
Google से मैंने अंग्रेजी में जानना चाहा- पुरुष जिन औरतों से प्यार का दावा करते हैं, उन्हें ही क्यों मारते हैं.
स्क्रीन पर पहली चीज थी- हेल्प इज एवलेबल! साथ में एक नंबर, जिसपर कॉल करके हिंदी-अंग्रेजी-मराठी में बता सकें कि आपका पार्टनर आपको पीट रहा है, और शायद कुछ मिनटों-दिनों या महीनों में आपकी हत्या भी कर दे. कॉल करके टटोलने की इच्छा को जैसे-तैसे दबाकर मैं आगे बढ़ गई.
इसी 25 नवंबर को ‘इंटरनेशनल डे फॉर इलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट वीमन’ है.
भारी-भरकम नाम-वाला दिन. आंसुओं-चीखों और खून से सना हुआ. बीते साल भी इस दिन कई रिपोर्ट्स आई थीं. कई क्रांतिवीरों ने खारे पानी का समंदर रच दिया, जिसमें डुबकी लगा-लगाकर वे ‘हाय, औरत, हाय बेचारी’ चिल्ला रहे थे. कई सजीले लोग मुट्ठियां कसे धिक्कार-पुरुष के नारे लगा रहे थे. इस साल भी यही होगा. और उसके अगले साल भी. जब तक कयामत न आ जाए.
हो तो ये भी सकता है कि जिस मिनट धरती पर जलजला आया हो, ठीक उसी मिनट कोई मर्द अपनी प्रेमिका का गला घोंट रहा हो. कोई शौहर रोज खाना पकाकर प्यार से परोसती अपनी बीवी के हलक में जहर उड़ेल रहा हो. कयामत आएगी, दुनिया खत्म हो जाएगी, लेकिन उससे कुछ पहले दुनिया की तमाम औरतें खत्म हो चुकी होंगी.
डायनोसोर अंतरिक्ष से एक उल्का पिंड गिरने से गायब हुए थे. औरत नाम की स्पीशीज अंतरिक्ष के पत्थर से नहीं, अपने ही साथियों के हाथ खत्म होगी.
खैर! आंसू-कपासू छोड़कर आंकड़े देखते हैं. UN का एक और शोध कहता है कि हर साल पूरी दुनिया में जो 5 हजार लड़कियां ऑनर किलिंग का शिकार होती हैं, उनमें से 1 हजार लड़कियां भारतीय हैं. यानी हर 5 में से 1. हम मार-कुटाई का प्रतिशत थोड़ा और बढ़ा सकते हैं, कम से कम आधा हिस्सा तो हमारा हो.
एक ब्रिटिश वेबसाइट है- काउंटिंग डेड वीमन. इसमें शुरू से लेकर आखिर (आखिर तक मैं पहुंच नहीं सकी) तक ब्रिटेन में उन हत्याओं की खबरें हैं, जिसमें एक औरत को किसी मर्द ने मारा. ज्यादातर प्रेमियों या पतियों ने.
एक और प्रजाति है- एक्स नाम की. ये साथ दे तो नहीं पाते, लेकिन बैताल की तरह पीठ पर जरूर सवार रहते हैं.
तो वेबसाइट में एक्स ने की वाई की हत्या, जैसी भी न्यूज दिखेगी. लंदन की भी. मेनचेस्टर की भी. ब्रिटेन के उन गांवों की भी, जहां घोड़े की लीद सने हाथों के साथ भी औरतें सो जाती हैं. और उस ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट की भी, जहां पैर-हाथों की अंगुलियां रेशमी बनाने के लिए भी अलग-अलग क्रीम खरीदी जाती हैं. लेकिन चाहे गांव हो, या शहर- औरत तो औरत ही रहेगी.
वेबसाइट में तमाम मुर्दा औरतों की खबरों के साथ पूछा गया- कैन यू गिव मी लिंक टू काउंटिंग डेड मेन?
चलिए, जान से मारना थोड़ी ज्यादा ही ज्यादती है. मामले को थोड़ा हल्का करते हैं, कुछ ऐसा जो आपको पारा-पड़ोस का लगे. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने एक स्टडी की, जिसमें औरतों से उनके शौहरों की मारपीट की आदत के बारे में पूछा गया.
अंचरे से चेहरे की ओट करती लगभग 51% पत्नियों ने माना कि पतियों का उन्हें पीटना सही है.
ज्यादातर को लगता है कि रोटी सख्त बने, या पुलाव में मटर ज्यादा गल जाएं तो शौहर को गुस्सा आना ही चाहिए. कुछ ने तो ये भी मान लिया कि संबंध बनाने से मना करने वाली बीवियों की भी भरदम कुटाई होनी चाहिए.
गौर कीजिए- बताने-वालियां खुद औरतें हैं. जो पिटती हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे हर दो-चार साल में यही आंकड़े लाता है. बिल्कुल इन्हीं सवालों- इन्हीं जवाबों के साथ. मर्दों से कोई सवाल नहीं होता. पत्नियों-मांओं से पूछकर पक्का कर लिया जाता है कि औरतों को पिटना अच्छा लगता है. बिल्कुल ऐसे ही जैसे नई बहू को जबरन गुलाबजामुन खिलाकर कह दिया जाए कि इसे मीठा बहुत पसंद है.
औरत-कुटाई की मोहरबंदी.
बड़े मनोवैज्ञानिक, बड़े शोध भी इस सील को पक्का ही करते रहे. लंदन की ‘द रॉयल सोसायटी’ मैगजीन ने दावा किया कि औरतों को मजबूत साथी भाते हैं. वो खुद चाहे जितनी बहादुर हो, उसे खुद से ज्यादा मजबूत मर्द ही पसंद आएगा. मजबूत माने, संवेदनशील, स्कॉलर या कविताप्रेमी नहीं- वह जिसके कंधे बैल जैसे पुष्ठ और आंखें बाज जैसी चौकन्नी हों. अब ये मजबूती साबित कैसे होगी? बाकियों को हराकर या औरत को पीटकर. दूसरा रास्ता आसान है, और लज्जत से भरा हुआ भी. पीटते-पिटते रिश्ता बन भी जाता है.
प्राचीन मेसोपोटामिया (आज जहां सीरिया और इराक जैसे देश हैं) में ईसा पूर्व शासक हम्मुराबी ने दुनिया को खत्म होने से बचाने के लिए स्त्री पर लगाम कसने की बात की. लगाम-कसाई के सिद्धांत में मारपीट को सबसे जरूरी बताया गया.
पुरुष चाहे जितनी प्रेमिकाएं रखें, चाहे साल में एकाध बार पत्नी से मिले, लेकिन पत्नी को हर हाल में उसकी होकर रहना है. इसमें जरा भी चूक हो, तो उसे भारी पत्थर से बांधकर नदी में डुबो दिया जाए. इसके अलावा औरत चाहे जितनी सादी हो, बीच-बीच में उसकी कुटौवल जरूर होती रहे ताकि वो कभी बिगड़े न.
पिटी-पिटाई इस स्त्री को जायदाद और घोड़े-गाड़ी का सुख देने की बात भी इस राजा ने कही. ये बातें 'कोड ऑफ हम्मुराबी' के नाम से संजोकर रखी गईं.
खैर! कई 11 मिनट बीच चुके. जाते-जाते एक मजेदार बात! दो दिन पहले एक दोस्त ने श्रद्धा हत्याकांड पर हैरानगी जताते हुए कह दिया- ‘पिक्सी कट बाल और होंठ पर पियर्सिंग कराई लड़कियां भी पिटती हैं! यकीन नहीं होता!’
ठीक यही शक साल 2020 में मैक्सिकन राष्ट्रपति एंड्रीस मेनुअल लोपेज ने भी जताया था, जब लॉकडाउन के दौर में औरतें काली पड़ी आंखों और जख्मी गालों की शिकायत करने लगी थीं. एक के बाद एक कई हत्याएं भी हुईं. तब राष्ट्रपति ने कहा- ताज्जुब है. कहीं ये फॉल्स केस तो नहीं!