आतंकवाद पर नीति बनेगी या बस प्रलाप होगा? यह सवाल अब वाकई देश का हर नागरिक पूछ रहा है. आखिर कब तक हम आतंकी हमले में मरते सैनिकों की लाशों के मार्मिक दृश्य देखते रहेंगे.