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पंजाब में बीजेपी की अग्निपरीक्षा, क्या 3 लोकसभा सीटों से आगे बढ़ेगा जीत का आंकड़ा?

पंजाब में बीजेपी सबसे ताकतवर पार्टी बनने के लिए पिछले कुछ सालों मेंं कई जतन किए हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों में उसके साथ पुराना साथी अकाली दल भी नहीं है. इस बार पार्टी के लिए अग्निपरीक्षा है.

पीएम मोदी पटना साहिब में लंगर खिलाते पीएम मोदी पटना साहिब में लंगर खिलाते
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 16 मई 2024,
  • अपडेटेड 5:48 PM IST

बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में पंजाब से भी बहुत उम्मीदें पाल रखी हैं. हालांकि पंजाब में बीजेपी का अब तक सर्वेश्रेष्ठ प्रदर्शन 3 लोकसभा सीट जीतने का ही रहा है. 1998 और 2004 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी तीन-तीन सीटें जीतने में सफल हुई थी. पर इस बार पंजाब की कुल 13 सीटों पर बीजेपी पहली बार चुनाव लड़ रही है और अधिक की उम्मीद कर रही है. पंजाब की राजनीति में इस बार कोई गठबंधन नहीं है. सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी राजनीति अकेले ही कर रहे हैं. दशकों के साथी अकाली दल और बीजेपी का साथ इस बार नहीं है . यही हाल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का भी है. दिल्ली में एक साथ चुनाव लड़ रहीं ये दोनों पार्टियां पंजाब में एक दूसरे की विरोधी है. इस तरह राज्य में लोकसभा सीटों के लिए मुकाबला चार दलों के बीच हो रहा है. बीजेपी के लिए इस बार कई तरह के मौके बन रहे हैं तो दुष्वारियां भी कम नहीं हैं. 

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1-हिंदू वोटरों का समर्थन मिलने की कितनी उम्मीद 

पंजाब में 39 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है. पर बीजेपी को क्यों इसका लाभ नहीं मिलता, उसके पीछे की राजनीति को समझना होगा. दरअसल बीजेपी पंजाब में अब तक शिरोमणि अकाली दल के साथ थी. अकाली दल हमेशा से सिखों की पार्टी रही है. आजादी के पहले से ही देश में हिंदुओं की पार्टी कांग्रेस रही है.यही कारण रहा कि पंजाब की लुधियाना सीट कांग्रेस का गढ रही है, क्योंकि यहां हिंदू वोटरों की तादाद 65 फ़ीसदी से अधिक बताई जाती है.

बीजेपी पूरे देश में हिंदुओं की पार्टी बन गई पर पंजाब में शायद अब तक नहीं बन सकी क्योंकि उसका गठबंधन अकालियों के साथ था. इसके अलावा बीजेपी की नीति सिखों को भी हिंदुओं का एक पंथ मानने की रही है. हालांकि कुछ साल पहले आरएसएस ने भी सिखों के अलग अस्तित्व को स्वीकार कर लिया था. इसके बावजूद बीजेपी में सिखों को कभी अलग धर्म के रूप में नहीं देखा गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुस्लिम टोपी कभी नहीं लगाते पर साल दो साल में एक बार पगड़ी पहने उनकी फोटो जरूर आ जाती है. पटना साहिब में तो लंगर खिलाते हुए अभी हाल ही में वो नजर आए थे. बीजेपी नेताओं को उम्मीद है कि शिरोमणि अकाली दल से अलगाव के बाद हिंदुओं के वोट कांग्रेस की बजाए बीजेपी को ही आएंगे. विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी को लगता है कि राम मंदिर निर्माण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा जैसे मुद्दों को लेकर हिंदू वोटरों का झुकाव उसकी तरफ़ हो सकता है.

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2-क्या सिखों को लुभाने की कोशिश होगी कामयाब?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार सिखिज्म के प्रति अपनी श्रद्धा का प्रदर्शन करते रहते हैं. हर साल किसी गुरुद्वारे से पगड़ी बांधे उनकी तस्वीर आ ही जाती है. अभी हाल ही में वो श्रद्धालुओं को पटना साहिब में लंगर लंगर छकाते नजर आए थे. सिखों को लुभाने की रणनीति के तहत ही भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब में दर्जनों कद्दावर सिखों को पार्टी में शामिल किया है. बीजेपी ने चुनावों के ऐन पहले अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत तरनजीत सिंह संधू को भी पार्टी में शामिल किया. तरनजीत सिंह सिंधू के दादा तेज़ा सिंह समुंदरी आज़ादी के पूर्व सिखों के बड़े नेता हुआ करते थे, जिन्होंने गुरुद्वारा मूवमेंट और श्री गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के कामों में अहम भूमिका निभाई थी.बीजेपी ने उन्हें उम्मीदवार भी बनाया है. इसके अलावा बीजेपी के पास करतारपुर कॉरिडोर खोले जाने, चार साहबजादों के शहीदी दिवस को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने आदि फैसले के बलबूते ग्रामीण वोटरों को भी अपनी पहुंच बढ़ाने की उम्मीद कर रही है.

3- सुनील जाखड़ को क्यों करनी पड़ी किसान नेताओं से अपील

अभी 2 दिन पहले ही पंजाब बीजेपी के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कुछ ऐसा बयान दिया जिसका विश्लेषण करें तो यही समझ में आता है कि पंजाब में किसान अभी भी बीजेपी से नाराज हैं. सुनील जाखड़ ने कहा कि 10 सालों से बीजेपी सरकार किसानों को फसलों पर MSP बिना किसी रुकावट दे रही है. विरोधी पार्टियों द्वारा किसानों को मोहरा बनाया जा रहा है. उन्होंने किसानों नेताओं से अपील की कि वह बीजेपी का विरोध करें पर किसान विरोधी नीतियों के चलते पंजाब की आम आदमी पार्टी का भी विरोध करें. वह राज्य की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी पर भी जमकर बरसे. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक ही है. चंडीगढ़ में ही देख लो दोनों एक साथ है. जाहिर है कि अगर बीजेपी को किसानों का सपोर्ट मिल रहा होता तो सुनील जाखड़ को यह कहने की नौबत ही नहीं आती. मतलब साफ है कि अगर किसानों में इतनी नाराजगी है तो समझ लीजिए की बीजेपी के लिए 3 सीटों से ज्‍यादा जीतना मुश्किल है..

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4-पांच सीटों पर बहुकोणीय मुकाबला,  क्या बीजेपी के लिए बंधी उम्मीद

पंजाब में होने जा रहे लोकसभा चुनावों में इस बार कुल 13 सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबले हैं. पर पांच सीटें ऐसी हैं जहां बसपा के मजबूत कैंडिडेट और  कद्दावर निर्दलीयों की एंट्री से मुकाबला बहुकोणीय हो गया है. बहुकोणीय मुकाबले में बीजेपी को सीटों का फायदा होने की उम्मीद की जा सकती है. इन सीटों पर कई दिग्गजों जिनमें पूर्व सीएम चरनजीत सिंह चन्नी, पूर्व केंद्रीय मंत्री व पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल, पंजाब के तीन कैबिनेट मंत्रियों गुरमीत सिंह मीत हेयर, लालजीत सिंह भुल्लर व गुरमीत सिंह खुडि़्डयां के अलावा पूर्व मंत्री विजयइंदर सिंगला, बसपा के पंजाब इकाई के प्रमुख जसवीर सिंह गढ़ी, पूर्व विधायक जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू व पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा भी शामिल हैं. इन सीटों सीएम भगवंत मान का इलाका संगरूर, जालंधर, पंथक माने जाने वाली खडूर साहिब की सीट के अलावा आनंदपुर साहिब व बठिंडा जैसी हॉट सीटें प्रमुख रूप से शामिल हैं.

5- दलबदल कर बीजेपी में आने वाले विरोधी दलों के नेता कितना दिखाएंगे करिश्‍मा

किसानों के मुद्दे पर अकाली दल ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था. नाता तोड़ने के बाद बीजेपी की तमाम कोशिशों के बावजूद भी पार्टी को कोई ख़ास सफलता नहीं मिली. पिछले विधानसभा चुनाव में तो पार्टी को मात्र दो सीटें मिली थीं. शायद यही कारण है कि बीजेपी ने सभी दलों के नेताओं के लिए अपने दरवाजे खोल दिए. कांग्रेस राज में पंजाब के मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ तो बीजेपी में पहले ही आ गए थे हाल ही में लुधियाना से कांग्रेस के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू भी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. आम आदमी पार्टी के इकलौते सांसद सुशील कुमार रिंकू ने भी हाल ही में बीजेपी का दामन थाम लिया. उनके साथ ही जालंधर (पश्चिम) की आप विधायक शीतल अनगुरल भी उनके साथ बीजेपी में आ गईं. नौबत यहां तक आ गई कि आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज को यह कहना पड़ा कि बीजेपी पंजाब में 'ऑपरेशन लोटस' चला रही है.

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सवाल ये है कि विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल होने का दावा करने वाले राजनीतिक दल को इन लोगों के पार्टी में शामिल होने से क्या हासिल होगा, जबकि पंजाब में बीजेपी की राजनीतिक ज़मीन बहुत छोटी है? राजनीतिक विश्वलेषकों का कहना है कि वर्तमान स्थिति में राज्य में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का पलड़ा भारी दिख रहा है पर बीजेपी पूर्व कांग्रेसियों  रवनीत सिंह बिट्टू जैसे नेताओं को पार्टी में शामिल कराकर जनता को संदेश देना चाहती है कि बीजेपी को कमजोर समझने की कोई गलती न करे. रवनीत सिंह बिट्टू पूर्व कांग्रेसी नेता और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते हैं और तीन बार कांग्रेस पार्टी से सांसद रह चुके हैं.राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा के भाई फतेह जंग बाजवा, पूर्व मंत्री राज कुमार वेर्का, राणा गुरमीत सिंह सोधी, केवल सिंह ढिल्लो और अन्य कई कांग्रेस नेता अब बीजेपी के साथ हैं.

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