Advertisement

मध्य प्रदेश में कांग्रेस क्यों नहीं दिखा सकी यूपी-राजस्थान और महाराष्ट्र वाला करिश्‍मा

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की पराजय यह जाहिर करती है कि पार्टी ने वहां मेहनत नहीं की. क्योंकि इस राज्य में पार्टी की स्थिति कम से कम यूपी वाली तो नहीं ही थी. और जब पार्टी यूपी में सीटें हासिल कर रही है तो एमपी में तो निश्चित ही कर सकती थी. आइये देखते हैं कि ऐसा क्‍यों हुआ?

मध्य प्रदेश में बीजेपी चुनावों के दौरान एकजुट नजर आई मध्य प्रदेश में बीजेपी चुनावों के दौरान एकजुट नजर आई
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 07 जून 2024,
  • अपडेटेड 8:25 PM IST

इस बार के लोकसभा चुनावों में जिस तरह देश की सबसे पुरानी पार्टी को उत्तर प्रदेश में पुनर्जीवन मिला है वो साफ-साफ दिख रहा है. राजस्थान और महाराष्ट्र में भी कांग्रेस ने अपना करिश्‍मा दिखाया है. इसके बावजूद इन तीनों राज्यों के बीच में बसे हुए मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जो दुर्गति हुई है वो अपने आप में आश्चर्यजनक ही है. मध्यप्रदेश उन राज्यों में है जहां आज भी कांग्रेस की जड़ें बहुत मजबूत हैं. अभी विधानसभा चुनावों के दौरान सभी सर्वेक्षणों में कांग्रेस की वापसी नजर आ रही थी. ये बात अलग है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी. पर यहां कम से कम उत्तर प्रदेश वाली स्थिति तो नहीं ही थी जहां पार्टी के लिए अच्छे कैंडिडेट तक खोजना मुश्किल था. कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की राजनीति में कभी 29 में से एक भी सीट न पाई हो ऐसा कभी इतिहास में नहीं हुआ था.  ऐसा क्यों और कैसे हो गया आइये देखते हैं...

Advertisement

कांग्रेस में पार्टी छोड़ने के लिए मची भगदड़ से संकेत गलत चला गया 

चुनाव शुरू होने के पहले हर रोज खबर आने लगी कि कांग्रेस का एक और नेता बीजेपी में गया. जबकि विधानसभा चुनावों के दौरान ठीक इसके उलट स्थिति थी. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के पहले तक हर रोज बीजेपी के विधायक पार्टी छोड़कर कांग्रेस की ओर जा रहे थे. इसके चलते पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गया. आम जनता में भी ये ही छवि बन गई बीजेपी को ही जीतना है तो कांग्रेस को क्यों वोट देना है. कमलनाथ जैसे पुराने नेता की जगह पर जीतु पटवारी जैसे कम अनुभव वाले नेता को चुनाव के 4 महीने पहले मध्य प्रदेश जैसे राज्य की जिम्मेदारी सौंपना भी उलटा पड़ गया. अभी जीतू पटवारी अपने पैर जमाने की कोशिश ही कर रहे थे कि ऐसी अफवाहें उड़नी शुरू हुईं कि कमलनाथ बीजेपी में जा रहे हैं. किसी तरह कमलनाथ को बीजेपी में जाने से पार्टी ने रोक तो लिया पर आम जनता में जो संदेश एक बार चला जाता है फिर उसे काटना इतना आसान नहीं होता है. इसके बाद ऐसा लगता है कि कमलनाथ से कांग्रेस हाईकमान भी कुछ नाराज हो गया. कमलनाथ को छिंदवाड़ा का किला बचाने की जुगत अकेले ही करनी पड़ रही थी. क्योंकि राहुल गांधी या प्रियंका गांधी कोई भी छिंदवाड़ा में रैली या सभा करने नहीं आया. जबकि कई दशकों से छिंदवाड़ा ऐसी सीट रही हैं जो कितनी भी बुरी स्थिति कांग्रेस की हो यहां से पार्टी जीतती ही रही है.

