यूपी के मंत्री सुरेश राणा दलित के घर डिनर के नाम पर दिखावा करने के आरोपों में घिर गए हैं. बीजेपी के दलित संपर्क अभियान के तहत सुरेश राणा ने दलित के घर भोज तो किया लेकिन ये खाना बाहर से बनकर आया था. हालांकि जब ये सवाल उठा कि सुरेश राणा तो बस रस्म अदायगी के लिए ही दलित के घर गए थे तो उन्होंने सामने आकर सफाई दी कि उनके साथ कई लोग थे इसलिए बाहर से खाने की व्यवस्था करनी पड़ी. राणा ये भी कह रहे हैं कि खाने का व्यवस्थापक एक दलित ही है. लेकिन सवाल उठ रहा है कि इस तरह दलितों के साथ मेलजोल होगा या फिर ये एक राजनीतिक इवेंट भर बनकर रह जाएगा? दलितों के घर जाने और भोज करने का आइडिया खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है, लेकिन क्या एक निजी संपर्क अभियान की रणनीति को राजनीतिक रसूख के अभियान में बदलने का प्रयास हुआ? और क्या ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दलितों को बराबरी का दर्जा देने की मानसिकता अभी भी नदारद है?