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दलित सब कोटा पर सुप्रीम फैसले के खिलाफ क्या मोदी सरकार कोर्ट में अपील करेगी?

दलित वोटों के छिटकने के चलते 2024 के लोकसभा चुनावों में मिली शिकस्त के बाद बीजेपी के लिए बहुत विकट स्थिति उत्पन्न हो गई है. सुप्रीम कोर्ट के दलित सब कोटे वाले फैसले पर विरोध बढ़ता जा रहा है. बीजेपी इस मुद्दे को कैसे हैंडल करेगी?

क्या कोटे में कोटे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी केंद्र सरकार? क्या कोटे में कोटे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी केंद्र सरकार?
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 6:14 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल के 2 सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान और महाराष्ट्र में दलित राजनीति करने वाले आरपीआई के प्रमुख रामदास अठावले दलित सब कोटे पर सुप्रीम फैसले से खुश नहीं है. दोनों मंत्री इस फैसले को दलितों को बांटने वाला और आरक्षण को खत्म करने की साजिश जैसा बता रहे हैं. दूसरी तरफ एनडीए सहयोगियों में अधिकतर लोग ऐसे हैं जो इस फैसले से खुश हैं और इसका समर्थन भी कर रहे हैं. 

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समर्थन करने वालों में तेलुगुदेशम पार्टी सबसे ऊपर है. बिहार में हम पार्टी के अध्यक्ष और केंद्र में मंत्री जीतन राम मांझी ने हालांकि अभी कुछ बोला नहीं है पर माना जा रहा है कि इस फैसले से वो खुश हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बहुत पहले से दलित आरक्षण के सब कोटे के समर्थक रहे हैं. दलितों में महादलित को अलग आरक्षण का कॉन्सेप्ट उनका ही रहा है. भाजपा के सामने मुश्किल ये हो गई है कि वो इस फैसले का समर्थन करे या विरोध.

जिस तरह एक एक करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पार्टियां रुख अख्तियार कर रहीं हैं उससे लगता है कि बीजेपी को जल्द ही अपना स्टैंड क्लियर करना होगा. अगर ऐसा नहीं होता है तो बीजेपी का वोटर एक बार फिर भ्रमित होगा. बीजेपी का इस मुद्दे पर अभी तक क्लीयर स्टैंड न लेने के चलते दोतरफा मार झेलनी पड़ सकती है. एक तरफ तो दलितों को लगेगा कि बीजेपी इस फैसले के पीछे खड़ी है,दूसरे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की चुप्पी का फायदा उठाने से भी पार्टी वंचित हो सकती है.

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1-तेलंगाना और आंध्र में सब कोटे का समर्थन बीजेपी की मजबूरी

तेलंगाना में ये स्थिति बन रही है कि तेलंगाना कांग्रेस , और बीजेपी दोनों ही इस फैसले का सपोर्ट कर रही हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पहले ही बोल चुके हैं कि अब उनके राज्य में सभी भर्तियों में दलित सब कोटे के आधार पर आरक्षण दिया जाएगा.

भाजपा खुद तेलंगाना में ऐसे उप-कोटे की वकालत करती रही है. 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बराबर 17 में से आठ सीटें जीतने वाली बीजेपी ने राज्य में 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले ही दलित सब कोटे के प्रावधान का सपोर्ट किया था. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मडिगा समुदाय की उप-कोटा की लंबे समय से चली आ रही मांग पर गौर करने के लिए एक समिति के गठन की घोषणा की थी.

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एनडीए के साथी चंद्र बाबू नायडू कहते हैं कि , हम SC वर्गीकरण मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं. नायडू के बेटे और आंध्र प्रदेश के मंत्री नारा लोकेश ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, टीडीपी उप-वर्गीकरण के वादे के लिए प्रतिबद्ध है जो उसके चुनाव अभियान का हिस्सा था.जाहिर इन दोनों राज्यों में बीजेपी के लिए कोई मुश्किल नहीं है. 

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2-बिहार में चिराग को छोड़ सभी विरोध में 

अभी तक बीजेपी और कांग्रेस की ओर से सुप्रीम कोर्ट के दलित सब कोटे के फैसले पर ऑफिशियल स्टेटमेंट नहीं आया है. पर आम जनता के बीच जो संदेश जा रहा है वह यही है कि ये दोनों ही देश की प्रमुख पार्टियां कोटे में कोटा का समर्थन कर रही हैं. हालांकि दोनों ही के साथी दलों की राय अलग-अलग है.बिहार में बीजेपी का सहयोगी दल लोजपा (पासवान) के केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने दलितों में उप-वर्गीकरण के फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का फैसला लिया है. चिराग का कहना है कि आबादी और आय अनुसूचित जातियों के आरक्षण का आधार कभी नहीं रहा. सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, बिहार में चिराग की अपनी जाति पासवान की आबादी 5.31% है जो यादवों के बाद सबसे बड़ा जातीय समूह है. वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वर्ष 2008 में दलितों में महादलित जातियों का एक वर्ग तैयार किया. इसमें दलितों की छोटी-छोटी आबादी वाली जातियों के रखा गया, इसमें पासवान समुदाय को जगह नहीं दी गई. नीतीश ने महादलितों के उत्थान के लिए कई विशेष योजनाएं लागू कीं.जाहिर है जेडीयू इस फैसले के साथ है.एनडीए के एक और साथी दल हिंदुस्तान अवामी मोर्चा के नेता और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले पर अब तक अपना मुंह नहीं खोला है. दरअसल मांझी मुसहर जाति से हैं जिसकी बिहार में हिस्सेदारी 3% की है. मुसहर समाज दलितों में दलित हैं. शायद यही कारण था कि नीतीश ने मुसहर जाति को भी महादलितों की लिस्ट में शामिल किया था. जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मुसहर लोगों को काफी फायदा होने की उम्मीद है.राज्य की प्रमुख विपक्षी दल आरजेडी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध कर रही है. यही सब कारण मिलकर बीजेपी के लिए बिहार में विकट स्थिति बना रहे हैं.

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3-यूपी में अखिलेश की चुप्पी,  मायावती का बिगुल

उत्तर प्रदेश में एनडीए के 2 सहयोगी दलों निषाद पार्टी और सुभासपा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है.निषाद पार्टी के प्रमुख और योगी कैबिनेट में मंत्री संजय निषाद ने अपनी जाति को एससी लिस्ट में शामिल करने की मांग की है. वहीं सुभासपा प्रमुख और योगी सरकार में मंत्री ओपी राजभर ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी आरक्षण के अंदर अति पिछड़ा वर्ग के लिए अलग कैटेगरी बनाई जाए. दलित नेता और बीएसपी प्रमुख मायावती और उभरते हुए दलित नेता सांसद चंद्रशेखर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हर रोज कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं. 

4-बीजेपी में कन्फ्यूजन क्यों?

 बीजेपी के लिए मुश्किल यह है कि आरक्षण खत्म करने के प्रचार ने ही बीजेपी को इस लोकसभा चुनाव में 240 सीटों पर ला पटका है. खासकर उत्तर प्रदेश में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका लगा जहां वह 62 से घटकर 33 सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने संविधान बचाओ , आरक्षण बचाओ का इस तरह प्रचार किया कि दलित वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की ओर हो गया. जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को विपक्ष इसी तरह प्रचारित करेगा कि यह बीजेपी की साजिश है. उत्तर प्रदेश की पूर्व चीफ मिनिस्टर और दलितों की सबसे लोकप्रिय नेता मायावती ने सोमवार को कुछ ऐसी ही बातें की हैं. उन्होंने कहा है कि दरअसल कोर्ट के मार्फत आरक्षण खत्म करने की साजिश हो रही है. उन्होंने सीधे इसके पीछे केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी बीजेपी का नाम लिया.उन्होंने बीजेपी का नाम लेकर कहा कि उसकी मंशा आरक्षण खत्म करने की है, इसीलिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में उप वर्गीकरण के खिलाफ दलीलें नहीं दीं बल्कि इसका समर्थन किया. मायावती ने बीजेपी के साथ-साथ अपनी धुर विरोधी समाजवादी पार्टी को भी टार्गेट पर लिया. यहीं नहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को भी आरक्षण विरोधी बताया. उनका कहना है कि आम आदमी पार्टी पंजाब की सत्ताधारी पार्टी है जहां से मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. कहा, बीजेपी आरक्षण को निष्क्रिय और निष्प्रभावी बनाने और अंततः इसे समाप्त करने पर आमादा है.बीजेपी आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है. जाहिर मायावती जो बातें कर रही हैं वही बातें कल को इंडिया गठबंधन के लोग भी कहेंगे. आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जबरदस्त विरोध किया है.

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भारतीय जनता पार्टी शायद इन्हीं बातों को लेकर पशोपेश में है और अब तक दलित सब कोटा पर कोई ऑफिशियल स्टेटेमेंट नहीं दे रही है. कांग्रेस भी संभवतया बीजेपी के रुख का इंतजार कर रही है. कांग्रेस के 2 मुख्यमंत्रियों ने दलित सब कोटे का स्वागत किया है. तेलंगाना और कर्नाटक इसे लागू करने की तैयारी कर रहे हैं. फिर भी कांग्रेस इसका विरोध कर सकती है. बीजेपी समर्थक ट्वीटर हैंडलों में एकरूपता नहीं देखने को मिल रही है. बीजेपी के समर्थक दिलीप मंडल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लगातार विरोध कर रहे हैं. वहीं आरएसएस की मैगजीन पॉचजन्य का ट्वीटर हैंडल लगातार इस फैसले का समर्थन कर रहा है.

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