तो सरकारों ने करणी सेना के आगे घुटने टेक दिए. एक फिल्म की रिलीज़ के लिए देश करणी सेना का बंधक बन गया और देश की राजनीतिक पार्टियों के नेता, देश के आम लोगों की सुरक्षा को ताक पर रख कर, अपने अपने वोट बैंक को साधने में जुटे रहे. स्कूल जाने वाले छोटे छोटे बच्चों से भरी बस पर पत्थर फेंक कर करणी सेना अपनी बहादुरी दिखाती रही. गणतंत्र दिवस के चौबीस घंटे पहले, जिस रोज़ दस देशों के प्रधान राजधानी दिल्ली में बैठे हैं – दिल्ली करणी सेना के बवाल को रोकने के लिए छावनी बनी हुई है. जो सुरक्षा बल आतंकी खतरे से निपटने के लिए तैनात होने चाहिएं थे, वो सिनेमाघरों के बाहर खड़े हैं ताकि फिल्म शांतिपूर्वक चल सके. ये दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए शर्म की बात है या नहीं ?