
राजस्थान में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव हैं. बीजेपी ने चुनावी तैयारी तेज कर दी है. पीएम नरेंद्र मोदी का 31 मई यानी बुधवार का अजमेर दौरा इसी का हिस्सा है. हालांकि इस साल यह उनकी पहली यात्री नहीं है. वह इससे पहले तीन दौरे कर चुके हैं. पीएम के अलावा बीजेपी के दिग्गज नेता भी राजस्थान में डेरा डालने लगे हैं. वहीं कांग्रेस अशोक गहलोत और सचिन पायलट की आपसी कलह को खत्म कराने में उलझी हुई है. बीजेपी प्रदेश कांग्रेस में आई इसी दरार का फायदा उठाने की फिराक में है.
कांग्रेस के दोनों नेताओं के बीच 2018 के बाद से ही टकराव बना हुआ है. इस दौरान सचिन पायलट ने कई मौकों पर गहलोत से टकराने की कोशिश की लेकिन हर बार पायलट कमजोर ही साबित हुए हैं. पिछले सात महीने से राजस्थान में होने वाले बीजेपी के कार्यक्रमों को देखा जाए तो पता चलता है कि बीजेपी इस बात को भांप चुकी है कि इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कमजोर करने के लिए गहलोत की बजाए पायलट के लिए चक्रव्यूह बनाना होगा. ध्यान दें तो पता चलेगा कि बीजेपी ने अपनी इस रणनीति पर कई महीने पहले से ही काम शुरू कर दिया है.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस समय राजस्थान कांग्रेस का संगठन बिखरा हुआ है. पदाधिकारियों का अपने नेताओं पर कोई जोर नहीं दिखाई दे रहा है. हालांकि संगठन में गहलोत की पकड़ अब भी बहुत मजबूत है. ऐसे में माना जा रहा है कि पायलट की सीटों पर चुनाव प्रचार प्रभावित हो सकता है. बीजेपी की नजर इसी कमजोरी पर है. शायद यही वजह है कि बीजेपी का ध्यान सबसे ज्यादा पूर्वी राजस्थान के उनके जिलों में है, जहां पायलट की पकड़ है.
पीएम नरेंद्र मोदी भले ही आज अजमेर में हो लेकिन वह पिछले साल सितंबर से लगातार राजस्थान का दौरा कर रहे हैं. पीएम पिछले साल 30 सितंबर को आबूरोड आए थे. इसके बाद 1 नवंबर को बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम आए. इस साल 28 जनवरी को वह भीलवाड़ा के आसिंद में देवनारायण जयंती कार्यक्रम में शामिल हुए. 12 फरवरी को दौसा गए फिर 10 मई को माउंट आबू, राजसमंद और सिरोही आए थे.
पीएम के अलावा गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी राजस्थान का दौरा कर रहे हैं. वह लगातार संगठन बूथ लेवल पर मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं और कांग्रेस पर जमकर हमला बोल रहे हैं. जनवरी में जेपी नड्डा जयपुर अए थे. वह यहां राजस्थान प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में शामिल हुए थे. इसके बाद अमित शाह ने अप्रैल में भरतपुर का दौरा किया था. यहां वह बीजेपी बूथ अध्यक्ष सम्मेलन में शामिल हुए थे.
- पीएम नरेंद्र मोदी ने जब फरवरी में दौसा का दौरा किया था, तब उन्होंने सीएम पद को लेकर गहलोत और पायलट के बीच चल रहे विवाद पर कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा था. तब उन्होंने कहा था कि राजस्थान में कुर्सी लूटने और कुर्सी बचाने का ही खेल चल रहा है, जहां सीएम को अपने ही विधायकों और विधायकों को अपने सीएम पर भरोसा नहीं है. कांग्रेस की स्वार्थ की राजनीति का परिणाम राजस्थान को भी उठाना पड़ रहा है.
- अमित शाह जब भरतपुर में थे तब उन्होंने कहा था कि सचिन पायलट कैसे भी करके कुर्सी पाना चाहते हैं लेकिन गहलोत कुर्सी पर बने रहना चाहते हैं, लेकिन आएगी बीजेपी की सरकार. जो चीज है ही नहीं उसके लिए दोनों लड़ रहे हैं. जमीन पर पायलट का योगदान गहलोत से ज्यादा हो सकता है लेकिन कांग्रेस के खजाने में गहलोत का योगदान ज्यादा है, इसलिए पायलट का नंबर नहीं आएगा.
राजस्थान के राजनीतिक विश्लेषक अवधेश आकोदिया का कहना है कि पूर्वी राजस्थान के 8 जिलों में सचिन पायलट की मजबूत पकड़ है. इन जिलों में अजमेर, टोंक, दौसा, अलवर, करौली, भरतपुर, सवाई माधोपुर और धौलपुर जिले शामिल हैं. इन जिलों में 58 विधानसभा सीटें आती हैं. सचिन पायलट अभी टोंस से ही विधायक हैं. उन्होंने बीजेपी के उम्मीदर यूनुस खान को 54,179 वोटों के अंतर से हराया था. पायलट 2009-2014 अजमेर से सांसद भी रह चुके हैं. वहीं जब पायलट ने 2020 में जब बगावत कर दी थी जब उनका साथ देने वाले 18 विधायकों में ज्यादातर पूर्वी राजस्थान के थे. वहीं चर्चा यह भी है कि वह इस बार टोंक की जगह अपने पिता राजेश पायलट की निर्वाचन क्षेत्र दौसा के विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. खुद पायलट भी दौसा से सांसद रहे हैं. अब ये सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए रिजर्व है.
राजनीतिक विश्लेषक अवधेश आकोदिया ने बताया कि गुर्जरों को परंपरागत रूप से बीजेपी का वोट बैंक माना जाता है, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट की वजह से ये कांग्रेस के खाते में चला गया. बीजेपी फिर से इसे अपने पाले में लाने के लिए मशक्कत कर रही है. प्रदेश के 15 जिले ऐसे हैं, जहां गुर्जर समाज का वर्चस्व है. इन जिलों में जयपुर, अजमेर, टोंक, दौसा, कोटा, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा, बूंदी, झालावाड़, बांरा और झुंझुनूं शामिल हैं. इन जिलों में ज्यादातर जिले सचिन पायलट के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं. यहां की करीब 22 विधासभा सीटों पर चुनाव गुर्जर वोटर प्रभावित करते हैं. इसके अलावा करीब 20 सीटों गुर्जर समाज के वोटर दूसरे या तीसरे स्थान पर हैं.
वहीं इन जिलों में भरतपुर ऐसा संभाग था, जहां 2018 के चुनाव में बीजेपी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था. यहां की चार में से तीन जिलों भरतपुर, करौली और सवाईमाधोपुर में बीजेपी खाता नहीं खोल सकी थी. धौलपुर में सिर्फ एक सीट पर बीजेपी प्रत्याशी शोभारानी कुशवाह ने जीत दर्ज कराई थी. हालांकि बाद में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया यानी मौजूदा समय में भरतपुर संभाग की 19 सीटों पर बीजेपी का एक भी विधायक नहीं है. जबकि साल 2013 में बीजेपी ने इन 58 में से 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2013 में 21 सीटों पर सिमटी कांग्रेस को 2018 में विधानसभा चुनाव के लिए फिर से खड़ा करने के लिए पायलट ने जीतोड़ काम किया था.