Advertisement

कर्नाटक से सबक लेगी बीजेपी या नहीं बदलेगी फॉर्मूला... राजस्थान में वसुंधरा के लिए क्या मायने?

राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए कुछ महीने ही बचे हैं. ऐसे में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं. बीजेपी नेता और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने भी सक्रियता बढ़ा दी है. उन्होंने मार्च में चूरू में एक आम जनसभा की और खुद के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की है. हालांकि, पार्टी नेतृत्व को पिछले कुछ समय से लगातार दूरी बनाते देखा गया है.

जयपुर में बीजेपी की 'जन आक्रोश यात्रा' के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे. (फोटो-पीटीआई) जयपुर में बीजेपी की 'जन आक्रोश यात्रा' के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे. (फोटो-पीटीआई)
देव अंकुर
  • जयपुर,
  • 16 मई 2023,
  • अपडेटेड 6:11 AM IST

कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत और बीजेपी को मिली हार ने भगवा पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को एक बार फिर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को नए चेहरों को सामने लाने और सीनियर लीडरशिप को दरकिनार कर राज्यों में पीढ़ीगत या नेतृत्व परिवर्तन लाने की अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ सकता है. पार्टी को कर्नाटक में स्थापित नेताओं का दरकिनार करने का दांव उलटा पड़ा है. ऐसे में राजस्थान को लेकर भी सुगबुगाहट और चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. 

Advertisement

यहां पूर्व सीएम वसुंधरा राजे चुनाव से चंद महीने पहले खुद को सीएम प्रोजेक्ट करने में लगी हैं और संगठन के बीच अपने पक्ष में माहौल खड़ा कर रही हैं. माना जा रहा है कि अगर केंद्रीय नेतृत्व ने कर्नाटक की तरह कोई कदम उठाया तो संगठन की मुश्किलें भी बढ़ा सकता है.

'कर्नाटक में काम नहीं कर पाया बीजेपी का फॉर्मूला?'

दरअसल, कर्नाटक में जिस तरह से केंद्रीय नेतृत्व द्वारा राज्य इकाई पर नेतृत्व परिवर्तन का दबाव डाला गया और बीएस येदियुरप्पा और जगदीश शेट्टार जैसे वरिष्ठ नेताओं को साइडलाइन किया गया, उसकी कीमत पार्टी को हार के साथ चुकानी पड़ी है. कर्नाटक में येदियुरप्पा को महत्वपूर्ण निर्णय लेने के संबंध में परामर्श प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनाया गया और एक्टिव कैंपेन में भी शामिल नहीं किया गया, जिसके कारण पार्टी को लिंगायत वोटों का नुकसान हुआ, जबकि वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार को पार्टी ने टिकट देने से इंकार कर दिया, जिसने संभवतः बीजेपी की चुनावी संभावनाओं को भी नुकसान पहुंचाया. 

Advertisement

'जिसने मेरे कामों को रोकने का ठेका लिया, क्या उससे मेरी दोस्ती होगी?' वसुंधरा राजे पर हमलावर हुए गहलोत

'वसुंधरा से दूरी बनाकर चल रही है बीजेपी?'

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना ​​है कि जिस तरह से भगवा पार्टी राजस्थान की दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ दूरी बनाकर चल रही है और जिस तरह से उसने कर्नाटक में अपनी सीनियर लीडरशिप को संभाला या दरकिनार किया, उसको देखकर पार्टी की मंशा स्पष्ट तौर पर समझी जा सकती है. हालांकि, पार्टी के केंद्रीय पार्टी नेतृत्व के सामने यह बड़ी चिंता रहेगी कि अगर राजस्थान में राजे को ज्यादा दरकिनार किया गया तो कर्नाटक की तरह बड़ी हार हो सकती है. 

'भरोसे में रखकर नहीं लिए जाते फैसले?'

