
देश में कुछ लाख लोगों को छोड़ दिया जाए तो हर कोई अपने को मध्य वर्ग का ही मानता है. ईएमआई पर मर्सिडिज लेने वाला शख्स से हो या दिल्ली में एक कमरे के मालिकाना हक वाला व्यक्ति हो सभी अपने को मध्य वर्ग का ही मानते हैं. जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है वो भी खुद को गरीब कहलाने की बजाए मध्य वर्ग का कहलाना ही पसंद करते हैं. इसी तरह जो टॉप टैक्स पेयर हैं वो भी खुद को अमीर बोलने की बजाए मध्य वर्ग का ही मानते हैं. इसके पीछे शायद एक कारण यह भी है महत्वपूर्ण है कि मध्य वर्ग की कोई सरकारी परिभाषा नहीं मौजदू है. भारतीय जनता पार्टी पिछले 11 सालों में गरीबों के लिए तमाम स्कीम्स ला चुकी है, जिसमें 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज, किसान सम्मान निधि, आयुष्मान भारत योजना आदि को खास तौर पर गिनाया जा सकता है. इसके बावजूद यह माना जाता है कि बीजेपी अमीरों और मध्य वर्ग के हितों का ध्यान रखने वाली पार्टी है. इस साल के बजट ने, जिसमें कर-भुगतान करने वाले वर्गों के लिए दशकों में सबसे बड़ी कर छूट दी गई, इस धारणा को और मजबूत कर दिया है. अब सवाल यह उठता है कि क्या बजट प्रावधानों के चलते दिल्ली का मध्य वर्ग विधानसभा चुनावों में वोटिंग करते हुए बीजेपी का ध्यान रखेगा? इस संबंध में अलग-अलग विचार हैं. आइये देखते हैं हकीकत क्या है?
कितनी संभावना मध्य वर्ग के पक्ष में हवा बनने की
यह कहना बेहद मुश्किल है कि इनकम टैक्स स्लैब को बढ़ाकर मोदी सरकार ने मध्य वर्ग का दिल जीत लिया है. क्योंकि हर राजनीतिक दल के अपने समर्थक हैं. विपक्ष के समर्थक वोटर्स पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. कोई भी पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि मध्य वर्ग के सारे वोट उसी के हैं.हर पार्टी को मध्यम वर्ग का कुछ समर्थन मिलता ही है, चाहे वह इसे किसी भी तरह परिभाषित करें. पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 37% लोकप्रिय वोट मिले थे, लेकिन यह मान लेना कि इनमें से अधिकतर मध्यम वर्ग के थे, गलत होगा. इतना ही नहीं अकसर यह कहा जाता है कि मध्यम वर्ग मतदान के दिन वोट डालने की बजाय छुट्टी का आनंद लेता है. हालांकि पिछले कुछ चुनावों से ये टेंडेंसी बदल रही है.मध्यवर्ग भी इसे अपने अधिकार के रूप में ले रहा है. और वोटिंग में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहा है. बजट पेश करने से एक दिन पहले, प्रधानमंत्री मोदी ने गरीबों और मध्यम वर्ग के लिए मां लक्ष्मी का आशीर्वाद मांगा. इससे यह स्पष्ट हुआ कि उनकी प्राथमिकता मध्यम वर्ग के लिए रियायतें देना थी, लेकिन उन्होंने राजनीतिक रूप से गरीबों को नजरअंदाज करने की गलती नहीं की.
हालांकि पीएम मोदी पहले वंचित, पीड़ित, शोषित वर्गों की सेवा की बात करते हैं और जिनका 2024 का चुनावी नारा GYAN (गरीब, युवा, अन्नदाता, नारी शक्ति) पर केंद्रित था, उन्होंने इस बार स्पष्ट रूप से मध्यम वर्ग को भी जोड़ा है. यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत है कि मध्यम वर्ग को संबोधित करना अब जरूरी हो गया है, भले ही यह पूरी तरह परिभाषित न हो.
बीजेपी सरकार की क्या मजबूरी?
केंद्र सरकार ने 2025 जो बजट पेश किया है उसके चलते माना जा रहा है कि नए टैक्स स्लैब से करीब तीन करोड़ करदाताओं को फायदा होगा.एक करोड़ लोग पूरी तरह से कर दायरे से बाहर हो जाएंगे.यह संख्या पूरे देश के लिए है. जो पूरे देश में 90 करोड़ मतदाताओं के लिहाज से कोई बहुत फायदेमंद नहीं दिख रहा है. अगर दिल्ली को भी ध्यान में रखें तो इस फैसले से डायरेक्ट कोई ऐसा वोट बैंक नहीं प्रभावित होने वाला है जिससे बीजेपी को फायदा मिल जाए. सवाल उठता है कि फिर बीजेपी ने ऐसा कदम उठाया ही क्यों ? मध्यम वर्ग को कर लाभ देने के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि मध्यम वर्ग को यह लगने लगा था कि सरकार हमेशा गरीबों को ही फायदा पहुंचा रही है. मध्यम वर्ग सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा सक्रिय रहता है. यह वर्ग भले ही वोट न डाले, लेकिन सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जरूर दिखाता है.इस तरह यह वर्ग माहौल बनाने में बड़ी भूमिका दिखाता है. 2026 तक भारत में 100 करोड़ स्मार्टफोन उपयोगकर्ता होंगे, जो चुनावों में डिजिटल चर्चा को प्रभावित करेंगे. इसलिए शायद बीजेपी ने यह सुनिश्चित किया कि मध्यम वर्ग इस बार बजट से नाराज न हों.
पर देश के लिए जरूरी
यह सिर्फ वोटों की राजनीति नहीं, बल्कि सरकार के समर्थन में एक सकारात्मक माहौल बनाने का प्रयास भी है.दिल्ली चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह एक दीर्घकालिक राजनीतिक कदम भी इसे मान सकते हैं.पर सबसे बड़ा कारण यह भी है कि देश का आर्थिक सर्वे में यह बात सामने आई है कि कंजंपशन लगातार घट रहा है. लोगों की खरीद शक्ति प्रभावित हुई है. जिसके चलते प्रोडक्शन भी प्रभावित हो सकता है. जनता के पास पैसा बचेगा तो वो खर्च होगा या निवेश होगा. सरकार को दोनों की जरूरत है. खर्च होता है तो प्रोडक्शन प्रभावित नहीं होगा. जमा होता है तो भी देश की अर्थव्यवस्था को ही मजबूती प्रदान करेगा.