगे. शिंदे के साथ में रहते हुए अजित पवार मोल भाव करने की हैसियत में नहीं है. शिंदे का मोलभाव बीजेपी बर्दाश्त कर सकती है पर अजित पवार के पास किंग मेकर बनने की हैसियत होते ही बीजेपी बड़े फैसले लेने में कमजोर हो जाएगी. दूसरे अजित पवार का इतिहास से भी बीजेपी डरती है. अजित पवार को लेकर हमेशा संशय की स्थिति रही है बीजेपी में. हालाांकि अभी अजित पवार ने बीजेपी के सीएम के लिए खुलकर सपोर्ट दिया है.