
देश में इन दिनों धार्मिक स्थानों को लेकर लगातार विवाद सामने आ रहे हैं. अब ज्ञानवापी मस्जिद और ताजमहल के बाद अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर नया विवाद छिड़ गया है. अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह को लेकर दावा किया गया है कि यहां हिंदू धार्मिक चिह्न 'स्वास्तिक' मौजूद है.
ये दावा बीते दिनों महाराणा प्रताप सेना ने किया था. अजमेर दरगाह में हिन्दू धार्मिक चिह्न की मौजूदगी को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र भी लिखा गया था और एएसआई से दरगाह का सर्वे करवाने की मांग भी की गई है.
इसके साथ ही एक फोटो भी दरगाह परिसर का बताकर वायरल किया जा रहा है. इस पूरे विवाद को लेकर जब आज तक ने अपनी जांच में प्रतीक चिह्न की तलाश शुरू की तो अलग सच्चाई सामने आई.
यह तलाश खत्म हुई दरगाह से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित ढाई दिन के झोपड़े के नाम से विख्यात एक स्मारक पर जहां जांच के दौरान वो खिड़की मिली जिसकी फोटो वायरल की जा रही थी और वहां 'स्वास्तिक' भी मौजूद है. जांच में यह साफ हो गया कि स्वास्तिक का चिह्न दरगाह में नहीं, बल्कि वहां से आधे किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक दूसरी इमारत पर है.
इस मामले को लेकर जब हमने दरगाह अंजुमन कमेटी के सदस्य मोईन सरकार से बात की तो उन्होंने बताया कि पूर्व में यहां पाठशाला हुआ करती थी.इस मामले में अजमेर की दरगाह के दीवान जैनुअल ओबेदीन के पुत्र नसीरुद्दीन ने कहा कि अजमेर की दरगाह का मुगलों से कोई संबंध नहीं है.
उन्होंने कहा, सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अमन का पैगाम लेकर आठ सौ साल पहले भारत आए थे. उस समय मुगलों का कोई अस्तित्व भारत में नही था. महाराणा प्रताप सेना द्वारा किए जा रहे दावे को खारिज करते हुए जिला प्रशासन से मांग की है कि इस तरह के दावे कर अमन को ठेस पहुंचाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए.
बता दें कि महराणा प्रताप सेना के पदाधिकारियों ने एक तस्वीर जारी की थी, जिसमें अजमेर दरगाह की खिड़कियों पर स्वस्तिक के निशान बने होने का दावा किया गया था.
महाराणा प्रताप सेना के संस्थापक राजवर्धन सिंह परमार ने कहा था कि अजमेर की हजरत ख़्वाजा गरीब नवाज दरगाह एक शिव मंदिर था, जिसे दरगाह बना दिया गया.
ये भी पढ़ें: