
जैन गुरु सुनील सागर जी महाराज बुधवार को दरगाह क्षेत्र स्थित अढ़ाई दिन का झोपड़े में पहुंचे. उनके साथ वीएचपी व अन्य हिंदू संगठन के पदाधिकारी और जैन संत महात्मा भी मौजूद रहे. जैन गुरु सुनील सागर जी महाराज ने कहा कि अढ़ाई दिन का झोपड़े के इतिहास को नकारा नहीं जा सकता. इतिहास समय-समय पर बदलता रहता है, ऐसे में सभी को उदारता रखनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि अढ़ाई दिन का झोपड़ा नहीं, ऐतिहासिक वास्तुकला व महल का स्थान था, लेकिन अभी यह मस्जिद के रूप में दिखाई दे रहा है. यहां कई ऐतिहासिक मूर्तियां स्थापित थीं, जिन्हें खंडित किया गया. गुरु सुनील सागर जी महाराज ने कहा कि सबकी अपनी मान्यता और धारणाएं होती हैं, विरासत की सुरक्षा बनी रहे ऐसे में शांति और सद्भाव की आवश्यकता है.
अजमेर के नगर निगम के उपमहापौर नीरज जैन ने कहा कि सांच को आंच नहीं. तथाकथित अढ़ाई दिन का झोपड़ा के नाम पर हमारे आराध्य देवों की मूर्तियों को खंडित कर साक्ष्य छुपाने के प्रयास सफल नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि पूर्व में यह स्थान कंठभरण संस्कृत विद्यालय था, जिसे आततायियों ने तोड़ कर इस स्थान पर कब्जा करने का प्रयास किया. पूर्व में भी इस स्थान के संरक्षण और संवर्धन की मांग भी हमारे द्वारा की गई थी.
नीरज जैन ने कहा कि आज जैन गुरु सुनील सागर जी ने वहां भ्रमण किया, इससे भी तथ्य की पुष्टि हुई है कि इस स्थान पर संस्कृत पाठशाला के साथ साथ जैन मंदिर भी था. जैन ने कहा कि यहां पुरातत्व विभाग द्वारा 200 से ज्यादा खंडित प्रतिमायें अपने पास रखी हुई हैं. नीरज जैन ने मांग की कि काशी विश्वनाथ, अयोध्या और मथुरा की तरह इस स्थान का भी सरंक्षण और संवर्धन कर यहां किए अवैध क़ब्ज़े को हटाया जाए.
क्या कहता है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की वेबसाइट के अनुसार, यह स्मारक 1199 ई. में दिल्ली सल्तनत के पहले सुल्तान कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने बनवाई थी. इसे दिल्ली में क़ुवल-उल-इस्लाम मस्जिद (इस्लाम की शक्ति) के नाम से जाना जाता है. वेबसाइट के अनुसार, अढ़ाई दिन का झोंपड़ा परिसर के बरामदे में बड़ी संख्या में मंदिरों की मूर्तियां पड़ी हुई हैं, जो 11वीं-12वीं शताब्दी के दौरान इसके आसपास एक हिंदू मंदिर के अस्तित्व को दिखाती हैं. इसमें कहा गया है कि मंदिरों के खंडित अवशेषों से बनी मस्जिद को अढ़ाई दिन का झोंपड़ा के नाम से जाना जाता है, संभवतः इस तथ्य के कारण कि यहां अढ़ाई दिनों तक मेला लगता था.