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अशोक गहलोत ने फिर दिखाया 'जादू', क्या सचिन बन पाएंगे राजस्थान के 'पायलट'?

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर सचिन पायलट को पटखनी दे दी है. सचिन पायलट के लिए ये स्थिति 'हाथ तो आया मुंह ना लगा' वाली रही, जहां वो भले पार्टी के आलाकमान का आश्वासन लेकर राजस्थान पहुंचे हों, लेकिन अशोक गहलोत ने परदे के पीछे रहते हुए भी दिखा दिया कि उनकी मर्जी के बिना राजस्थान में ऐसे ही कोई सीएम नहीं बन सकता.

अशोक गहलोत (Photo : PTI) अशोक गहलोत (Photo : PTI)
शरद अग्रवाल
  • नई दिल्ली,
  • 25 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 11:39 PM IST

राजस्थान में कांग्रेस का सियासी संकट सुलझने के बजाय गहरा गया है. कांग्रेस आलाकमान का भरोसा लेकर राजस्थान पहुंचे सचिन पायलट ने भले ही सीएम पद पर खामोशी बनाए रखी, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने परदे के पीछे रहते हुए भी 'विधायकों के इस्तीफे' के दांव से पायलट की राह में रोड़े बिछा दिए. 

कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर में 'एक व्यक्ति, एक पद' की नीति बनी थी. ऐसे में जब अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष पद का लिए चुनाव लड़ने की बात तय हुई, तो नया सवाल खड़ा हुआ कि राजस्थान में सीएम कौन बनेगा? अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बावजूद राजस्थान में अपनी सत्ता छोड़ना नहीं चाहते हैं और ना ही सियासी उत्तराधिकारी के तौर पर सचिन पायलट को स्वीकार करने के लिए राजी हैं. गहलोत पहले ही साफ कर चुके हैं कि गुजरात विधानसभा चुनाव होने तक वह राजस्थान में पावर ट्रांसफर नहीं करना चाहते हैं. साथ ही सचिन पायलट की जगह ऐसा कोई नेता सीएम बने जो उनके मर्जी का हो.

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रविवार को राजस्थान में विधायकों का नया नेता चुनने की कवायद दिनभर चलती रही. आलाकमान की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को पर्यवेक्षक बनाकर जयपुर भेजा गया. लेकिन देर रात कांग्रेस की नया मुख्यमंत्री बनाने को लेकर जारी सिरफुटव्वल सड़कों पर उतर आई. सचिन पायलट भले आलाकमान का आश्वासन लेकर जयपुर पहुंचे हों, लेकिन वो यहां विधायकों और खुद अशोक गहलोत का भरोसा जीतने में नाकाम रहे.

सचिन पायलट के दामन का दाग

सचिन पायलट मुश्किल से 14-15 विधायकों का ही समर्थन जुटा पाए. ये संख्या उनके 2020 के विद्रोह के समय साथ जाने वाले विधायकों से भी कम है. जबकि अशोक गहलोत के पक्ष में पार्टी के लगभग 80% विधायक खड़े रहे. यहां तक कि 92 विधायक गहलोत पक्ष के अपना इस्तीफा लेकर विधानसभा अध्यक्ष सी. पी. जोशी के पास पहुंच गए. सचिन पायलट के दामन पर 2020 में पार्टी से विद्रोह करने का जो दाग है, वही उनके खिलाफ विधायकों की इस बगावत का सबसे बड़ा कारण बनकर सामने आया है. गहलोत खेमे के विधायक प्रताप खचरियावास ने तो खुलकर पायलट के मुख्यमंत्री बनने का विरोध किया है. उनका कहना है कि जो लोग पार्टी के वफादार रहे, उनमें से ही किसी को मुख्यमंत्री बनना चाहिए.

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आलाकमान को दिखाई जमीनी हकीकत

वहीं विधायकों के इस्तीफे के दांव से अशोक गहलोत ने आलाकमान को दिखा दिया कि उन्हें राजस्थान की जमीनी हकीकत का अंदाजा नहीं है. वो ये बताने में कामयाब रहे कि अगर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाता है, तो विधायक उनके साथ काम नहीं करेंगे और इस तरह सरकार कैसे चलेगी. वहीं 2023 में ऐसा नेता पार्टी को चुनाव में जीत कैसे दिलाएगा. 

गहलोत के खेमे के विधायकों का कहना है कि वो ऐसे किसी व्यक्ति पर कैसे भरोसा कर सकते हैं, जिसने पार्टी के खिलाफ विद्रोह किया हो. इसके अलावा राजस्थान में कांग्रेस के कई विधायक वरिष्ठ हैं, जो सचिन पायलट के अंडर में काम करने के लिए राजी नहीं है. ऐसे में सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के साथ-साथ राहुल गांधी का भी समर्थन हासिल कर चुके सचिन पायलट का मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ नहीं हो सका है.

अब गेंद फिर दिल्ली के हाथ

इस बीच पार्टी के विधायकों ने सी. पी. जोशी से मुख्यमंत्री बनने का अनुरोध किया है. जबकि मुख्यमंत्री आवास पर अशोक गहलोत, सचिन पायलट के साथ-साथ मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन भी इस स्थिति का हल खोजने में लगे हैं. पार्टी विधायक अब मामले में आलाकमान के आखिरी फैसला लेने की बात कर रहे हैं.

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कांग्रेस हाईकमान ने पायलट और गहलोत को दिल्ली तलब किया है. एक बार फिर से दिल्ली में राजस्थान के मुख्यमंत्री का फैसला होगा, गहलोत ने अपनी चाल चलकर पायलट की राह में मुश्किलें खड़ी कर दी है, लेकिन अब देखना है कि शीर्ष नेतृत्व क्या फैसला लेता है.

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