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पंजाब से कैसे अलग है राजस्थान का संकट, गहलोत-पायलट में बन पाएगी बात?

राजस्थान में अशोक गहलोत के सियासी उत्तराधिकारी के लिए राजनीतिक संग्राम छिड़ गया है. एक साल पहले जिस तरह से पंजाब में सियासी संकट छिड़ा था और कैप्टन अमरिंदर की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस हाईकमान ने सत्ता की कमान सौंपी थी. उसी तरह से राजस्थान में भी संकट छाया है, लेकिन पंजाब के हालत से काफी अलग हैं.

अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच रार खत्म होने का नाम नहीं ले रही है अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच रार खत्म होने का नाम नहीं ले रही है
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 26 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 5:20 PM IST

राजस्थान में अशोक गहलोत की जगह पर राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन हो, इसे लेकर भारी सियासी संकट खड़ा हो गया है. कांग्रेस हाईकमान सचिन पायलट को सीएम की कुर्सी सौंपना चाहता है, लेकिन अशोक गहलोत खेमे के विधायक तैयार नहीं है और बगावती तेवर अख्तियार कर रहे हैं. कांग्रेस के सामने जरूर एक बार फिर से पंजाब की तरह राजस्थान में भी सियासी संकट गहराया गया है, लेकिन दोनों राज्यों की स्थिति एक दूसरे से काफी अलग है. 

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पंजाब का सियासी संकट
राजस्थान कांग्रेस के अंदर मुख्यमंत्री पद को लेकर मचा सियासी घमासान देखने में पंजाब की तरह नजर आ रहा हो, लेकिन काफी अंतर है. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू ने जरूर खुलकर मोर्चा खोल रखा था, लेकिन पार्टी के विधायकों की बड़ी संख्या भी कैप्टन को हटाने के पक्ष में थी. अगस्त 2019 में कैप्टन के खिलाफ सिद्धू ने सीएलपी की बैठक में बेअदबी और कई अन्य मुद्दों पर कार्रवाई ना होने पर सवाल उठाया था. 

तत्कालीन पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पूरे मामले का हल निकालने के लिए पार्टी हाईकमान के निर्देश पर बैठकों का दौर शुरू किया. जनवरी 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पंजाब कांग्रेस प्रदेश कमिटी और जिला कमिटी को भंग कर दिया, लेकिन सुनील जाखड़ अपने पद पर बने रहे. वहीं, सिद्धू के साथ कांग्रेस विधायकों की नाराजगी भी सीएम के खिलाफ बढ़ती गई. मार्च 2020 में अमरिंदर ने अपने घर दावत का आयोजन किया, जिसमें कांग्रेस से आधे विधायक शामिल ही नहीं हुए. इसके बाद साफ हो चुका था कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.

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सोनिया गांधी ने उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत को पंजाब का प्रभारी नियुक्त कर दिया. हरीश रावत ने नवजोत सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त करा दिया. इसके बाद सिद्धू और कांग्रेस विधायकों ने ऐसा मोर्चा खोला कि कैप्टन को सीएम पद से सितंबर 2021 को इस्तीफा देना पड़ गया. इसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का अगला सीएम नियुक्त कर दिया, लेकिन उसके बाद न तो सत्ता में पार्टी की वापसी हो सकी और न ही खुद चन्नी अपना चुनाव जीत सके. 

पंजाब से कैसे अलग है राजस्थान का संकट
पंजाब की तरह ही राजस्थान में जरूर कांग्रेस के अंदर संकट गहराता दिख रहा है, लेकिन दोनों ही राज्यों की सियासी स्थिति काफी अलग है. पंजाब में कैप्टन के खिलाफ कांग्रेस के तो तिहाई विधायक खड़े थे और सीएलपी बैठक में बदलने का फैसला किया था जबकि राजस्थान में ऐसा नहीं है.

राजस्थान में कांग्रेस विधायक बड़ी संख्या में अशोक गहलोत के साथ हैं और सीएम बदलने के पक्ष में नहीं है. इतना ही नहीं सचिन पायलट को नए सीएम बनाने के लिए बड़ी संख्या में विधायक रजामंद भी नहीं है. इसकी एक बड़ी वजह पायलट का 2020 में बगावत करना और गहलोत की पार्टी पर पकड़ होना है.

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इस बीच मंत्री शांति कुमार धारीवाल के निवास पर हुई गहलोत खेमे के विधायकों की बैठक का एक वीडियो वायरल हो रहा. बैठक में विधायकों को संबोधित करते हुए मंत्री शांतिकुमार धारीवाल सुनाई दे रहे हैं कि आज ऐसी क्या बात उठ गई जो कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत का इस्तीफा मांगने के लिए तैयार हो रहा है. यह सारा षड़यंत्र है, जिस षड़यंत्र ने पंजाब खोया, वो राजस्थान भी खोने जा रहा है. ये तो आप लोग, अपन लोग (विधायक) समझ जाएं, तब तो राजस्थान बचेगा. वरना राजस्थान भी हाथ से जाएगा. धारीवाल के अगल-बगल की कुर्सियों पर मंत्री डॉ बीडी कल्ला और डॉ महेश जोशी बैठे दिख रहे हैं.

पंजाब मॉडल से निकलेगा हल?
राजस्थान में गहलोत खेमे के साथ करीब 82 विधायक है तो 16 विधायक ही सचिन पायलट के साथ है और 10 विधायक पूरी तरह तटस्थ खड़े दिख रहे हैं. गहलोत खेमे के विधायकों ने बगावती रुख अपना रखा है, जिससे कांग्रेस हाई कमान के लिए चिंता का सबब बन गया है. इसके बावजूद कांग्रेस हाईकमान पंजाब की तरह हल तलाश रहा. पंजाब में अमरिंदर की जगह सीएम के तौर पर विधायक दल की बैठक में सुनील जाखड़ को विधायक सीएम बनाने के पक्ष में थे, लेकिन पार्टी नेतृत्व चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर मुहर लगाई तो सभी विधायकों ने एक सुर में स्वागत किया था. 

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पंजाब में पर्यवेक्षक के तौर पर नए सीएम के लिए अजय माकन गए थे और राजस्थान का जिम्मा भी उन्हें दिया गया है. पंजाब में कैप्टन की जगह चन्नी को सीएम बनाने में भले ही सफल रहे हो, लेकिन राजस्थान में गहलोत से पार नहीं पा सके. गहलोत खेमे के विधायकों ने इस्तीफा का दांव चलकर सिर्फ सचिन पायलट को ही संदेश नहीं दिया बल्कि कांग्रेस हाईकमान को भी बता दिया है कि बिना उनके मर्जी के राजस्थान में फैसला नहीं हो सकता. राजस्थान में कांग्रेस विधायक दल की न तो बैठक हो सकी और न ही सचिन पायलट के नाम पर मुहर लगी.

राजस्थान के हालात कैसे अलग
राजस्थान में कांग्रेस विधायकों पर अशोक गहलोत की तरह सचिन पायलट मजबूत पकड़ नहीं बना सके, जो पहले 2020 में दिखा जब वो 19 विधायकों को लेकर मानेसर में तीन हफ्ते तक रहे और दूसरी बार रविवार को विधायक दल की बैठक में 82 विधायक नहीं पहुंचे. गहलोत खेमे ने साफ कर दिया कि सचिन पायलट को सीएम के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे. ऐसे में अगर पार्टी को गहलोत की जगह किसी अन्य को मुख्यमंत्री बनाना है तो उन्हीं 102 विधायकों में से किसी एक विधायक को बनाया जाए, जिन्होंने 2020 में बगावत के दौरान सरकार को बचाने का काम किया था.

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गहलोत खेमे ने पर्यवेक्षकों के जरिए कांग्रेस हाईकमान के सामने जिस तरह की शर्तें रखी है, जिसे भले ही स्वीकार न किया गया हो, लेकिन अशोक गहलोत को नजर अंदाज कर सीएम का फैसला करना आसान नहीं है. कांग्रेस अध्यक्ष पद के साथ गहलोत राजस्थान की सत्ता में बने वो रहना चाहते हैं. चाहे वह खुद मुख्यमंत्री पद पर बने रहें या ऐसा कोई दूसरा सीएम बने जो उनको स्वीकार्य हो. 

राजस्थान के राजनीतिक संकट को खत्म करने के लिए कांग्रेस हाईकमान को गहलोत और पायलट के बीच सुलह-समझौते के फॉर्मूले पर ही आगे बढ़ना होगा. कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व इस समस्या का हल नहीं तलाश पाएगा तो पंजाब जैसी स्थिति खड़ी हो सकती है. पंजाब में विधानसभा चुनाव से महज पांच महीने पहले राजनीतिक संकट से बाहर निकलने के लिए सियासी बदलाव किए गए, जिसके नतीजे में कैप्टन अमरिंद सिंह से लेकर सुनील जाखड़ पार्टी छोड़ गए और कांग्रेस सत्ता में वापसी भी नहीं कर सकी. 

राजस्थान में 14 महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और उसी तरह से सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है. राजस्थान में हर 5 साल के बाद सत्ता परिवर्तन का परंपरा तीन दशक से चली आ रही है. ऐसे में कांग्रेस के अंदर गहलोत बनाम पायलट के बीच छिड़ी जंग कहीं उसके लिए और भी सियासी तौर पर घातक न बन जाए?

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