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महिला आरक्षण बिल: OBC को छोड़ क्या मोदी के दबाव के आगे झुक गया विपक्ष?

तेजस्वी यादव की एक मजबूरी जरूर थी कि आरजेडी के पास लोक सभा में एक भी सांसद नहीं है, लेकिन जो बातें उनकी तरफ से अब शुरू की गयी हैं, पहले भी तो की जा सकती थीं - विपक्ष के पास कोई विकल्प ही नहीं बचा था या फिर वो बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दबाव में झुक गया?

महिला आरक्षण बिल पर तेजस्वी यादव अब क्यों आक्रामक हो रहे हैं? महिला आरक्षण बिल पर तेजस्वी यादव अब क्यों आक्रामक हो रहे हैं?
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 21 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 7:46 PM IST

ये तो नहीं कह सकते कि तेजस्वी यादव महिला आरक्षण बिल को लेकर चुप थे, लेकिन अब जो बोल रहे हैं, वैसा तो पहले नहीं कहा. कम से कम हाल फिलहाल तो ईंट से ईंट बजाने वाली बात उनके मुंह से सुनने को तो नहीं ही मिली थी. 

जो तल्ख तेवर तेजस्वी यादव ने OBC के लिए महिला आरक्षण बिल को लेकर अभी दिखाया है, एक बार उनके पिता लालू यादव ने जरूर जनगणना का बहिष्कार करने की धमकी दी थी. आरजेडी नेता लालू यादव ने कहा था कि अगर केंद्र की मोदी सरकार ने जातीय जनगणना नहीं कराया तो पिछड़े वर्ग के लोग देश की जनगणना का सीधे सीधे बहिष्कार कर देंगे. हालांकि, ये बात बिहार में जातीय सर्वे कराये जाने के पहले की है. 

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महिला आरक्षण बिल के लोक सभा में पास होने से पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने संसद में OBC महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण देने की मांग संसद में रख दी थी. कांग्रेस नेतृत्व का ये रुख भी पहले जैसा नहीं था. समझा गया कि कांग्रेस ने विपक्षी गठबंधन INDIA को मजबूत करने के लिए मुद्दे से बैकफुट पर चले जाने का फैसला किया है.

ये ठीक है कि आरजेडी के पास लोक सभा में एक भी सांसद नहीं है लेकिन जो बातें बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की तरफ से अब शुरू की गयी हैं, पहले भी की जा सकती थी - क्या विपक्ष बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दबाव में झुक गया या विपक्ष के पास कोई विकल्प बचा ही नहीं था?

विपक्ष के सामने ऐसी भी क्या मजबूरी थी?

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सोशल साइट X पर तेजस्वी यादव ने अपनी तरफ से बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगाह करने की कोशिश की है, 'OBC लड़ाका वर्ग है... मोदी सरकार अच्छे से जान लें अगर बीजेपी ने देश की 60 फीसदी ओबीसी आबादी का हक खाने का दुस्साहस किया तो ओबीसी इनकी ईंट से ईंट बजा देगा.'

और महिला आरक्षण बिल को लेकर आगे लिखते हैं, 'हमारी दशकों से मांग रही है कि महिला आरक्षण 33 फीसदी नहीं, बल्कि 50 फीसदी हो और इसे तुरंत लागू किया जाये... इसमें SC/ST, OBC और अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण रहे.'

महिला आरक्षण बिल पास होने से पहले तेजस्वी का लहजा बिलकुल अलग था. तब वो पूरा समर्थन देने की बात कर रहे हैं, ये कहते हुए कि वो चाहते हैं कि बिल में हर समाज की महिलाओं के लिए आरक्षित सीट हो. 

न्यूज एजेंसी ANI से बात करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा था, 'ये बिल पास आज हो जाएगा... लेकिन कब लागू होगा इसका पता नहीं है.' 

क्या वो यूं ही बस बयान दे रहे थे? क्या उनको ये अंदाजा नहीं था कि महिला आरक्षण बिल वास्तव में पास हो पाएगा? 

जो बिल पास हुआ है, उसमें अलग से OBC आरक्षण का विकल्प नहीं है. कांग्रेस भी ये जानती थी. कांग्रेस को सपोर्ट करना था. क्योंकि बिल से भावनात्मक लगाव था, लिहाजा सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने ओबीसी आरक्षण की मांग रख दी. क्या कांग्रेस और आरजेडी में इस मुद्दे पर पहले बात नहीं हुई थी?

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सवाल ये है कि महिला आरक्षण बिल में यदि OBC नहीं हैं, और ये अभी लागू भी नहीं हो रहा तो विपक्ष ने इसका समर्थन क्‍यों किया? 

OBC को लेकर चुनावी मुद्दा भी बनाया जा सकता था?

ये भी तो हो सकता था कि विपक्ष महिला आरक्षण बिल का समर्थन नहीं करता. वैसे तो बीजेपी अपने बूते भी पास करा ही लेती, लेकिन तब बाकियों के समर्थन की बात तो नहीं ही होती. 

ऐसी सूरत में विपक्ष की तरफ से - इस बिल का विरोध चुनावी मुद्दा भी तो बनाया जा सकता था कि भाजपा ओबीसी विरोधी है और हम चुनाव जीतकर इसे लागू करेंगे. 

महिला आरक्षण बिल के जरिये विपक्ष की तरफ से कांग्रेस ने ओबीसी का मुद्दा उठाया तो है, लेकिन वे चाहते तो इस बिल का विरोध करते हुए विपक्ष की ओर से OBC आरक्षण को एक बड़ा चुनावी मुद्दा भी बनाया जा सकता था. 

बीजेपी के जाल में क्यों फंस गया विपक्ष?

चुनाव के बाद ही परिसीमन होना है और जनगणना भी तभी होनी है. बिल के बारे में बता भी दिया गया था कि यह कानून बनता है तो 2029 के चुनाव पर ही लागू हो पाएगा. ऐसे में बीजेपी को सरकार में रहते इसे पास करवाकर श्रेय लेने की जल्‍दबाजी थी लेकिन विपक्ष इसका हिस्‍सा क्‍यों बना?

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विपक्ष में होने के नाते विरोध का तो हक बनता था. जब आरजेडी सत्ता में साझीदार थी तो विरोध किया - लेकिन अब विपक्ष में हैं तो कांग्रेस पर भी दबाव नहीं बनाया और चुपचाप पास होने दिया. चाहते तो अखिलेश यादव के जरिये भी कोशिश कर सकते थे. महिला आरक्षण बिल के शुरू से विरोधी भी तो ये ही दोनों रहे हैं.

अचानक स्टैंड क्यों बदलना पड़ा?

अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव चाहे होते तो मिल कर कांग्रेस नेतृत्व पर वैसे ही दबाव बना सकते थे, जैसे दिल्ली सेवा बिल को लेकर अरविंद केजरीवाल ने किया था. अरविंद केजरीवाल की ही तरह तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव भी तो INDIA गठबंधन का हिस्सा हैं. 

सपा, राजद जैसी पार्टियां तो बिल का विरोध करके अपने पुराने स्‍टैंड पर कायम रह ही सकती थीं. क्या वे असदुद्दीन ओवैसी जैसा स्टैंड नहीं ले सकती थीं? ये ठीक है कि AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी के बिल के खिलाफ वोट देने भर से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है - लेकिन इतिहास में ये तो दर्ज हो ही गया कि ओवैसी की पार्टी ने महिला आरक्षण बिल का विरोध किया था. 

जिस मजबूती के साथ असदुद्दीन ओवैसी अपने वोटर से मुस्लिम महिलाओं के लिए महिला आरक्षण के विरोध की बात कहेंगे - क्या तेजस्वी यादव जैसे नेता अपने मतदाताओं से और उतनी ही शिद्दत से ये बात कह पाएंगे?

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