Advertisement

पीएम नरेंद्र मोदी 7 दिनों से अपने विरोधियों के बीच बने हुए हैं 'दिल-जीत' | Opinion

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक बदले बदले नजर आ रहे हैं. पिछले सात दिनों में उन्होंने अपने विरोधियों में पैठ बनाने के जो जतन किए हैं वो देश में उनकी लोकप्रियता को और बढ़ाने वाला साबित हो सकता है.

पीएम मोदी से मुलाकात करते दिलजीत और अजमेर दरगाह पर चादर भेजने की तैयारी पीएम मोदी से मुलाकात करते दिलजीत और अजमेर दरगाह पर चादर भेजने की तैयारी
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 02 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 6:23 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले सात दिनों से अपनी फैन फॉलोइंग को सरप्राइज दे रहे हैं. नए साल के पहले दिन पंजाबी पॉप सिंगर और बॉलीवुड के कलाकार दिलजीत दोसांझ को अपने घर बुलाकर न केवल उनसे बातचीत की बल्कि रील्स बनाकर सोशल मीडिया पर भी शेयर किया. दोसांझ मोदी के धुर विरोधी रहे हैं. किसान आंदोलन के समय उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ जबरदस्त मोर्चा खोल रखा था. 

Advertisement

इतना ही नहीं 25 दिसंबर को मोदी क्रिसमस के अवसर पर प्रभु यीशू की प्रार्थना करते नजर आते हैं तो 2 जनवरी को अजमेर वाले ख्वाजा के दरबार में चादर भी भेजने वाले हैं. गौरतलब है कि अभी हाल ही में ये दरगाह हिंदू संगठनों के निशाने पर था. हिंदू संगठनों का कहना है कि इस दरगाह के नीचे हिंदू मंदिर दफन है. कुछ दिनों पहले की बात है उन्होंने सैफ अली खान को घर बुलाकर उनके बच्चों का हाल चाल भी पूछा और ये भी बताया कि वे उनके पापा से भी मिल चुके हैं. जब कि मात्र 10 दिन पहले ही सैफ मोदी के विरोध में कुछ बोल चुके थे. मोदी के कट्टर समर्थक सैफ अली खान से इसलिए भी नाराज रहते हैं क्योंकि उन्होंने भारत पर क्रूरतम आक्रमण करने वाले तैमूर लंग के नाम अपने बेटे का नामकरण किया था. 

Advertisement

जाहिर है पीएम नरेंद्र मोदी के बदलते व्यक्तित्व से उनके कुछ समर्थकों को निराश हो सकती है तो बहुत से समर्थकों में उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास और बढ़ने का कारण भी बनेगा. क्योंकि पीएम के ये कदम उन्हें पूरे भारत का असली नेता बनाते हैं. हालांकि ये कोई पहली बार नहीं था जब वो चर्च में गए हों और ख्वाजा के लिए चादर भेजे हों. फिर भी आज देश का माहौल बदला हुआ है. ऐसे समय में आइये देखते हैं कि पीएम मोदी के इस जेस्चर के क्या मायने निकलते हैं.

1-क्या मोदी का तीसरा कार्यकाल विरोधियों के बीच पैठ बनाने के लिए जाना जाएगा

नरेंद्र मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं. वो पूरे देश के नेता हैं. उनकी नीतियों में किसी धर्म के प्रति कोई भेदभाव नहीं है. पर उनपर हिंदुओं के नेता होने का ठप्पा लग चुका है. वो लगातार सबका साथ-सबका विकास की बातें करते रहे हैं पर जब समर्थन की बात आती है तो मुस्लिम और ईसाई समुदाय से उन्हें वो सपोर्ट नहीं मिलता, जिसके लिए उन्हें उम्मीद होती है.

कहा जा रहा है कि जिस तरह पिछले दिनों सैफ अली और दिलजीत दोसांझ से मोदी ने मुलाकात की है, वो इसी रणनीति के तहत है कि विरोधियों के बीच भी बीजेपी अपनी पैठ बना सके. यह भी कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में कुछ और इस तरह की हस्तियां पीएम आवास पहुंचेंगी. जाहिर है कि पीएम चाहते हैं कि उनके विरोधी भी उनकी तारीफ करने को बाध्य हो जाएं.

Advertisement

पत्रकार साक्षी जोशी की मां की मौत पर भी नरेंद्र मोदी ने एक पत्र लिखकर अपनी संवेदना जाहिर की है. जबकि सबको पता है कि जोशी और उनके पति विनोद कापड़ी पीएम मोदी के प्रखर आलोचक रहे हैं. जाहिर है कि पीएम का ये जेस्चर सबको पसंद आ रहा है. खुद साक्षी जोशी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर इस बात की जानकारी दी और पीएम के प्रति अपना आभार जताया है.

