देश में पदों के मुकाबले बेरोजगारों की कहानी, एक अनार, सौ बीमार जैसी होती जा रही है. तब क्या सरकारें नौकरी दे नहीं पातीं तो नौकरी पाने को ही इतना कठिन बना देती हैं कि नौजवान जूझते रहें? क्या प्राइवेट नौकरी में भी आरक्षण का फॉर्मूला जिम्मेदारियों से बचने का एक टोपी ट्रांसफर है? जब खाली पद सिस्टम में मौजूद रहते हैं तो क्यों सरकारें अस्थाई नौकरी देकर युवाओं की जिंदगी को मुश्किल करती हैं? सवाल ये भी कि चयन करके बेरोजगार छोड़ देने वाली सरकारी बीमारी का इलाज कब होगा? देखें दस्तक, रोहित सरदाना के साथ.