चूंकि राज्य में चुनाव के लिए सात महीने से कम समय बचा है. हालांकि, संगठन ने पहले से ही विचार और मंथन शुरू कर दिया होगा. वहीं, राजे खेमे का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री को पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा पिछले कई वर्षों से दरकिनार किया जा रहा है, यही वजह है कि उन्हें पार्टी में विशेष रूप से राजस्थान के संबंध में महत्वपूर्ण फैसलों को लेकर उच्च स्तरीय परामर्श का हिस्सा नहीं बनाया जाता.

क्या दूध और नींबू रस आपस में कभी मिल सकते हैं? वसुंधरा राजे ने क्यों पूछा सवाल

Advertisement

'राजे और पूनिया के बीच अनबन रही आम बात?' 

इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि राजे पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उनके प्रति उदासीनता से नाराज थीं और जयपुर में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया द्वारा आयोजित कई बैठकों में उनकी अनुपस्थिति रही है, लेकिन वे दिल्ली में आयोजित बैठकों में अक्सर उपस्थित रही हैं. राजस्थान के राजनीतिक गलियारों में राजे और पूनिया के बीच अनबन की खबरें आम हो गई थीं.

'नए बीजेपी अध्यक्ष से भी नहीं हैं अच्छे संबंध?' 

इतना ही नहीं, पूनिया को राजे का कट्टर प्रतिद्वंद्वी के रूप में भी देखा गया. फिलहाल, अब पूनिया की जगह सांसद सीपी जोशी को बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है, जिन्हें लोकसभा स्पीकर ओम बिरला के करीबी के रूप में जाना जाता है. कहा जा रहा है कि पूर्व सीएम के उनके साथ भी सबंध अच्छे नहीं हैं.

पायलट-गहलोत की जंग में कहीं वसुंधरा राजे की मुश्किल न बढ़ जाए?

'चुनाव से पहले सक्रिय देखी जा रहीं राजे?' 

हालांकि, चार साल से ज्यादा समय तक साइडलाइन रहने के बाद राजे एक बार फिर सक्रिय हैं और इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में राजनीतिक सुर्खियों में वापसी करने की कोशिश कर रही हैं. इस साल मार्च में राजे ने राजस्थान के चूरू जिले में एक बड़ा शक्ति प्रदर्शन किया था. राजे खेमे ने दावा किया कि इस सार्वजनिक सभा में  पीपी चौधरी, देवजी पटेल, वसुंधरा के बेटे दुष्यंत समेत भाजपा के करीब 10 मौजूदा सांसद, 30 से 40 भाजपा विधायकों, पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अशोक परनामी, 100 से ज्यादा पूर्व विधायक शामिल हुए हैं.

Advertisement

जनसभा में वसुंधरा की जय-जयकार के साथ-साथ 'राजस्थान में वसुंधरा' और 'अबकी बार वसुंधरा सरकार' जैसे नारे लगाए गए. इस दौरान वसुंधरा ने गहलोत सरकार पर जमकर निशाना साधा. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजे को पहले से ज्यादा खुद को मुखर करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

बीजेपी नेतृत्व पर नरम, गहलोत सरकार को घेरा, नहीं लिया सतीश पूनिया का नाम... ये है वसुंधरा राजे का 'चूरू संदेश'

'समर्थक बोले- राजे जितना लोकप्रिय कोई नहीं'

वसुंधरा राजे के एक समर्थक ने चूरू में आजतक से कहा, 'बीजेपी को उनके अलावा किसी और को पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट नहीं करना चाहिए.' एक अन्य समर्थक ने कहा, कोई भी ऐसा नहीं है जो लोकप्रियता के मामले में उनके आसपास हो.

ऐसा माना जाता है कि राजे राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार के रूप में खुद को पेश करने की कोशिश कर रही हैं और कर्नाटक चुनाव में भाजपा की हार के बाद खुद के लिए एक माहौल बना सकती हैं.

10 सांसद, 40 विधायक... विधानसभा चुनाव से पहले चूरू में वसुंधरा राजे का शक्ति प्रदर्शन

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement