
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा ने 'सौग़ात-ए- मोदी' अभियान लॉन्च किया है. इसके जरिए ईद पर 32 लाख जरूरतमंद गरीब मुसलमानों तक पहुंचने की योजना बनाई गई है. रमज़ान के पवित्र महीने और आगामी ईद, गुड फ्राइडे, ईस्टर नवरोज़ और भारतीय नववर्ष के उपलक्ष्य में अल्पसंख्यक मोर्चा द्वारा 'सौग़ात-ए- मोदी' अभियान के माध्यम से ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचने का काम किया जाएगा. इसके साथ ही ज़िलास्तर पर ईद मिलन समारोह का भी आयोजन किया जाएगा. इसमें कुछ भी ऐसा नजर नहीं आ रहा है जिस पर राजनीति होनी चाहिए. पर मुस्लिम हितों की बात करने वाले तथाकथित राजनीतिक दलों ने जिस तरह इस योजना के खिलाफ रिएक्शन दिया है वह समझ से परे है. किसी को मोदी की इस योजना में राजतंत्र की गंध आ रही है तो कोई उनकी तुलना मगरमच्छ से कर रहा है. कुछ लोग ड्राई फ्रूट के बजाए उन्हें रोजगार और शिक्षा दिलाने की बात कर रहे हैं. फिल्म एक्टर और सांसद शत्रुघ्न सिन्हा,समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व सीएम अखिलेश यादव, सांसद अफजाल अंसा्री, टीएमसी सांसद कीर्ति आजाद आदि ने पीएम मोदी की इस योजना के लिए उन्हें जबरदस्त तरीके से रोस्ट किया है. सौगात ए मोदी स्कीम की आप लाख बुराइयां कर लें इस तरह की योजनाएं देश की जनता के बीच एक सौहार्दपूर्ण वातावरण संदेश देने का काम तो करती ही हैं. पर विपक्ष ऐसा क्यों कर रहा है ?
विपक्ष को मोदी सरकार का क्यों स्वागत करना चाहिए था
क्या विपक्ष को ऐसा लगता है कि अल्पसंख्यकों को प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी वोट के लिए पटाने में लगे हैं. समाजवादी पार्टी के सांसद अफजाल अंसारी ने कहा, बिहार में चुनाव है इसलिए सब कुछ हो रहा है. मुसलमान के लिए अगर बीजेपी कुछ कर सकती है तो उनके लिए इंसाफ करे, उनका उन्हें हक दिलाए, यही सबसे बड़ी सौगात होगी. दरअसल बिहार चुनावों को देखते हुए कुछ लोगों को ऐसा लगता है पर शायद ऐसा नहीं है. बीजेपी यह मानकर चलती है कि उसे मुस्लिम समुदाय का वोट नहीं मिलने वाला है. इसलिए चुनाव के समय वोटों के ध्रुवीकरण में लग जाती है. पर अगर कोई पार्टी जिसके विचार अल्पसंख्यकों के लिए इस तरह के नहीं थे और अब वह पार्टी उस खास तबके के लिए कुछ सोच रही है तो इसका स्वागत करना चाहिए. सामाजिक विकास और राजनीतिक विकास इसी तरह से होता है. कभी सवर्णों को गाली देने वाली बहुजन समाज पार्टी आज की तारीख में सभी वर्गों को साथ लेकर चलती है. अगर बीजेपी को लोग भी इस तरह की युक्तियों का सहारा ले रहे हैं तो इसका स्वागत होना चाहिए. वोट के लिए ही सही कम से कम ऐसी युक्तियां की जा रही हैं जिसके चलते दो भिन्न धर्मों के लोग एक साथ आ जाते हैं. बहुलतावादी समाजों में शांति इस तरह ही आती है.
देश की पूर्व सरकारों ने अल्पसंख्यकों के लिए कुछ हुआ होता तो मुसलमानों का इतना बुरा हाल नहीं होता
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि बीजेपी की पूर्ववर्ती राज्य सरकारों ने अगर ध्यान दिया होता तो देश में मुसलमानों की जनसंख्या इतनी बेसहाय और बेसहारा नहीं होतीं. देश में मुसलमानों की हितैषी कांग्रेस ने करीब 5 दशक राज किया है . पर सबसे कम लिट्रेसी, सबसे कम प्रति व्यक्ति आय , सरकारी नौकरियों में हिस्सा आदि में मुसलमानों की हालत सबसे खराब है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष ने उन्हें वोट बैंक के रूम इस्तेमाल किया. अगर तुलनात्मक तौर पर विश्वेषण करें तो मुसलमानों का लोकसभा और विधानसभा में रिप्रजेंटशन जरूर घटा है पर सिविल सर्विसेस और अन्य सरकारी नौकरियों में उनकी सहभागिता बढ़ी है. इसी तरह व्यवसाय और प्राइवेट नौकरियों में भी मुसलमान आगे बढ़ रहे हैं. सरकारी योजनाओंं का लाभ उठाने वालों में मुस्लिम समाज अन्य समुदायों से बेहतर स्थिति में है.
क्या मोदी वास्तव में अल्पसंख्यकों की भलाई चाहते हैं
पिछले दिनों जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चर्च और सूफियों के सम्मेलन में पहुंचे वह वास्तव में हैरान करने वाला था. सूफी सम्मेलन में उन्होंने न केवल मुस्लिम संतों की तारीफ की बल्कि उन्हें सूफी पंथ की आत्मा बताया. उन्होंने कहा कि आतंकवाद और धर्म के बीच कोई रिश्ता नहीं है. आतंकवाद को धर्म से नहीं जोड़ना चाहिए. आतंक से लड़ाई मानवता और अमानवीयता के बीच संघर्ष है. आतंकी अपने ही देश और अपने ही लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं. अजान और प्रार्थना की जगहों पर हमले किए और ऐसे वक्त में सूफीवाद एक नूर की तरह है, जो हिंसा से सहमी दुनिया को एक रोशनी दिखा सकती है. इस्लाम शांति का धर्म है और सूफी पंथ इसकी आत्मा है. जाहिर है कि पीएम का इस्लाम को शांति धर्म बताया जाना बहुत से बीजेपी समर्थकों को अच्छा नहीं लगा होगा. मलतब साफ है मोदी ने जो कुछ भी किया वह अपने रिस्क पर किया है. मोदी जानते हैं कि बीजेपी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति कभी उन्हें आडवाणी वाले हश्र को अंजाम दे सकती है. शायद यही कारण है कि एक तरफ ऐसी स्कीम लांच की जाती है तो दूसरी तरफ संसद के प्रेक्षागृह में फिल्म छावा देखने की तिथि का भी ऐलान किया जाता है.
क्या मोदी की यह पहल केवल कुलेंट या सेफ्टी वॉल्व थियरी का हिस्सा है
कुछ लोगों का मानना है कि मोदी मुसलमानों को लॉलीपॉप थमा रहे हैं. ऐसे लोग यह मान कर चल रहे हैं कि मोदी मुसलमानों को इस पहल के जरिए वक्फ बोर्ड बिल और औरंगजेब की कब्र आदि के मुद्दे पर शांत करना चाहते हैं. उनका कहना है कि मोदी दूरदर्शी हैं वो सौगात ए मोदी को कूलेंट या सेफ्टी वॉल्व की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे लोग शायद यह समझ नहीं सके हैं कि सौगात ए मोदी से मोदी को फायदे से अधिक नुकसान होने वाला है. भारतीय जनता पार्टी में एक वर्ग ऐसा है जो कतई नहीं चाहता है कि मुसलमानों के साथ इस तरह का व्यवहार सरकार करे. नरेंद्र मोदी सौगात ए मोदी के जरिए ऐसे लोगों की नाराजगी को दावत दे रहे हैं. दरअसल मोदी को यह बात समझ में आ गई है कि देश को तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बनाने के लिए और 2046 तक विकसित देश बनाने के लिए समग्र विकास की जरूरत होगी. 25 से 30 करोड़ मुसलमानों को नजरअंदाज करके ये उपलब्धि हासिल नहीं हो सकेगी. वैसे भी कोई भी मजबूत देश या सरकार अपने एक चौथाई आबादी को अपने से दूर रखकर कभी भी ताकतवर नहीं बनी रह सकती है.