Advertisement

बीजेपी का माइक्रो मैनेजमेंट

बीजेपी का बूथ लेवल का मैनेजमेंट मध्य प्रदेश से पूरे देश में लोकप्रिय हुआ है. नरेंद्र मोदी के काल में यह बूथ लेवल मैनेजमेंट और मजबूत हुआ है. विशेषकर मध्य प्रदेश में यह जिस तरह काम करता है वह उल्लेंखनीय है.यही कारण है कि 29 सीटों में से करीब 25 सीटों पर पार्टी ने एक लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की. गृह मंत्री अमित शाह ने ऐन वोटिंग से 55 घंटे पहले बूथ वर्कर्स के साथ मीटिंग की और कार्यकर्ताओं को टिप्स देकर उनका उत्साह बढ़ाया.बीजेपी ने अर्ध पन्ना प्रमुखों की नियुक्ति की थी जिनकी जिम्मेदारी वोटर लिस्ट में शामिल आधे लोगों को बीजेपी को वोट दिलवाने की थी.इसके अलावा पार्टी ने त्रिदेव की नियु्क्ति की थी इसमें बूथ लेवल एजेंट, बूथ इंचार्ज इसमें बूथ अध्यक्ष शामिल थे.इसके ठीक उलट कांग्रेस के पास इस तरह की कोई योजना नहीं थी. अधिकतर जगहों पर अपने स्थानीय नेता के साथ ग्रासरूट लेवल के कार्यकर्ता भी पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए थे. पार्टी को इतना मौका ही नहीं मिला होगा कि पुराने लोगों की जगह नए लोगों की नियुक्ति की जा सके.

बीजेपी में छोटे बड़े सभी नेता अपनी जान लगाकर लड़ रहे थे 

भारतीय जनता पार्टी में भी कम गुटबंदी नहीं है पर चुनाव के मौके पर सभी एक जुट नजर आ रहे थे. शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने पांचवी बार राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया . इसके बावजूद चौहान अपनी उपयोगिता साबित करने में लगे हुए थे. उन्होंने न केवल अपनी सीट पर बल्कि दूसरी सीटों के लिए भी खूब मेहनत की. उनको दिखाना था कि मध्य प्रदेश में अब भी सबसे बड़े नेता वहीं हैं.और वो सफल भी हुए. उन्होंने 8 लाख बीस हजार वोट से चुनाव जीतकर यह साबित भी कर दिया. इसी तरह नए नवेले मुख्यमंत्री बने मोहन यादव को भी अपनी उपस्थिति दर्ज करानी थी. उन्होंने पूरे राज्य में 56 रोड शो, 142 रैलियां करके करीब 156 विधानसभाओं को कवर करके रिकॉर्ड बना दिया. प्रदेश के तीसरे बड़े नेता कैलाश विजयवर्गीय ने भी अपना काम कर दिया .उन्हें छिंदवाड़ा की जिम्मेदारी अपनी स्टाइल में निपटा दिया. कमलनाथ के समर्थक विधायक, पूर्व विधायक और सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ताओं को बीजेपी में शामिल करा कर कांग्रेस के सबसे बड़े गढ़ को कमजोर कर दिया. यही नहीं इंदौर के कांग्रेस प्रत्याशी को नामांकन के दिन अंडरग्राउंड कराकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मॉरल ही डाउन करा दिया. बाद में इंदौर के कांग्रेस प्रत्याशी के साथ सेल्फी सोशल मीडिया पर देखने को मिली.
दूसरी ओर नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी लगातार मध्यप्रदेश में रैलियां और सभाएं कर रहे थे. 

Advertisement

बड़े नेताओं का चुनाव लड़ने से मना करना

मध्य प्रदेश में बड़े नेताओं का चुनाव लड़ने से मना करना भी मध्य प्रदेश कांग्रेस के लिए भारी पड़ गया.गोविंद सिह और अजय सिंह जैसे लोगों ने चुनाव लड़ने में अपनी असमर्थता जता दी. केवल पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिह ने चुनाव लड़ने की इच्छा जताई . उन्होंने काफी मेहनत भी की पर चुनाव जीतने में असफल रहे. क्योंकि राज्य में मतदाताओं के तक पहले ही यह संदेश चला गया था कि कांग्रेस नेता अनमने ढंग से चुनाव लड़ रहे हैं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement