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क्‍यों INDIA गठबंधन की अगुवाई में मल्लिकार्जुन खरगे से बेहतर साबित होंगे नीतीश कुमार, 5 वजह...

INDIA गठबंधन के नेतृत्व को लेकर दो नाम उभर कर सामने आये हैं. एक हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दूसरे हैं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे - दोनों विपक्षी खेमे के सीनियर, अनुभवी और एक्टिव नेता हैं, अगर दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो?

बीजेपी से बदला लेने की जो आग नीतीश कुमार के भीतर धधक रही है, मल्लिकार्जुन खरगे को अंदाजा भी नहीं होगा बीजेपी से बदला लेने की जो आग नीतीश कुमार के भीतर धधक रही है, मल्लिकार्जुन खरगे को अंदाजा भी नहीं होगा
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 05 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 8:47 PM IST

नीतीश कुमार का INDIA गठबंधन का संयोजक बनना करीब करीब पक्का हो गया है. ये उतना ही पक्का है, जितना कांग्रेस नेताओं का राम मंदिर दर्शन के लिए अयोध्या जाना. भीतर ही भीतर संबंधित पक्षों में सहमति बन चुकी है, लेकिन औपचारिक घोषणा होनी बाकी है. 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम पर सहमति बनी है, विपक्षी खेमे में निर्णायक भूमिका में माने जाने वाले चार नेताओं की वर्चुअल मीटिंग में. मीटिंग में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, आरजेडी नेता लालू यादव, एनसीपी नेता शरद पवार और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हुए थे. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी नीतीश कुमार से इस सिलसिले बात की थी, जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री का कहना था कि वो संयोजक की भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं.

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खबर है कि नीतीश के नाम का प्रस्ताव रख कर सहयोगी दलों के बीच आम राय बनाने में राहुल गांधी की भी खास भूमिका है, और मल्लिकार्जुन खरगे तो कदम कदम पर साथ थे ही. बताते हैं कि नीतीश कुमार के नाम पर विपक्षी गठबंधन के नौ दलों के नेताओं की मुहर लग चुकी है. कांग्रेस के अलावा ये राजनीतिक दल हैं- जेडीयू, आरजेडी, डीएमके, एनसीपी, टीएमसी, उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी. 

एक जेडीयू नेता के हवाले से आई खबर के मुताबिक, एक या दो दलों को छोड़ कर नीतीश कुमार के नाम पर लगभग सभी तैयार हैं. कांग्रेस नेता बता रहे हैं कि नीतीश कुमार की सहमति भी ली जा चुकी है, और जिस किसी को भी उनके नाम पर आपत्ति है, उनसे कहा गया है कि वीडियो कांफ्रेंसिंग कर बातचीत से मामला सुलझा लिया जाएगा.

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देखा जाये तो पटना में भी विपक्षी गठबंधन की नींव पड़ी, ताना बाना भी वहीं बुना गया और अब विपक्षी राजनीति का केंद्र भी वही जगह बनने जा रही है. 23 जून, 2023 को पटना में विपक्षी गठबंधन की पहली बैठक हुई थी, जिसमें 15 राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया था. दूसरी बैठक बेंगलुरू में 17-18 जुलाई, 2023 को हुई थी, और गठबंधन का नाम INDIA तय किया गया. मुंबई में तीसरी बैठक 31 अगस्त, 2023 और 1 सितम्बर, 2023 को हुई. अभी 19 दिसंबर को भी दिल्ली में गठबंधन के नेताओं की चौथी बैठक हुई थी. INDIA गठबंधन में फिलहाल 28 विपक्षी दल शामिल हैं.

हाल ही में नीतीश कुमार को संयोजक और मल्लिकार्जुन खरगे को INDIA ब्लॉक का चेयरमैन बनाये जाने की भी चर्चा सुनी गई है. कुल मिला कर देखा जाये तो नीतीश कुमार और मल्लिकार्जुन खरगे दोनों ही विपक्षी खेमे की मजबूत कड़ी के रूप में सामने आ रहे हैं.

सवाल है कि क्या मल्लिकार्जुन खरगे, INDIA ब्लॉक का संयोजक बनने के लिए ज्यादा योग्य उम्मीदवार होते, या नीतीश कुमार ही इस भूमिका के लिए सबसे फिट नेता हैं?

1. नीतीश कुमार की ताकत बनेगी उनकी कमजोरी

नीतीश कुमार को वैसे तो बिहार की राजनीति में चाणक्य की संज्ञा दी जाती है, लेकिन उनके राजनीतिक विरोधी अक्सर उनकी एक खास छवि का जिक्र भी करते हैं. अभी तो लालू यादव का परिवार नीतीश कुमार के साथ है, लेकिन अलगाव वाले दिनों में पूरा परिवार उनको पलटू राम कह कर बुलाया करता था. 

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भारतीय राजनीति में ऐसे कई नेता रहे हैं जो ऐन वक्त पर गच्चा दे जाते थे. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो लंबे अरसे तक समाजवादी पार्टी से दूरी बना कर ही चलती थी, वो तो अखिलेश यादव का दबदबा कायम हुआ तो साथ देखी जाने लगीं - नीतीश कुमार की ये खामी अब सबसे बड़ी खासियत बन चुकी है.

नीतीश कुमार को विपक्षी दलों के नेताओं के साथ काम करने का अनुभव तो है ही, बीजेपी के साथ काम करने का भी लंबा अनुभव है - और एनडीए में लौटने के बाद तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी काम करने का अनुभव हो चुका है.

ऐसे में बीजेपी और मोदी के साथ जिस तरीके से नीतीश कुमार लोहा ले सकेंगे, मल्लिकार्जुन खरगे के लिए मुश्किल हो सकता है. राजनीति में सीनियर होने के बावजूद मल्लिकार्जुन खरगे, के पास नीतीश कुमार जैसा घात-प्रतिघात का अनुभव नहीं है, जिसकी मौजूदा दौर में विपक्ष को ज्यादा जरूरत है. 

2. सबको साथ लाये, साथ लेकर चलना भी होगा

2019 के आम चुनाव से पहले भी बीजेपी और मोदी के खिलाफ पूरे विपक्ष को साथ लाने की कोशिशें हुई थीं. तब एनडीए छोड़ कर मैदान में उतरे टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू, शरद पवार और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा भी जोर शोर से जुटे हुए थे. नीतीश कुमार एनडीए में थे, और विपक्ष के ज्यादातर नेता ममता बनर्जी के नेतृत्व के पक्षधर थे. 

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ममता बनर्जी ने इस बार मल्लिकार्जुन खरगे को विपक्ष प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव रख कर राहुल गांधी को रेस से बाहर करने की कोशिश की थी, और आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल भी साथ में खड़े थे. इस बीच नीतीश कुमार ने अपनी प्रेशर पॉलिटिक्स का ऐसा इस्तेमाल किया कि सभी डर गये. सबको लगा कि अगर नीतीश कुमार फिर से एनडीए में चले गये तो 'खेला' होने से रहा.

ये काम, असल में, नीतीश कुमार ही कर सकते हैं. और उसी का नतीजा है कि नीतीश कुमार रेस में जीत के करीब पहुंच चुके हैं. बस एक घोषणा होनी बाकी है, 2015 में भी नीतीश कुमार को कांग्रेस के दबाव में ही लालू यादव को महागठबंधन का नेता घोषित करना पड़ा था. आपको याद होगा तब लालू यादव ने जहर पीने वाली बात कही थी. 

ये नीतीश कुमार ही हैं जो अगस्त, 2022 में एनडीए छोड़ने के बाद बीजेपी को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फेकने का ऐलान किया था. और विपक्ष को साधने पटना से दिल्ली निकल पड़े थे. राहुल गांधी और विपक्ष के बड़े नेताओं से मुलाकात और फोन पर बात की थी. 

अरविंद केजरीवाल से तो कांग्रेस शुरू से ही दूरी बना कर चल रही थी, धीरे धीरे एक वक्त ऐसा आ चुका था जब ममता बनर्जी भी गांधी परिवार से पूरी तरह दूरी बना चुकी थीं - लेकिन सबको एक साथ लाने का श्रेय नीतीश कुमार को ही जाता है - आज की तारीख में तमाम भूल-चूक-लेनी-देनी के साथ विपक्षी दलों के नेता मिल रहे हैं तो नीतीश कुमार सबसे बड़े कारक हैं.

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अब अगर यहां तक सबको साथ लेकर आ गये हैं, तो आगे भी साथ लेकर चलना ही होगा - क्या मल्लिकार्जुन खरगे के लिए ये सब संभव हो सकता था?

3. नीतीश के होने का मतलब, गांधी परिवार के कब्जे से बाहर होना है

मल्लिकार्जुन खरगे का अपना सम्मान है, लेकिन विपक्षी खेमे में वो गांधी परिवार के रबर स्टांप ही माने जाते हैं. देखा जाये तो क्षेत्रीय दलों के साथ आने में आपस में ज्यादा दिक्कत नहीं है, लेकिन सभी को कांग्रेस के व्यवहार से ही समस्या है. कांग्रेस ही हर जगह पेच फंसाये हुए है - सीटों के बंटवारे में भी अब तक रोड़े कांग्रेस की तरफ से ही खड़े किये जा रहे हैं.

नीतीश कुमार ने जो बात खुलेआम कही थी, उसका मतलब भी तो यही था कि कांग्रेस ही INDIA गठबंधन को आगे नहीं बढ़ने दे रही है. उद्धव ठाकरे से हुई बातचीत में भी नीतीश कुमार की ही राय सामने आई है. 

फर्ज कीजिये, मल्लिकार्जुन खरगे को INDIA ब्लॉक का संयोजक बनाया जाये, तो क्या विपक्षी खेमा गांधी परिवार के प्रभाव से वैसे मुक्त महसूस करेगा, जैसा नीतीश कुमार के संयोजक की भूमिका में आ जाने से?

4. राजनीतिक दांव-पेच के माहिर खिलाड़ी हैं नीतीश कुमार

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वैसे तो नीतीश कुमार की राजनीति चालों के तमाम किस्से हैं, लेकिन एक उदाहरण का उल्लेख यहां काफी होगा. एनडीए छोड़ने की सूरत में महागठबंधन का नेता बनना, बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा जमाये रखना और लालू यादव के परिवार पर भी प्रभाव बनाये रखना - नीतीश कुमार के सामने एक साथ ऐसी तमाम चुनौतियां थीं.

एनडीए छोड़ते वक्त नीतीश ने जो चाल चली, सबके वश की बात नहीं. केंद्र की सत्ता में होने का बीजेपी फायदा न उठा सके और सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते राज्यपाल बीजेपी को सरकार बनाने के लिए न बुला लें, नीतीश ने पहले ही चाल चल दी थी. 

जब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के चार विधायकों को नीतीश कुमार ने जेडीयू की जगह आरजेडी में दाखिला दिलाया तो बहुतों को हैरानी हो रही थी. नीतीश कुमार चाहते तो विधायकों को अपने साथ लेकर जेडीयू का नंबर बढ़ा सकते थे. लेकिन तब नीतीश कुमार के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. 

नीतीश कुमार जानते थे कि एनडीए छोड़ने के बाद वो बीजेपी के सबसे बड़े दुश्मन बन जाएंगे. केंद्र में बीजेपी की सरकार है, नीतीश कुमार को लगा कि राज भवन से खेला हो जाएगा. नीतीश कुमार के इस्तीफे की सूरत में राज्यपाल सबसे बड़े राजनीतिक दल को सरकार बनाने का ऑफर देते. तब तक ये पोजीशन बीजेपी ने हासिल कर ली थी. 

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AIMIM विधायकों के साथ आ जाने से आरजेडी फिर से सबसे बड़ी पार्टी हो गई, और उसके साथ गठबंधन के नेता के रूप में नीतीश कुमार को ही सरकार बनाने का ऑफर मिला - 2024 की लड़ाई के लिए नीतीश कुमार जैसा नेता ही मोदी और बीजेपी से टक्कर ले सकता है. 

5. जिसका आइडिया होता है, अंजाम तक पहुंचाना उसके लिए आसान होता है

केंद्र की सत्ता पर बीजेपी के काबिज होने से जो गुस्सा मल्लिकार्जुन खरगे के मन में अभी उठ रहा होगा, नीतीश कुमार उसे 2014 से पहले से पाले हुए हैं. जैसे कांग्रेस के मन में टीस है कि बीजेपी ने उसे केंद्र की सत्ता से बेदखल कर दिया है, उससे भी ज्यादा दर्द नीतीश कुमार के मन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर है. तब नीतीश कुमार ने ही एनडीए की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किये जाने की पहल की थी, लेकिन बीजेपी ने मोदी का नाम आगे कर दिया तो वो एनडीए से अलग हो गये. 

विपक्ष को एकजुट करने की पहल तो नीतीश ने ही की थी, मल्लिकार्जुन खरगे तो बाद में सीन में आये. जब कांग्रेस का अध्यक्ष बन गये. नीतीश कुमार का आइडिया है, जाहिर है उनका अपना एक्शन प्लान भी होगा - और लक्ष्य को हासिल करने के लिए जिंदगी भर का अनुभव और एड़ी-चोटी का पूरा जो लगा देंगे. देखें तो अभी नीतीश कुमार हर मामले में मल्लिकार्जुन खरगे पर भारी पड़ रहे हैं. 

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