
योगी आदित्यनाथ को लोकसभा चुनावों में बीजेपी के खराब प्रदर्शन को लेकर घेरने की कोशिशें जारी हैं. योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक विरोधी हद से ज्यादा सक्रिय हो गये हैं. वो अपने हिसाब से विरोध को काउंटर करने की कोशिश कर तो रहे हैं, लेकिन मामला करीब करीब बेकाबू लगने लगा है.
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने तरीके से बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेतृत्व को ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जो हो चुका है, उसे भूलकर आगे की तैयारी में जुट जाना चाहिये. बीती बातों को तो बदला नहीं जा सकता, लिहाजा आने वाले चुनावों की तैयारी करनी चाहिये.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में हुई बैठक में योगी आदित्यनाथ ने कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए सभी को अभी से सक्रिय होना होगा - लेकिन हार की समीक्षा के दौरान सरकार और संगठन की तुलना पेश करके डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विरोध की आवाज को और ज्यादा हवा दे दी है.
योगी आदित्यनाथ ने सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ाने के साथ ही हर तरह की अफवाहों को तत्काल प्रभाव से खंडन करने की जरूरत बताई थी, लेकिन अब तो केशव प्रसाद मौर्य के दिल्ली दौरे को लेकर भी अलग अलग तरह की चर्चाएं होने लगी हैं, जिससे यूपी के राजनीतिक हालात अचानक गंभीर लगने लगे हैं.
ऐसे हालात में सरवाइवल ट्रिक्स की जरूरत होती है. वैसे तो योगी आदित्यनाथ के पास ऐसे ट्रिक्स का खजाना है, जिसका बरसों से वो इस्तेमाल करते आये हैं - लेकिन एनकाउंटर पॉलिटिक्स हर बार कारगर नुस्खा साबित हो ही, ये जरूरी भी तो नहीं है.
कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करना होगा
हार की समीक्षा वाली मीटिंग में योगी आदित्यनाथ ने सांसदों और विधायकों के साथ साथ जिला पंचायत अध्यक्ष, महापौर और पार्षदों सहित बीजेपी कार्यकर्ताओं का नाम लेकर कहा कि वे आने वाले चुनावों के लिए मुस्तैदी से मोर्चे पर डट जायें, और बोले, हमें एक बार फिर प्रदेश में भाजपा का परचम लहराना है.
बीजेपी के अति आत्मविश्वास को भी हार की वजह बताते हुए योगी आदित्यनाथ ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि किसी भी स्थिति में बैकफुट पर आने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आपने अपना काम बखूबी किया है.
बीजेपी की उसी बैठक में यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने एक ऐसी बात बोल दी जिससे अलग हड़कंप मचा हुआ है. केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है.
एकबारगी तो ऐसा लगा कि केशव प्रसाद मौर्य भी योगी आदित्यनाथ की ही तरह कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनका तो निशाना कहीं और ही था. उनकी बातों से तो ये मतलब भी निकलता है कि योगी आदित्यनाथ की 'अति-आत्मविश्वास' वाली बात का वो काउंटर करने की कोशिश कर रहे हैं.
ध्यान देकर समझें तो केशव प्रसाद मौर्य अपने हिसाब से यूपी बीजेपी और यूपी सरकार की तुलना कर रहे हैं, और ये बता रहे हैं कि पार्टी बड़ी है, सरकार नहीं. सरकार से आशय यूपी सरकार से ही है, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं.
निश्चित रूप से केशव प्रसाद मौर्य ने ये बात समीक्षा बैठक में कही है, और ये भी मान लेते हैं कि दोनो की पुरानी अदावत ऐसी परिस्थितियां सामने लाती रहती है - लेकिन असल बात तो ये है कि केशव प्रसाद मौर्य ने जो बात कही है, वो बहुतों के मन की बात है.
ऐसी बातें जगह जगह सुनने को मिल रही हैं कि संगठन पर हावी है. संगठन के लोगों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती. नौकरशाही हर जगह हावी है, और जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों की कहीं भी पूछ नहीं रह गई है.
दरअसल, ये सब ही योगी आदित्यनाथ की कमजोर कड़ियां हैं, जिन्हें जितना जल्दी संभव हो उनको दुरुस्त करने की जरूरत है. बीजेपी एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा है, जिसमें ये समझाने की कोशिश की है कि यूपी के लोग सरकार से क्यों नाराज हैं. देवेंद्र प्रताप सिंह ने लिखा है, सारी उपलब्धियों के बावजूद क्यों हम लोकसभा 2024 हारे हैं... अपेक्षित परिणाम क्यों नहीं आए? क्योंकि नौकरशाही अराजकता की सीमा तक चली गई है.
बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद का भी कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार पर नौकरशाही हावी है. संजय निषाद सवाल उठाते हुए कहते हैं, आप बुलडोजर चलवाएंगे, घर गिराएंगे, तो मतदाता वोट करेगा क्या?
और संजय निषाद का सबसे गंभीर आरोप है, समाजवादी पार्टी के समय भर्ती हुए पुलिसकर्मी और अधिकारी अब बीजेपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ काम कर रहे हैं, प्रशासन बनाम कार्यकर्ता की जंग का असली कारण है.
योगी आदित्यनाथ के विरोधियों की रणनीति है कि अफसरों को टारगेट करो, बोलो अफसर काम नहीं कर रहे हैं - और फिर दबी जबान ये भी फैला दो कि योगी आदित्यनाथ अफसरों के भरोसे ही सरकार चलाते हैं - कुल मिलाकर बताया तो यही जा रहा है कि सरकार कोई काम ही नहीं कर रही है.
यही वजह है कि योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक विरोधियों ने उनको टारगेट करने के लिए हमेशा ही अफसरों का कंधा इस्तेमाल किया है. अफसरों के बहाने असल में वे योगी आदित्यानाथ को ही टारगेट करते आ रहे हैं. जैसा अभी हो रहा है, कोविड के वक्त भी यही सब हो रहा था.
अब समय आ गया है कि योगी आदित्यनाथ ऐसी बातों का पता लगायें, और उसके माफिक तत्काल एक्शन लें - और हां, सबसे जरूरी बात, अफसरों की जगह राजनीतिक सलाहकारों की टीम बनानी होगी, तभी बात बनेगी.
भूल सुधार की हमेशा गुंजाइश रहती है, और कई बार ये करना जरूरी होता है
योगी आदित्यनाथ को पता लगाना चाहिये कि कहां चूक हो रही है, और फौरन ही उसे ठीक करने की कोशिश करनी चाहिये. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तपस्या में कमी रह जाने की बात करते हुए कृषि कानूनों को वापस ले सकते हैं तो योगी आदित्यनाथ भी ऐसा कर सकते हैं.
योगी आदित्यनाथ की तरफ से भी ऐसी कोशिशें होने लगी हैं, लेकिन ऐसा हर नाजुक मोड़ को मालूम कर चीजों को दुरुस्त करना होगा.
1. योगी आदित्यनाथ को लिखे पत्र में बीजेपी एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा था, 2027 का जो चुनाव है... उसमें सफलता हासिल करने के लिए हमारी सरकार को डिजिटल अटेंडेंस का आदेश वापस लेना होगा.
अब बीजेपी एमएलसी के पत्र का असर हो या कुछ और, लेकिन शिक्षकों के डिजिटल अटेंडेंस का आदेश दो महीने के लिए होल्ड कर लेने सरकार की मुश्किलें कम तो होंगी ही. लेकिन दो महीन बाद ऐसे ही लागू कर देने से कुछ नहीं होगा, ऐसा करने से पहले शिक्षकों ने डिजिटल अटेंडेंस की राह में जो मुश्किलें बताई हैं, पहले उनको दूर करना होगा.
2. यूपी सरकार के एक और फैसले ने लोगों को राहत दी है. लखनऊ के कुकरैल नदी के किनारे घरों पर लाल निशान लगाये जाने के बाद लोग परेशान हो गये थे, क्योंकि वहां बुलडोजर चलाये जाने की बात होने लगी थी.
बहरहाल, अब अफसरों को नया निर्देश मिला है कि पंतनगर, खुर्रमनगर और अबरार नगर में कुकरैल नदी के किनारे घर नहीं तोड़े जाएंगे.
3. और ऐसे ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि मीटर चेकिंग या बकाया वसूली के नाम पर आम उपभोक्ता को परेशान नहीं किया जाएगा.
ऐसा भी नहीं है कि योगी आदित्यनाथ को ये चुनौतियां पहली बार सामने आई हैं. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भी उनकी मुश्किलें बढ़ी हुई थीं, लेकिन जैसे तैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मिल कर 'मार्गदर्शन' लिये और पार पा लिये, लेकिन बार बार ऐसे नहीं चलता.
जैसे चुनावी जीत हर सवाल का जबाव होती है, वैसे ही हार सवालों की बौछार कराते हैं. योगी आदित्यनाथ का सियासी सफर एक बार फिर उसी मोड़ पर आ चुका है - और लखनऊ का झगड़ा दिल्ली पहुंच चुका है.