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महाराष्ट्र में बिहार मॉडल की मांग कर रही शिवसेना आखिर बीजेपी के सामने क्यों पड़ी नरम? । Opinion

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के नाम के लिए देवेद्र फडणवीस के नाम पर करीब-करीब मुहर लग चुकी है. जिस तरह मंगलवार को शिवसेना नेताओं ने अपनी टोन को विनम्र कर लिया है उसका मतलब है कि महाराष्ट्र में बिहार मॉडल लागू करने यानी एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने की मांग लगभग खत्म हो चुकी है.

एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 27 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:52 AM IST

महाराष्ट्र में सीएम पद के लिए बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस का नाम करीब करीब फाइनल हो चुका है. हालांकि शिवसेना नेता और प्रदेश के कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी दोबारा सीएम बनने का मोह त्याग नहीं पा रहे थे. इसलिए कई बार शिवसेना की ओर से भारतीय जनता पार्टी पर दबाव बनाया गया, कि क्यों न महाराष्ट्र में भी बिहार मॉडल लागू किया जाए. पर मंगलवार को महाराष्ट्र में नई महायुति सरकार के नेतृत्व को लेकर बीजेपी ने शिवसेना नेताओं द्वारा सुझाए गए बिहार मॉडल को खारिज कर दिया है. 

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इस बीच एकनाथ शिंदे भी कुछ नरम होते नजर आए. सोमवार रात को X पर पोस्ट कर स्थिति को ठंडा करने की कोशिश की. उन्होंने लिखा, महायुति की शानदार जीत के बाद, हमारी सरकार एक बार फिर राज्य में बनेगी. महायुति के रूप में, हमने चुनाव साथ लड़ा और आज भी एकजुट हैं. मेरे प्रति प्रेम के कारण, कुछ लोगों ने मुंबई में इकट्ठा होने की अपील की है. मैं आपके इस प्रेम का गहराई से आभारी हूं. लेकिन मैं अपील करता हूं कि मेरे समर्थन में इस तरह से कोई इकट्ठा न हों.

अपने नेता को दोहराते हुए  शिवसेना के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री दीपक केसरकर ने मंगलवार को कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय सभी को स्वीकार्य होगा. हर पार्टी चाहती है कि मुख्यमंत्री उनके पक्ष से हो, लेकिन तीनों पार्टियों के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह जो भी निर्णय लेंगे, वह सभी को स्वीकार होगा. शिंदेजी नाराज नहीं हैं और महायुति सहयोगियों के बीच कोई मतभेद नहीं है. आखिर वे कौन से कारण रहे कि शिवसेना यह मान गई कि अब सीएम का पद नहीं मिलने वाला है. दरअसल बीजेपी एकनाथ शिंदे के साथ नीतीश कुमार वाला वाला ट्रीटमेंट न देने के पीछे कई कारण हैं जिसे शायद शिवसेना ने जल्द ही समझ लिया.

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1- बिहार में फडणवीस जैसा बड़ा चेहरा बीजेपी के पास नहीं

बिहार में आज की तारीख में भी भारतीय जनता पार्टी के पास एक भी नेता ऐसा नहीं है जो बिहार के सीएम नीतीश कुमार या अन्य विरोधी पार्टियों के नेताओं से अधिक मजबूत हो या उनका आभामंडल ही उनके बराबर का हो. देवेद्र फडणवीस महाराष्ट्र में काफी दिनों सक्रिय रहे हैं.  आरएसएस और बीजेपी दोनों ही में उनकी बराबर पैठ है. यही नहीं राज्य की राजनीति में महायुति ही नहीं महाविकास अघाडी में भी उनकी जबरदस्त पहुंच है. विधानसभा चुनावों में उन्होंने राज्य भर में अकेले चुनावों की कैंपनिंग की है. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा रैलियां और सभाएं भी उनके द्वारा ही की गईं हैं. भारतीय जनता पार्टी की रैलियों में उनके आते ही देवा भाऊ-देवा भाऊ की गूंज उनकी लोकप्रियता की कहानी कह रहा था. जबकि बिहार में आज भी दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा की चमक इतनी नहीं है कि नीतीश कुमार के प्रभाव को मद्धिम भी कर सकें. दोनों डिप्टी सीएम के अलावा भी बिहार बीजेपी में कोई ऐसा नेता नहीं है जो केंद्रीय नेतृत्व के बिना बिहार में बीजेपी को खड़ा कर सके. इस बात को महराष्ट्र में शिवसेना मॉडल की मांग करने वाले शिवसेन नेता भी समझ रहे हैं. शायद यही कारण है कि जल्दी ही वो समझ गए कि बिहार और महाराष्ट्र की परिस्थितियों में जमीन आसमान का अंदर है.

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2-नीतीश कुमार और एकनाथ शिंदे की तुलना नहीं की जा सकती

एक नेता के रूप में नीतीश कुमार और एकनाथ शिंदे की तुलना नहीं की जा सकती है. नीतीश कुमार देश के उन कद्दावर नेताओं में से हैं जो कभी पीएम पद के दावेदार रहे हैं. आज की तारीख में भी अगर वो एनडीए में नहीं होते तो उन्हें पीएम पद के एक दावेदार के रूप में देखा जाता. ये बात अलग है कि देश में अभी विपक्ष गठबंधन के सत्ता में आने की उम्मीद नहीं है. इंडिया गठबंधन का जो रूप आज सबके सामने दिख रहा है उसके पीछे नीतीश कुमार का ही दिमाग था. इंडिया गठबंधन नीतीश कुमार का न केवल ब्रेन चाइल्ड है बल्कि उन्हीं के प्रयासों से यह रूप ले सका था. देश भर के विपक्षी नेताओं को एकजुट करना उन्हीं के वश का था. देश में कोई भी दूसरा नेता यह कार्य करने में सक्षम नहीं था. इसके साथ ही नीतीश कुमार बिहार में एक विचार भी हैं. अतिपिछड़ों के रूप में एक नया वोट बैंक उन्होंने तैयार किया जिसके बल पर करीब ढाई दशक से वो बिहार पर राज कर रहे हैं.इस तरह बिहार में नीतीश कुमार के नीचे काम करना नेताओं के लिए सम्मानजनक बन जाता है. एकनाथ शिंदे को अभी नीतीश कुमार बनने में बहुत खून पसीना बहाना होगा. एकनाथ शिंदे को बिहार का सीएम इसलिए नहीं बनाया गया था कि वो महाराष्ट्र के कद्दावर नेता हैं या एक कुशल प्रशासक हैं. वो समय की मांग थी. शिवसेना तोड़कर आये थे. महाराष्ट्र में ये संदेश न जाए कि इस तोड़फोड़ से शिंदे को क्या मिला? 

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3-बिहार में नीतीश कुमार को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट किया गया जबकि एकनाथ शिंदे को नहीं

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने कहा कि बिहार में लागू मॉडल महाराष्ट्र में लागू नहीं हो सकता. शुक्ला कहते हैं कि बिहार में बीजेपी ने नीतीश कुमार को चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था और उसे निभाया. महाराष्ट्र में ऐसी कोई प्रतिबद्धता नहीं है क्योंकि हमारे पास मजबूत संगठनात्मक आधार और नेतृत्व है. इसके अलावा, पार्टी ने चुनाव के बाद शिंदे को मुख्यमंत्री बनाए रखने का कोई वादा नहीं किया था. चुनाव अभियान के दौरान पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने स्पष्ट किया था कि मुख्यमंत्री का निर्णय चुनाव परिणामों पर आधारित होगा. चुनाव प्रचार के दौरान ही गृहमंत्री अमित शाह ने यह संकेत दे दिया था कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा.हालांकि देवेंद्र फ़डणवीस से एक पीसी में अगले मुख्यमंत्री का नाम पूछा गया तो उन्होंने एकनाथ शिंदे की ओर इशारा करते हुए कहा था कि हमारे सीएम यहीं हैं. इन्हीं के नेतृत्व में हम चुनाव लड़ रहे हैं. 

4-बिहार वाली गलती महाराष्ट्र में कुछ दिन करके भुगत रही है बीजेपी

बिहार वाली गलती महाराष्ट्र में करके बीजेपी पछता ही रही है. इसलिए अब दुबारा गलती नहीं करना चाहेगी. हम सभी जानते हैं कि महाराष्ट्र में लाड़की बहिन योजना ने महाराष्ट्र चुनावों में जीत में बड़ी भूमिका निभाई है. पर इसका श्रेय एकनाथ शिंदे को मिल रहा है. क्योंकि जब ये लागू किया गया मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ही थे. जबकि सरकार एनडीए की थी. योजना लागू करने का फैसला पूरी सरकार का था. बिना बीजेपी की सहमति के कोई फैसला लागू नहीं हो सकता था. इसी तरह बिहार में जितनी लोककल्याणकारी योजनाएं लागू हो रही हैं उसका श्रेय नीतीश कुमार के नाम जा रहा है. जबकि दो डिप्टी सीएम बीजेपी के हैं. इसलिए बिहार वाली गलती एक बार फिर महाराष्ट्र में बीजेपी नहीं करेगी. इस बात को शिवसेना भी अब समझ गई है.

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5- बिहार में आरजेडी के रूप में एक सशक्त विपक्ष है

बिहार में नीतीश कुमार के नीचे रहने के लिए बीजेपी की मजबूरी यह है कि आरजेडी वहां एक सशक्त विपक्ष के रूप में मौजूद है. आरजेडी को सरकार में आने के लिए मात्र 9 विधायकों की जरुरत है. बिहार में आरजेडी और बीजेपी के पास विधायकों की संख्या करीब करीब बराबर ही हैं. जेडीयू के आने के बाद भी बिहार में एनडीए के पास मात्र 6 विधायक ही बहुमत से ज्यादा हैं.जबकि महाराष्ट्र में आज ऐसी स्थिति नहीं है. महाराष्ट्र में बीजेपी एक बहुत बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. 132 बीजेपी विधायक दूसरी पार्टियों के मुकाबले बहुत बड़ी संख्या है. इसलिए नैतिक रूप से भी महाराष्ट्र में उसका सीएम बनने का अधिकार बनता है.

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