2-क्या मोदी को अपने कट्टर समर्थकों के नाराज होने का डर नहीं है

2014 के बाद बीजेपी की सफलता का राज यही रहा है कि हिंदू हितों को लेकर भारतीय जनता पार्टी एकदम से मुखर होती गई. सीएए-एनआरसी, यूसीसी, वक्फ बोर्ड, मुसलमानों के आरक्षण का निषेध आदि को लेकर पार्टी खुलकर सामने आई. इसका नतीजा ये रहा कि प्रदेशों में कई क्षत्रप केंद्रीय नेतृत्व से भी अधिक कट्टर होने का प्रयास करने लगे. जाहिर है कि देश में इसके चलते अल्पसंख्यकों में असुरक्षा का भाव पैदा हो रहा था.

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि मोदी ने अभी पिछले 7 दिनों में जो जेस्चर दिखाया है उससे देश विदेश में एक बढ़िया संदेश जाएगा. पर क्या मोदी इसके खतरे को नहीं भांप रहे हैं? लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेता को केवल इसलिए बैकफुट पर डाल दिया गया क्योंकि उन्होंने सदाशयता के चलते अपनी पाकिस्तान यात्रा में मोहम्मद अली जिन्ना के मजार पर जाने की जुर्र्त की थी. पार्टी में कुछ लोग कट्टरता के समर्थन में आवाज बुलंद कर सकते हैं. पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो बीजेपी के अभिभावक समान है खुद हर मस्जिद में मंदिर ढूंढने की घटनाओं का विरोध किया है है. जाहिर है कि नरेंद्र मोदी के इस कदम में उसे संघ का पूरा साथ मिल रहा होगा.  

Advertisement

3-दिलजीत को बुलाकर किसान आंदोलन और दिल्ली विधानसभा चुनाव को जीतने का मन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए उनके 11 साल के कार्यकाल में जो बातें उन्हें आज भी टीस दिलाती होंगी, उनमें किसान आंदोलन को खत्म न कर पाना और दिल्ली और पंजाब में बीजेपी की सरकार न बनवाना शामिल होगा. पीएम मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने लाख जतन कर लिए पर सिख कम्युनिटी का दिल नहीं जीत पाए. जाहिर है कि दिलजीत से मिलने का असर तो कुछ तो पड़ेगा ही. यह भी हो सकता है कि दिलजीत पंजाबी किसानों से बातचीत के लिए भविष्य में कड़ी बन जाएं. इसी तरह दिल्ली में करीब 12 प्रतिशत सिख वोट हैं. बीजेपी चाहेगी की दिलजीत के इस मुलाकात को वो दिल्ली विधानसभा चुनावों में सिख वोटों को अपने तरफ करने में इस्तेमाल करे.

हालांकि किसान नेता पंढेर ने कहा है कि दिलजीत दोसांझ के पीएम मोदी से मिलने पर किसान खुश नहीं हैं. किसानों का कहना है कि दिलजीत को मोदी से मिलने के बजाए किसानों का समर्थन करने के लिए आना चाहिए था. किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल 38 दिनों से अनिश्चितकालीन अनशन पर है और दोसांझ को उनसे मिलने जाना चाहिए था. 

4-क्या यूसीसी और वक्फ बोर्ड जैसे मुद्दों पर बदलेगी विचारधारा

Advertisement

अब सवाल ये उठता है कि पीएम मोदी अपने विरोधियों के प्रति सॉफ्ट हुए हैं तो क्या उनकी नीतियों में बदलाव संभव है. जैसे यूसीसी और वक्फ बोर्ड का संबंध सीधे अल्पसंख्यक वर्ग से है. मुस्लिम समुदाय लगातार इन दोनों कानूनों का विरोध कर रहा है. जितना विरोध हो रहा है उतना ही लगातार पीएम मोदी के भाषणों में इन दोनों मुद्दों का जिक्र बढ़ता जा रहा था. तो क्या नए साल में ऐसी उम्मीद की जाए कि इन कानूनों में अल्पसंख्यकों की डिमांड के अनुसार संशोधन किया जाए या कुछ दिनों के लिए इन कानूनों को टाल ही दिया जाए.

 पत्रकार दिलीप मंडल लिखते हैं कि 'पीएम नरेंद्र मोदी के 7 दिन: वे चर्च में क्रिसमस मनाते हैं. सिख धर्म का आदर करते हुए वीर बाल दिवस मनाते हैं, दिलजीत दोसांझ से कीर्तन सुनते हैं, अजमेर दरगाह पर चादर भेजेंगे व नववर्ष पर आराध्य श्रीराम का वंदन कर विकसित भारत बनाने एवं यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड लागू करने का प्रण लेते हैं.' 

हो सकता है कि पीएम नरेंद्र मोदी यूसीसी और वक्फ बोर्ड बिल को लाने के लिए ही अल्पसंख्यकों का विश्वास जीत रहे हों. मंडल की बातों से इनकार नहीं किया जा सकता है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement