Advertisement

कांग्रेस की ये 6 मजबूरियां रही होंगी जो वरुण गांधी के लिए पार्टी में नहीं बन पाई जगह

जिन लोगों को राजनीतिक खबरों में दिलचस्पी है उन्हें पता है कि वरुण गांधी का बीजेपी से टिकट कटना तय ही था. क्योंकि वो लगातार पीएम मोदी और यूपी में योगी सरकार को निशाने पर ले रहे थे. पर कांग्रेस में उनकी जगह क्यों नहीं बन सकी ये महत्वपूर्ण हो जाता है.

वरुण का टैलेंट ही बन गया उनकी समस्या वरुण का टैलेंट ही बन गया उनकी समस्या
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 27 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 3:54 PM IST

अगर वरुण गांधी की टीम की माने तो वो अब लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. उनकी टीम ने बुधवार को 'आज तक' को  जानकारी दी कि वरुण अपनी मां मेनका गांधी के लिए सुल्तानपुर में चुनाव प्रचार पर फोकस करेंगे. यूपी भाजपा अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह का कहना है कि वरुण गांधी को इस बार पार्टी ने चुनाव लड़ने का अवसर नहीं दिया है, लेकिन वह हमारे साथ हैं. उनके बारे में पार्टी नेतृत्व ने जरूर कुछ बेहतर ही सोच रखा होगा. पीलीभीत से बीजेपी के जितिन प्रसाद के नाम की घोषणा होने के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन ने उन्हें कांग्रेस में आने का ऑफर दिया था और बीजेपी पर तंज कसा था उनके नाम में गांधी परिवार होने के चलते बीजेपी ने टिकट नहीं दिया. हालांकि जिन लोगों को राजनीतिक खबरों में दिलचस्पी है उन्हें पता है कि वरुण गांधी का बीजेपी से टिकट कटना तय ही था. क्योंकि वो लगातार पीएम मोदी और यूपी में योगी सरकार को टार्गेट पर ले रहे थे. सवाल यह है कि जब कई महीनों से वरुण के कांग्रेस में जाने की बात चल रही थी तो बात क्यों नहीं बनी? आइये कांग्रेस की मजबूरियों की चर्चा करते हैं.

Advertisement

1-विचारधारा का सवाल, वरुण ही नहीं संजय गांधी भी हिंदुत्व की विचारधारा के बहुत नजदीक थे

कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों में जब किसी को शामिल नहीं करना होता तो विचारधारा के मुद्दे का बोर्ड लगा दिया जाता है. हालांकि शामिल करने के लिए हृदय परिवर्तन की बात कही जाती है. राहुल गांधी से पिछले साल एक इंटरव्यू के दौरान पूछा गया था कि क्या उनके चचेरे भाई वरुण कांग्रेस में लौटें तो उनका स्वागत होगा? इसका उत्तर देते हुए राहुल ने कहा था कि हमारी विचारधाराएं समान नहीं हैं. राहुल गांधी ने कहा था, 'उन्होंने किसी समय, शायद आज भी, उस विचारधारा (भाजपा की विचारधारा) को स्वीकार किया और उसे अपना बना लिया. मैं उस बात को कभी स्वीकार नहीं कर सकता. मैं उनसे मिल जरूर सकता हूं, उन्हें गले लगा सकता हूं, लेकिन उस विचारधारा को स्वीकार नहीं कर सकता, जिससे वह जुड़े हैं. मेरे लिए असंभव है.

Advertisement

वरुण गांधी तीन बार बीजेपी की विचारधारा के साथ ही संसद में पहुंच चुके हैं. इसके साथ ही उनकी मां तो लगातार सांसद और मंत्री बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार मे ही रही हैं. वरुण गांधी बीजेपी के साथ रहते इस कदर कट्टर हिंदू हो चुके हैं कि एक बार उनपर अल्पसंख्यकों के खिलाफ उकसाऊ भाषण देने के आरोप में एफआईआर भी हो चुकी है.वरुण गांधी पर  पीलीभीत में एक बार चुनाव प्रचार के दौरान अल्पसंख्यकों के बारे में आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए भड़काउ भाषण देने का आरोप लगा था . उन्होंने इस चुनावी सभा में कहा, ये हाथ नहीं है, ये कमल की ताकत है जो किसी का सिर कलम कर सकता है.वरुण गांधी के पिता संजय गांधी को भी हिंदुत्व के लिए समर्पित माना जाता रहा है.

कहा जाता है कि लाल किले के पास एक मुस्लिम बस्ती को जिसे दिल्ली में मिनी पाकिस्तान के नाम से उस दौर में जाना जाता था उसे संजय गांधी ने जबरन खाली कराया था. प्रसिद्ध पत्रकार तवलीन सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि संजय गांधी ने स्लम रिमूवल के नाम पर इमरजेंसी के समय यह काम किया था. इस काम की जिम्मेदारी उन्होंने अपने पसंदीदा अधिकारी जगमोहन मल्होत्रा को दी . ऐसा बताया जाता है कि जगमोहन ने एक मीटिंग में कहा था कि जामा मस्जिद के बीच सारी चीजों को हटा दिया जाए, मैं दूसरा पाकिस्तान नहीं चाहता. हालांकि जगमोहन ने ऐसी किसी मीटिंग की बात को बाद में नकार दिया था. ये वही जगमोहन हैं जो बाद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री बने और एक बार फिर लाल किले के आसपास के अवैध कब्जों को खत्म करवाया. 

Advertisement

2- राहुल के हर प्रतिद्वंद्वी को जड़ में ही खत्म करना पार्टी की मजबूरी

कांग्रेस में ऐसी रणनीति पर काम हो रहा है कि राहुल गांधी के सामने किसी और को शायद ही कभी उभरने का मौका मिले. यहां तक कि राहुल गांधी की बहन प्रियंका को भी उतना ही उड़ने दिया जाता है जहां से उन्हें कंट्रोल किया जा सके. प्रियंका गांधी वाड्रा को कभी राहुल से अधिक हैसियत की बात छोड़िए उनके बराबर का नहीं दिया गया. यही कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए शशि थरूर जैसे योग्य कांग्रेसी की जगह मल्लिकार्जुन खरगे के नाम को आगे बढ़ाया गया. कांग्रेस में ऐसे तमाम नेता हैं जो राहुल गांधी से अधिक योग्य हैं पर उन्हें इतना मौका कभी नहीं दिया गया कि वे पार्टी के हीरो बन जाएं और कल को राहुल गांधी की जगह काबिज हो जाएं. यही बात वरुण गांधी के साथ भी है. वरुण गांधी की योग्यता को कौन नहीं जानता है. कहा जाता है कि प्रसिद्ध ब्रिटिश स्कूल हैरो का एंट्रेंस गांधी फैमिली में जवाहर लाल नेहरू के बाद केवल वरुण गांधी ने ही क्लीयर किया था. ऐसे टैलेंटेड शख्स को कांग्रेस में लाकर पार्टी अपने नेता का काम क्यों खराब करेगी.

3-मेनका के अंदर की टीस और वरुण का खानदानी रिश्ता

Advertisement

हमने सामान्य गृहस्थ परिवारों में देखा है कि खानदान का खून रंग दिखाता है . बच्चे बड़े होकर अपने परिवार की ओर झुकते हैं. जबकि मां जिसने अपमान के खून पीकर जीवन यापन किया होता है वो उस खानदान से उतना ही नफरत करती हैं. शायद यही कहानी वरुण गांधी के जीवन का भी है. कहा जाता है कि वरुण गांधी का अपने कजिन राहुल और प्रियंका से खूब बनती है. पर ये तीनों बच्चे अभी भी अपनी माताओं से गवर्न होते हैं. इन तीनों बच्चों के हर कदम में उनकी मां की सलाह होती है. जाहिर है कि न मेनका गांधी और न ही सोनिया गांधी कभी ये सलाह दे सकती हैं कि तुम लोग एक हो जाओ.
 
4-वरुण रायबरेली और अमेठी सीट चाहते थे

क्या वरुण गांधी खुद के लिए कांग्रेस से अमेठी या रायबरेली की सीट चाहते थे? इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि वरुण गांधी अपने पिता और दादी की विरासत से खुद को जोड़ना चाहते रहे हों. दरअसल गांधी परिवार ने कांग्रेस की गढ़ रह चुकी इन दोनों सीटों से अभी तक प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है. सोनिया गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने से इनकार और राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के इन दोनों जगहों पर चुनाव न लड़ने की अनिच्छा के चलते लोग स्वभाविक रूप से इन दोनों जगहों में किसी एक के लिए वरुण गांधी की डिमांड होने लगी थी. इसलिए ऐसा समझा जा रहा था कि हो सकता है कि कांग्रेस वरुण गांधी के लिए रायबरेली या अमेठी से टिकट की घोषणा कर दे.

Advertisement

कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने तो वरुण गांधी को कांग्रेस में शामिल होने का ऑफर भी दे दिया था. ऐसी खबरें चल रही थीं कि वरुण गांधी को लेकर जारी चर्चाओं के दौर के बीच कांग्रेस आलाकमान ने अमेठी के कार्यकर्ताओं से फीडबैक लिया है. वरुण को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में दो राय देखने को मिली. एक खेमा चाहता है कि राहुल, प्रियंका गांधी के न लड़ने की दशा में वरुण निर्दलीय अमेठी से लड़ें और कांग्रेस-सपा उनका समर्थन करे. एक गुट यह कहता है कि सोनिया गांधी के बाद इस पीढ़ी से कांग्रेस में राहुल, प्रियंका हैं तो तीसरा गांधी क्यों चाहिए? जाहिर है कि अगर वरुण गांधी रायबरेली या अमेठी से चुनाव लड़ते हैं और जीत जाते हैं तो वे न केवल परिवार की विरासत वाली सीट से एमपी बनेंगे बल्कि पार्टी के लिए एक उम्मीद भी बन जाएंगे. बस यही गलती वरुण गांधी के साथ हो गई. 

गौरतलब है कि संजय गांधी ही अमेठी के पहले राजकुमार थे. उसके बाद कभी सोनिया तो कभी राहुल यहां के सांसद रहे. 1977 में संजय गांधी अमेठी से हारे थे. लेकिन 1980 में उन्हें जीत मिली. इसी साल उनका निधन हो गया. फिर उपचुनाव में राजीव गांधी जीते.

5-संजय विचार मंच और गली गली में शोर है-राजीव गांधी चोर है का नारा 

Advertisement

मेनका गांधी का राजनीतिक कैरियर राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी के खिलाफ शुरू हुआ जो अब तक खत्म नहीं हुआ है. इस बीच दोनों परिवारों में काफी कड़वाहट घुलती गई. जो वरुण गांधी के कांग्रेस में जाने के लिए हर दौर में नकारात्मक हो जाता है.1980 में संजय गांधी की विमान हादसे में मौत के बाद मेनका गांधी के लिए परिवार में सब कुछ बदल गया था. संजय गांधी जब तक जीवित रहे तब तक उनकी तूती बोलती थी. बहुत से मामलों में वो अपनी मां इंदिरा गांधी की भी नहीं मानते थे.संजय की विरासत अब राजीव के हाथों में जा रही थी. इंदिरा और मेनका छोटी-छोटी बातों पर लड़ पड़ते थे. खुशवंत सिंह ने अपनी आत्‍मकथा में लिखा है कि 'अनबन इतनी बढ़ गई कि दोनों का एक छत के नीचे साथ रहना मुश्किल हो गया. और एक दिन मेनका को घर से बाहर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा.

अगले साल यानि कि 1983 में अकबर अहमद डंपी और संजय गांधी के अन्य पुराने साथियों के साथ मिलकर मेनका गांधी ने राष्‍ट्रीय संजय विचार मंच नाम से पार्टी बना ली. शुरूआती दौर में संजय विचार मंच से बड़ी संख्या में लोग जुड़े. मेनका गांधी की सभाओं मे भारी भीड़ होती थी. पर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस पार्टी को एक जीवनदान मिल गया. सहानुभूति वाली लहर में विपक्ष के बड़े -बड़े नेता चुनाव हार गए. 1984 का लोकसभा चुनाव मेनका गांधी ने राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से निर्दलीय लड़ा. उन्होंने नारा दिया कि गली गली में शोर है, राजीव गांधी चोर है. जाहिर है कि उस लहर में ये नारा काम नहीं करने वाला था. और मेनका गांधी को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 1988 में मेनका गांधी जनता दल में शामिल हो गईं. 1989 में पीलीभीत से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और सांसद बनीं. 

Advertisement

6-सुल्तानपुर से मेनका को बीजेपी ने टिकट देकर दांव खेल दिया

बीजेपी का दांव भी वरुण गांधी के लिए उल्टा पड़ गया. बीजेपी ने मेनका गांधी को सुल्तानपुर से टिकट दे दिया. उम्मीद की जा रही थी कि इस बार बीजेपी से मां-बेटे दोनों को टिकट नहीं मिलने वाला है. अगर ऐसा हुआ होता तो बहुत उम्मीद थी कि वे कांग्रेस बिना किसी शर्त के शामिल हो जाते. या ये भी हो सकता था कि वे निर्दलीय चुनाव लड़ जाते. पर ऐसा हुआ नहीं. अब जब मेनका गांधी को बीजेपी का टिकट मिल गया है तो उनका बिना शर्त कांग्रेस में जाने का कोई मतलब नहीं रह गया. इसका संदेश गलत जाता. बीजेपी ने ऐसा तीर चला दिया कि अब वरुण के पास कोई मौका नहीं बचता कि वे बीजेपी का प्रचार न करें.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement