एक अंजाना डर, एक अंजाना ख़ौफ़, तभी तक होता है जब तक वो गुज़र न जाए. शायद इसीलिए हम में से किसी ने कभी लाश को डरते हुए नहीं देखा. पिछले 40 घंटों से जिस ख़ौफ़ ने हमें गिरफ़्तार कर रखा था, जिस सच्चाई से हम नज़रें नहीं मिलाना चाह रहे थे, वो सच्चाई सामने आ ही गई. वो ख़ौफ़ ख़त्म हो गया. अब तो बस उसके खो जाने का अहसास तो कम बाक़ी है, जो हुआ वो न हुआ होता ये ग़म बाक़ी है. देखें वारदात.