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पर्यटकों के लिए खुला 'कुंवारा किला', गजब की इसकी खूबसूरती, अब तक यहां नहीं हुआ कोई युद्ध

अलवर के बाला किले को आम जनता के लिए खोल दिया गया है. अरावली की वादियों से घिरे के इस किले से कोई युद्ध नहीं लड़ा गया. इसलिए किले को 'कुंवारा किला' भी कहा जाता है. बाला किला 300 मीटर की चट्टानों के शीर्ष पर स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि इस किले में बाबर ने रात गुजारी थी. जहांगीर भी इस किले में रह चुका है.

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हिमांशु शर्मा
  • अलवर ,
  • 14 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 6:54 PM IST

राजस्थान के अलवर में मौजूद कुंवारे किले को आम जनता के लिए खोल दिया गया है. यह किला लंबे समय से लोगों के लिए बंद पड़ा था. पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के निदेशक डॉक्टर महेंद्र खड़गावत ने यह आदेश जारी किए. अब देश दुनिया के पर्यटक अलवर के बाला किला की खूबसूरती को निहार सकेंगे. 

अरावली की वादियों से घिरे के इस किले से कोई युद्ध नहीं लड़ा गया. इसलिए किले को 'कुंवारा किला' भी कहा जाता है. बाला किला 300 मीटर की चट्टानों के शीर्ष पर स्थित है. इस किले से अलवर शहर का भव्य नजारा दिखाई देता है. ऐसा कहा जाता है कि इस किले में बाबर ने रात गुजारी थी और जहांगीर भी इस किले में रह चुके है. यह किला मुगल व राजपूत शैली से बना है. 

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किला मुगल व राजपूत शैली से बना है

 

इस किले से कोई युद्ध नहीं लड़ा गया

इस किले में प्रवेश के रास्ते में चार दरवाजे पढ़ते हैं. पहाड़ी की चोटी पर यह किला अपनी खूबसूरती के लिए खास पहचान रखता है. चीन के बाद सबसे लंबी दीवार राजस्थान के कुंभलगढ़ जिले की है. इसके बाद अलवर के बाला किले का नंबर आता है. पर्यटन व पुरातत्व विभाग की तरफ से इस किले की मरम्मत करवाई गई है और इसे नया रंग रूप दिया गया है. 

क्या है बाला किले का इतिहास

आमेर नरेश काकिल के द्वितीय पुत्र अलघुरायजी ने संवत 1108 (1049ई) में पहाड़ी की छोटी गढ़ी बनाकर किले का निर्माण किया था. 13वीं शताब्दी में निकुंभों द्वारा गढ़ी में चतुर्भुज देवी के मंदिर का बनाया गया. अलावल खान द्वारा 15वीं शताब्दी में इस गढ़ी की प्राचीर बनवाकर इसको दुर्गा के रूप में पहचान दी गई. 

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किले से अलवर शहर का भव्य नजारा दिखाई देता है

 

यह किला मुगल व राजपूत शैली से बना है

खानवा के युद्ध के पश्चात अप्रैल 1927 में मुगल बादशाह बाबर ने किले में रात के समय विश्राम किया था. 18वीं शताब्दी पूर्वोदय में भरतपुर के महाराजा सूरजमल ने दुर्ग में जल स्रोत के रूप में सूरजकुंड का निर्माण कराया था. साथ ही 1775 में इस दुर्ग पर अधिकार कर इसमें सीताराम जी का मंदिर बनवाया था. 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में महाराज बख्तावर सिंह ने दुर्ग पर प्रताप सिंह की छतरी तथा जनाना महल का निर्माण करवाया था.

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